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जलवायु परिवर्तन
खतरे की घंटी रेगिस्तान का विस्तार
Posted on 04 Oct, 2010 08:24 AMइधर प्राकृतिक आपदाओं की संख्या और तीव्रता में बढ़ोतरी हुई है। मौसमी परिवर्तन का एक और बड़ा संकेतक, जिस पर हम पर्याप्त ध्यान नहीं दे रहे हैं, बहुत तेजी से उभार पर है। वह है रेगिस्तानी इलाकों का विस्तार। दुनिया के लगभग सारे रेगिस्तानी क्षेत्र में विस्तार हो रहा है, लेकिन थार रेगिस्तान का विस्तार कुछ अधिक तेज गति से हो रहा है। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन यानी इसरो की हालिया रिसर्च बताती है कि थानष्ट हो जाएंगे 80 फीसदी वर्षा वन
Posted on 01 Oct, 2010 10:04 AMजलवायु परिवर्तन के कारण सन् 2100 तक वर्षा वन तथा उसमें रहने वाले जानवरों का 80 फीसदी हिस्सा नष्ट हो जाएगा। यह बात एक नए अध्ययन में सामने आई है। वर्तमान में पृथ्वी पर मौजूद वृक्षों और जानवरों का आधा से भी अधिक हिस्सा वर्षा वन में रहता है। अध्ययन में बताया गया कि अकेले अमेजन बेसिन की जैव विविधता में बदलाव को देखा जा सकता है।कैसे बचे रूस की वन संपदा
Posted on 13 Sep, 2010 01:49 PMहाइड्रो कार्बन के बाद रूस की सबसे बड़ी पूंजी जंगल हैं। यहां दो तिहाई भूमि वनों से ढकी है लेकिन इस वर्ष भारी गर्मी के कारण वहां तापमान काफी ऊंचा रहा और सूखे की मार भी।
मौसम परिवर्तन से बढ़ती आपदाएं
Posted on 13 Sep, 2010 01:31 PMहर कोई मौसम की बात करता है, लेकिन उसके बारे में कोई कुछ कर नहीं सकता। यही बात प्राकृतिक आपदाओं के बारे में भी कही जा सकती है।
सोलर सूनामी का पहला ज्वार
Posted on 19 Aug, 2010 08:21 AMएक और दो अगस्त को सूरज से उठकर सीधे अपनी तरफ बढ़े दो तूफानों का झटका धरती पिछले दो-तीन दिनों में झेल चुकी है। एक वैज्ञानिक के शब्दों में कहें तो इस वक्त भी यह उनके असर से झनझना रही है। सूरज की सतह पर होने वाले विस्फोटों से निकली सामग्री का सीधे धरती की तरफ आना एक विरल घटना है। लेकिन इस बार तो लगातार दो विस्फोटों से निकले आवेशित कण हजारों मील प्रति सेकंड की रफ्तार से इसी तरफ दौड़ पड़े थे। बताते हैं कि ऐसे एक भी विस्फोट से निकली ऊर्जा को अगर किसी तरह काबू में कर लिया जाए तो इससे धरती की सारी ऊर्जा जरूरतें दसियों लाख साल तक पूरी की जा सकती हैं। इतनी ज्यादा ऊर्जा अचानक अपने ग्रह की तरफ आ जाना कोई मामूली बात तो थी नहीं।एक के पीछे एक चले आ रहे इन दोनों सौर तूफानों
ग्लोबल वॉर्मिंग की बंद गली, और एक रास्ता
Posted on 19 Aug, 2010 08:09 AMग्लोबल वॉर्मिंग के बारे में आम लोगों का रवैया संशयवादी हो सकता है लेकिन साइंटिस्टों में इस समस्या को लेकर कोई दुविधा नहीं है। वे हमेशा मानते रहे हैं कि इंसान की पैदा की हुई यह समस्या वास्तविक है और अगर इसकी अनदेखी की गई तो इससे इंसान के वजूद को ही खतरा हो सकता है।लेकिन, यदि इस समस्या से निपटना है तो जरूरी सवाल यह है कि हम इस बारे में करें तो क्या करें। इस बारे में सबसे आम सुझाव यह है कि दुनिया को हर दिन वातावरण में झोंकी जाने वाली ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा में भारी-भरकम कटौती करनी चाहिए। कहा जा रहा है कि इस सदी के मध्य तक कार्बन-डाइ-ऑक्साइड के ग्लोबल इमिशन में 50 फीसदी की कमी लानी चाहिए। लेकिन, इस मत के समर्थक भी मानते हैं कि यह टारगेट हासिल कर पाना आसान नहीं है, और इस मामले में वे सही हैं। बल्कि असल में वे
जलवायु परिवर्तन की चुनौतियां-2
Posted on 07 Aug, 2010 01:59 PMआज हमारे जीवन का हर पहलू जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हो रहा है, चाहे वो पानी की सप्लाई हो या कृषि, प्रकृति में मौजूद पेड़ पौधे हो या फिर पक्षी और जानवर। यहाँ तक कि हमारी खाद्य सुरक्षा और स्वास्थय भी इससे प्रभावित हो रहे हैं। हर किसी को जलवायु परिवर्तन से नुकसान पहुंचा है।
खरे उतरे जलवायु वैज्ञानिकों के निष्कर्ष
Posted on 09 Jul, 2010 09:13 PMइंग्लैंड के ईस्ट एंग्लिया विश्वविद्यालय की जलवायु परिवर्तन शोध इकाई के निष्कर्षों की स्वतंत्र समीक्षा करने वाली समिति का कहना है कि जलवायु वैज्ञानिकों ने पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ काम किया है। समीक्षा समिति का कहना है कि “वैज्ञानिकों के निष्कर्षों में कोई त्रुटि नहीं है लेकिन उन्होंने अपने काम की पूरी जानकारी देने में कोताही बरती है और निष्कर्षों का बचाव करने की कोशिश की है।”
तापमान पर अंकुश से ही बचेगी दुनिया
Posted on 08 Jul, 2010 03:27 PMदुनिया में पर्यावरण क्षरण और जलवायु परिवर्तन का सवाल आज सबसे अहम बना है। जब तक इसका हल नहीं निकलेगा, दुनिया पर संकट मंडराता रहेगा।संयुक्त राष्ट्र सहित दुनिया के अधिकतर सरकारी, गैर-सरकारी व निजी संस्थानों के हालिया अध्ययन व शोध इसकी पुष्टि करते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण ही आज महासागरों में मौजूद बर्फीली चट्टानों (आईसबर्ग) का उन्मुक्त बहते रहना पर्यावरण संतुलन के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा ह