सफलता की कहानियां और केस स्टडी

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राह दिखाता रैतोली
Posted on 30 Jun, 2011 03:13 PM

यहां ग्रामीण विकास की यह बुनियाद लगभग 20 वर्ष पूर्व तत्कालीन ग्राम प्रधान स्वर्गीय माधो सिंह फर्स्वाण ने रखी थी। तब न गांव में रोजगार के साधन थे और ना ही बुनियादी सुविधाएं। लोग रोजगार के लिए पलायन कर रहे थे या फिर आस-पास के क्षेत्रों में मजदूरी। ग्रामीणों की इस पीड़ा एवं गांवों से हो रहे पलायन को देखते हुए उन्होंने गांव में ही दुग्ध व्यवसाय को बढ़ावा देने पर जोर दिया।

एक गांव जहां हर घर शिक्षित है। ग्रामीणों ने अपनी मेहनत से पैदल पथ का निर्माण किया। दुग्ध समिति बनाकर स्वरोजगार की राह खोली। किसी सरकारी मदद का इंतजार करने के बजाय यहां के लोगों ने खुद को सक्षम बनाया। यह है चमोली जनपद में बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित रैतोली गांव। आपसी सहयोग एवं श्रमदान से यहां के ग्रामीणों ने रैतोली की तस्वीर को सवारा है।

कोस्का की राह पर
Posted on 09 Jun, 2011 11:39 AM

कोस्का के लोगों ने सरकारी तरीके से कानून लागू करने की प्रक्रिया को ठेंगा दिखा दिया। इस पर स्थानीय वन विभाग और प्रशासन इन्हें 75 वर्षों के निवास प्रमाण की अनिवार्यता के मकड़जाल में फंसाकर इनके अधिकारों की राह में रोड़े अटकाने लगा। कोस्का में वनाधिकार कानून लागू करने के लिए सरकार को ही यहां के ग्रामीणों से प्रशिक्षण लेना चाहिए।

देश भर के वन क्षेत्रों में स्वशासन और वर्चस्व के सवाल पर वनवासियों और वन विभाग के बीच छिड़ी जंग के बीच उड़ीसा के जंगल में एक ऐसा गांव भी है, जिसने अपने हजारों हेक्टेयर जंगल को आबाद कर न सिर्फ पर्यावरण और आजीविका को नई जिंदगी दी है बल्कि वन विभाग और तकनीकी वन वैज्ञानिकों को चुनौती देकर एक नजीर भी पेश की है।

गंगा देवी पल्ली गाँव : ज़िन्दगी बदलनी है तो खुद कदम उठाइये
Posted on 31 May, 2011 10:09 AM

आंध्र प्रदेश के वारंगल जिले की मचापुर ग्राम पंचायत का एक छोटा-सा पुरवा था `गंगा देवी पल्ली´। ग्राम पंचायत से दूर और अलग होने के चलते विकास की हवा या सरकारी योजनाएं यहां के लोगों तक कभी नहीं पहुंची। बहुत सी चीजें बदल सकती थी लेकिन नहीं बदली क्योंकि लोग प्रतीक्षा किये जा रहे थे… कि कोई आएगा और उनकी जिन्दगी सुधरेगा। उसमें बदलाव की नई हवा लाएगा। करीब दो दशक पहले गंगा देवी पल्ली के लोगों ने तय किया

15 किलोमीटर में बन गए हैं 500 तालाब
Posted on 23 May, 2011 09:35 AM

इंदौर। कभी वे पानी की तलाश में 600 फीट तक जमीन में उतर जाते थे, अब खुद के खेत में तालाब भरे रहते हैं। हालत यह है कि 15 किमी की परिधि में बसे गांवों में करीब 500 तालाब बन गए हैं। एक-दो गांव तो ऐसे हैं जहां हर किसान एक-दो तालाबों का मालिक है। तालाबों में कुछ सरकारी भी हैं। ये तालाब एक से पांच बीघा तक में फैले हैं।

रेत में लोटती हरियाली
Posted on 13 May, 2011 11:24 AM

धरती की जल-ग्रहण क्षमता बढ़ गई है। इसके साथ अनेक वन्य जीवों व पक्षियों को जैसे नवजीवन मिल गया है। एक समय बंजर सूख रही इस धरती पर जब हम घूम रहे थे तो पक्षियों के चहचहाने के बीच हमें नीलगाय के झुंड भी नजर आए। वह हरियाली उनके लिए भी उतना ही वरदान है जितना गाँववासियों के लिए।

