सफलता की कहानियां और केस स्टडी

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धरती की गोद में पानी उतारने का एक जादू
Posted on 27 Apr, 2010 08:54 AM
श्रीपति भट कडाकोलि कर्नाटक के उत्तर कन्नड जिले के सिरसा गाँव के किसान हैं। भट परिवार के पास कुल 15 एकड़ जमीन है जिसमें से 4 एकड़ पर सुपारी और एक एकड़ में नारियल की फसल है। सन् 1999 तक उन्हें पानी की कोई समस्या महसूस नहीं हुई। लेकिन इसके बाद धीरे-धीरे दिक्कत शुरु हुई जो कि 2002 आते-आते बढ़ गई। इनके खेतों में स्थित एक बड़ा कुंआ भी सूख गया। इलायची के पौधों की फसल पानी पर 5000 रुपये खर्च करने के
वलनीः छब्बीस बरस की गवाही
Posted on 21 Mar, 2010 08:06 PM यह कहानी है नागपुर तालुका के गांव वलनी के लोगों की। वलनी में उन्नीस एकड़ का एक तालाब है। वलनीवासी 1983 से आज तक वे अपने एक तालाब को बचाने के लिए अहिंसक आंदोलन चला रहे हैं। छब्बीस वर्ष गवाह हैं इसके। न कोई कोर्ट कचहरी, न तोड़ फोड़, न कोई नारेबाजी। तालाब की गाद-साद सब खुद ही साफ करना और तालाब को गांव-समाज को सौंपने की मांग। हर सरकारी दरवाजे पर अपनी मांगों के साथ कर्तव्य भी बखूबी निभा रहा है यह छोटा-सा गांव। योगेश अनेजा, जो अब इस गांव के सुख-दुख से जुड़ गये हैं, वे 26 वर्ष के इस लम्बे दांस्तान को बयान कर रहे हैं

