सफलता की कहानियां और केस स्टडी

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महिलाओं ने बदला पानपाट
Posted on 21 Jan, 2010 03:42 PM

घूंघट में रहने वाली महिलाओं ने देवास जिले के कन्नौद ब्लाक के गाँव ‘पानपाट’ की तस्वीर ही बदल दी है। उन्होंने यह सिद्ध कर दिखाया है कि – कमजोर व अबला समझी जाने वाली महिलाएं यदि ठान लें तो कुछ भी कर सकती हैं। उन्हीं के अथक परिश्रम का परिणाम है कि आज पानपाट का मनोवैज्ञानिक, आर्थिक व सामाजिक स्वरुप ही बदल गया है। जो अन्य गाँवो के लिए प्रेरणादायक साबित हो रहा है।

पानपाट गाँव का 35 वर्षीय युवक ऊदल कभी अपने गांव के पानी संकट को भुला नहीं पाएगा। पानी की कमी के चलते गांव वाले दो-दो, तीन-तीन किमी दूर से बैलगाड़ियों पर ड्रम बांध कर लाते हैं। एक दिन ड्रम उतारते समय पानी से भरा लोहे का (200 लीटर वाला) ड्रम उसके

women and water
अब तोरणी जैसे गाँव ही होंगे नए तीर्थ!
Posted on 16 Jan, 2010 01:15 PM देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु ने भाखड़ा-नांगल बांध और भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर जैसी जगहों को आधुनिक तीर्थ कहा था। इक्कीसवीं सदी में वैज्ञानिक डॉ. कलाम की इन यात्रा का संदेश भी साफ है- यहाँ मिसाइलमैन का वास्ता मिसाइल की सी गति से नहीं पड़ने वाला, जिनके वे धुरंधर खिलाड़ी रहे हैं। यहाँ उनका रास्ता छोटी-छोटी जल संरचनाएँ रोकेंगी और उनसे कहेंगी, यह वक्त थोड़ा थमने का भी है....! खंडवा जिले के लोगों ने ‘गति के गुरूर’ को तोड़ा है! उन्होंने पानी के वेग को वश में कर लिया है। बादलों से बरसा पानी अब इस जिले की जमीन पर इठलाता, बलखाता और सरपट दौड़ता नजर नहीं आता। अब पानी की लगाम यहाँ के उन लोगों के हाथों में हैं, जो गाँवों में रहते हैं और उनमें से भी अधिकतर पढ़ना-लिखना भी नहीं जानते। ये लोग कभी सरपट भागते पानी के कान उमेठकर उसे कुंडी या कुएँ की दिशा दिखा देते हैं तो कभी उसे पुचकारकर पोखर में उतार देते हैं। सौ बात की एक बात तो यह है कि इन लोगों ने पानी के बहाव को वश में कर लिया है यहाँ। वरना पानी अब नदी-नालों के जरिए समुद्र का रास्ता नहीं नापता।
water
आओ जाने अपना पानी अभियान
Posted on 14 Jan, 2010 12:55 PM

अभियान में निकले चौंकाने वाले तथ्य

कोंकण में गोकुल का गौरव
Posted on 10 Dec, 2009 05:08 PM कोंकण महाराष्ट्र का तटीय क्षेत्र है जिसकी एक ओर पश्चिमी घाटों का वन प्रदेश है और दूसरी ओर अरब सागर। यह पट्टीनुमा प्रदेश है जिसकी चौड़ाई कहीं 20 किमी. है तो कहीं 40 किमी.। यहां औसत सालाना बरसात 2,500 से 5,000 मिमी.
farm pond
पंजाब के गिरते भूजल को लगी ब्रेक
Posted on 26 Nov, 2009 07:36 AM