सूखी भूमि को हरा-भरा करने का कार्य बहुत जरूरी है, सब मानते हैं, फिर भी न जाने क्यों पौधरोपण व वनीकरण के अधिकांश कार्य उम्मीद के अनुकूल परिणाम नहीं दे पाते हैं। खर्च अधिक होने पर भी बहुत कम पेड़ ही बच पाते हैं। इस तरह के अनेक प्रतिकूल समाचारों के बीच यह खबर बहुत उत्साहवर्धक है कि राजस्थान में सूखे की अति प्रतिकूल स्थिति के दौर में भी एक लाख से अधिक पेड़ों को पनपाने का काम बहुत सफलता से किया गया है।

कच्छ में बना दिए पंजाब जैसे खेत
Posted on 23 Apr, 2011 12:16 PM

कच्छ का रण. जिन लोगों ने गुजरात में आकर कच्छ को नहीं देखा उन के दिल-ओ-दिमाग में इस क्षेत्र के बारे में रेगिस्तान जैसी धारणा होगी। यह सही भी है। भौगोलिक दृष्टि से देश के दूसरे बड़े इस जिले का अधिकांश भाग रेगिस्तानी है। इसी लिए कच्छ का रण (रेगिस्तान) कहते हैं। लेकिन हिंदू-मुस्लिम दोनों की श्रद्धा के केंद्र ‘हाजीपीर’ के नजदीक स्थित नरा गांव आइए। धारणा बदल जाएगी।

कश्मीर का ‘गहना’ बचाने में जुटे जरीफ
Posted on 23 Apr, 2011 11:54 AM

श्रीनगर. जरीफ अहमद जरीफ। करीब 67 साल के हैं। उन्हें आज भी 1982 का वह पल याद है। श्रीनगर दूरदर्शन की ओर से राजबाग को जोड़ने वाले पुल को बनाने के मकसद से 300 साल पुराने चिनार को काटने के लिए सरकार के नुमाइंदे पहुंचे थे।

रेत के टीलों पर उगा दिए पेड़
Posted on 23 Apr, 2011 10:10 AM

जोधपुर. रेत के धोरों (टीलों) पर रेत ही नहीं थमती। पेड़ की जड़ें थमना तो दूर की बात है। लेकिन नहीं! इंसान का जज्बा यह कारनामा भी कर सकता है। जोधपुर के ओसियां क्षेत्र का एक गांव है, एकलखोरी। यहां के राणाराम खींचड़ यही कमाल कर रहे हैं।

राणाराम
लाख जतन का लाखोलाव
Posted on 23 Apr, 2011 09:02 AM

हमारा यह छोटा-सा शहर मूंडवा इस मामले में एकदम अनोखा है। नगरवासियों और नगरपालिका- दोनों ने मिलकर यहां के तालाबों की रखवाली की है। और शहर को इन्हीं से मिलता है पूरे वर्ष भर मीठा पानी पीने के लिए। शहर के दक्षिण में न जाने कितने सौ बरस पहले बने लाखोलाव तालाब का यहां विशेष उल्लेख करना होगा।

हमारा शहर बड़ा नहीं है। पर ऐसा कोई छोटा-सा भी नहीं है। इस प्यारे से शहर का नाम है मूंडवा। यह राजस्थान के नागौर जिले में आता है। नागौर से अजमेर की ओर जाने वाली सड़क पर कोई 22 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में है यह मूंडवा। आबादी है कोई चौदह हजार। इसकी देखरेख बाकी छोटे बड़े नगर की तरह ही एक नगरपालिका के माध्यम से की जाती है। शहर छोटा है पर उमर में बड़ा है, काफी पुराना है। इसकी गवाही यहां की सुंदर हवेलियां देती हैं। समय-समय पर इस शहर से कई परिवार बाहर निकले और पूरे भारत वर्ष में व्यापार के लिए गए। हां पर यहां की खास बात यह है कि ये लोग इसे छोड़कर नहीं गए। साल भर ये लोग कोई न कोई निमित्त से,
अपने हाथों रची गांव की जीवन रेखा
Posted on 21 Apr, 2011 09:21 AM

ग्रामीणों ने तालाब खरीदा, नहर बनाई और बढ़ गया अंटाली गांव में जलस्तर
आसींद (भीलवाड़ा)/उदयपुर.गांव वालों ने मिल कर निजी तालाब को खरीदा। फिर अपने श्रम और अर्थ दान को जारी रखते हुए नहर बनाई। बाद में इस संपदा को सरकार से भी जोड़ा।

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