हम सब कलेक्टर के पास अर्जी लेकर गए थे। उन्होंने कहा कि मैं तो यहां नया ही आया हूं। मैं देखता हूं कि मामला क्या है। अर्जी के हाशिए में कोई टिप्पणी लिखकर उसे एस.डी.ओ.
जुलाई महीने में तालाब में बारिश का पानी भरने के बाद
गुणों का गांव राजूखेड़ी
Posted on 14 Mar, 2010 11:05 AM
मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के राजूखेड़ी गांव के निवासी गरीब और पिछड़ेपन के शिकार भले ही रहे हों, लेकिन उन्होंने किसी पर निर्भर रहने की बजाय अपने जीवन की बेहतरी का रास्ता खुद तैयार कर लिया है। राजूखेड़ी को एक व्यवस्थित एवं संपन्न गांव बनाने से लेकर ‘निर्मल पंचायत’ का राष्ट्रीय पुरस्कार दिलाने में जनभागीदारी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
ग्रामविकास की पाठशाला
Posted on 14 Mar, 2010 10:07 AM
तुलसीराम बाला बोरकर 20 साल पहले अपना गांव छोड़कर दूसरे गांव में रोजी रोटी के लिए गये थे। लेकिन आज वो अपने गांव में बागवानी खेती करके नगदी उत्पाद ले रहे हैं। इसी साल दो एकड़ खेती में फूलों की उपज करके तुलसीराम बोरकर ने दो लाख तीस हजार रुपयो का नगद मुनाफा कमाया। बेरोजगार तुलसीराम गांव क्यों वापस आएं, गांव में ऐसा क्या परिवर्तन हुआ, बेरोजगारी और गरीबी से उठकर वो प्रगतिशील किसान कैसे बने?
सूखे में हराः पानी किसने भरा?
Posted on 14 Mar, 2010 08:15 AM सोन कमांड एरिया के बीच भी अनेक गांवों की सिंचाई दो हजार बरस पुरानी आहर-पईन प्रणाली से ही होती है। इन इलाकों का हाल मिश्रित रहा। जहां मरम्मत, देखरेख का काम ठीक से हुआ है, वहां तो सिंचाई हो गई। बाकी जगहों में फसल बरबाद भी हुई है।राजनैतिक समाज सेवियों के दुर्भाग्य से सूखा भी इस साल ठीक से नहीं हुआ। न जिले की दृष्टि से, न चुनाव क्षेत्र की दृष्टि से, न पार्टियों के जनाधार की दृष्टि से। आंकड़ेबाज औसत-प्रेमी वैज्ञानिक-इंजीनियर, पदाधिकारियों की दृष्टि से भी सूखा ठीक-ठाक नहीं रहा। बेतरतीब ही सही, वर्षा हो भी गई, कुछ इलाकों में फसल भी हो गई, कमजोर ही सही। बड़ा बैराज, जैसे- सोन नद पर बना इन्द्रपुरी बैराज और छोटे बैराज (अनेक) बड़े इलाके में फसल बचाने में सहायक हुए। बड़े बैराज ने सोन पानी के बंटवारे को लेकर
तीन दिन में बना दिया स्टॉपडेम
Posted on 10 Mar, 2010 10:09 AM
उज्जैन, शाजापुर. ‘कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो’ कवि दुष्यंत की इन पंक्तियों को ग्राम सतगांव एवं बायड़ा के किसानों ने चरितार्थ कर दिखाया है। उन्होंने आर्थिक मदद के लिए प्रशासन के आगे हाथ फैलाए बिना ही चीलर नदी पर महज 3 दिन में 150 फीट चौड़ा और 20 फीट ऊंचा स्टॉपडेम बना दिया।
तालाब, आहर, हरियाली लाकर एक नया इतिहास रचते दलित
Posted on 27 Feb, 2010 02:13 PM
गया जिले के अतरी प्रखंड के नरावट पंचायत के 120 दलित परिवार अपने श्रम के दान से जगह-जगह तालाब, आहर, हरियाली लाकर एक नया इतिहास लिख रहे हैं। 2006 में जब गया शहर में पेयजल का संकट आया तब वे ‘मगध जल जमात’ के अपील पर शहर के प्राचीन तालाबों के खुदाई-सफाई के लिए गाँव के 108 दलित करीब 50 किलोमीटर पैदल चलकर गया पहुँचे। 8-10 दिन की कड़ी मेहनत से शहर के पौराणिक सरयू तालाब की खुदाई की। इस दौरान उन्होंने
गांववासियों द्वारा खुद जल आपूर्ति की मिसाल
Posted on 22 Jan, 2010 12:29 PM

पानी के अभाव ने उड़ीसा के एक गांव को पानी का प्रबंधन करना सिखाया

 

water management
महिलाओं ने बदला पानपाट
Posted on 21 Jan, 2010 03:42 PM

घूंघट में रहने वाली महिलाओं ने देवास जिले के कन्नौद ब्लाक के गाँव ‘पानपाट’ की तस्वीर ही बदल दी है। उन्होंने यह सिद्ध कर दिखाया है कि – कमजोर व अबला समझी जाने वाली महिलाएं यदि ठान लें तो कुछ भी कर सकती हैं। उन्हीं के अथक परिश्रम का परिणाम है कि आज पानपाट का मनोवैज्ञानिक, आर्थिक व सामाजिक स्वरुप ही बदल गया है। जो अन्य गाँवो के लिए प्रेरणादायक साबित हो रहा है।

पानपाट गाँव का 35 वर्षीय युवक ऊदल कभी अपने गांव के पानी संकट को भुला नहीं पाएगा। पानी की कमी के चलते गांव वाले दो-दो, तीन-तीन किमी दूर से बैलगाड़ियों पर ड्रम बांध कर लाते हैं। एक दिन ड्रम उतारते समय पानी से भरा लोहे का (200 लीटर वाला) ड्रम उसके

women and water
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