करीब दो दशक से लगातार गिर रहे पंजाब के भूजल स्तर में अब के वर्ष ब्रेक लग गई है। केंद्रीय पंजाब के कई क्षेत्रों में भूजल का स्तर तीन से दस फीट तक ऊपर आया है। इसका श्रेय प्री मानसून के तहत करीब 15 दिन पहले आरंभ हुई बरसात के साथसाथ पंजाब सरकार द्वारा धान की रोपाई के लिए तय की गई 10 जून की समय सीमा को जाता है।मालवा के संगरूर,सुनाम, लहरागागा, दिड़बा, धनौला, बुढलाडा, बरनाला आदि क्षेत्रों से मिली जानक

हिमालय के लिए जुटे हिमालयी हिम्मत वाले लोग
Posted on 22 Nov, 2009 08:10 AM अवैध कटाव की जानकारी सरकार में ऊपर तक पहुंचाई गई व साथ ही मीडिया को भी उपलब्ध करवाई गई इसी के समानांतर
भागलपुर के भगीरथ
Posted on 19 Nov, 2009 07:55 AM अब भागलपुर प्यासा नहीं है, उसको अपने भगीरथ मिल गए हैं, बूढ़ी महिलाओं को पानी के लिए लम्बी दूरी तय नहीं करनी पड़ती, और न ही गरीब दिहाड़ी मजदूरों को काम पर जाने के बजाय दिन भर पानी ढोना पड़ता है। एक ऐसे प्रदेश में जहां लोग बाढ़ से मरते हैं या फिर प्यास से, राजेश श्रीवास्तव के एकल प्रयास ने एक पूरे क्षेत्र की तस्वीर बदल कर रख दी है, आज उनकी संस्था 'सांई सेवा संस्थान' का मिनरल वाटर संयंत्र से शोधित
आदिवासी जानते हैं पानी की समस्या से निपटना !
Posted on 14 Nov, 2009 09:31 AM स्वजलधारा कार्यक्रम में जनभागीदारी के उदाहरण गुजरात में अनूठे रहे हैं। स्वजलधारा कार्यक्रम के तहत गुजरात सरकार का आर्थिक योगदान 224.60 करोड़ रुपयों का है। जब की जन भागीदारी से राज्य में कुल 45.0967 करोड़ रुपये एकत्र किये गये हैं। गुजरात के वलसाड जिल्ले का धरमपुर तालुका के आदिवासी इलाके के एक गांव के लोगों को सरकार के स्वजलधारा कार्यक्रम का पता चला और उन्होंने ठान लिया कि कुछ कर गुजरना है . . .
जब शौच से उपजे सोना
Posted on 28 Oct, 2009 11:46 AM जब कोई युवा पढ़ाई- लिखाई करके शहरों की ओर भागने की बजाय अपनी शिक्षा और नई सोच का उपयोग अपने गाँव, ज़मीन, अपने खेतों में करने लगे तो बदलाव की एक नई कहानी लिखने लगता है, ऐसे युवा यदि सरकार और संस्थाओं से सहयोग पा जाएं तो निश्चित ही क्रान्तिकारी परिवर्तन ला देते हैं। ऐसी ही एक कहानी है ‘जब शौच से उपजे सोना’ की और कहानी के नायक हैं युवा किसान श्याम मोहन त्यागी......
श्याम मोहन त्यागी का इकोसैन
सूझबूझ का पानी
Posted on 02 Oct, 2009 09:54 AM
दोनों गांववालों ने अपने-अपने गांव के प्रतिनिधि चुनकर एक समिति बनाई जो इस का हल खोज सके। गांवों के प्रतिनिधि नारायणी माता गांव स्थित ‘चेतना’ संस्था के पास अपनी समस्या लेकर गए। यह संस्था कासा से मिलने वाली आर्थिक सहायता से आसपास के क्षेत्र में सामाजिक आर्थिक विकास के कार्य करती है। संस्था के सचिव दीन दयाल व्यास के मुताबिक वर्ष 99 उनके कार्यकत्र्ताओं ने दोनो गांव के लोगों के साथ बैठकें की और समस्या के हल पर विचार किया गया। आखिर नाले पर छोटा सा पक्का बांध बनाने पर सहमति हुई।
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