पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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ज्योतिष सम्बन्धी कहावतें
Posted on 25 Mar, 2010 02:50 PM
अखै तीज रोहिनी न होई। पौष, अमावस मूल न जोई।।
राखी स्रवणो हीन विचारो। कातिक पूनों कृतिका टारो।।
महि-माहीं खल बलहिं प्रकासै। कहत भड्डरी सालि बिनासै।।


शब्दार्थ- तज-छोड़ना। मही-धरती। खल-दुष्ट।
हरहट नारि बास एकबाह
Posted on 25 Mar, 2010 12:20 PM
हरहट नारि बास एकबाह, परुवा बरद सुहुत हरवाह।
रोगी होइ होइ इकलन्त, कहैं घाघ ई विपत्ति क अन्त।।

भावार्थ- कर्कशा स्त्री, अकेले का घर, पराया बैल, आलसी हलवाहा, रोगी होकर अकेले रहना, घाघ कहते हैं कि इससे बढ़कर और कोई विपत्ति नहीं होगी।

हँसुआ ठाकुर खँसुआ चोर
Posted on 25 Mar, 2010 12:18 PM
हँसुआ ठाकुर खँसुआ चोर।
इन्हैं ससुरवन गहिरे बोर।।


भावार्थ- हँस कर बात करने वाले ठाकुर और खाँसी आने वाले चोर इन ससुरों को गहरे पानी में डुबो देना चाहिए।

सांझै से परि रहती खाट
Posted on 25 Mar, 2010 12:15 PM
सांझै से परि रहती खाट, पड़ी भड़ेहरि बारह बाट।
घर आँगन, सब घिन-घिन होय, घग्घा गहिरे देव डुबोय।।


शब्दार्थ- भड़ेहरि- बर्तन आदि। घिन-गंदा।

भावार्थ- जो स्त्री सांझ से ही खाट पर पड़ी सोती हो और उसके घर की चीजें तितर-बितर हों, और जिसका घर-आंगन धिनाता रहता हो, ऐसी औरत को घाघ के अनुसार गहरे पानी में डुबो देना ही श्रेष्ठ होता है।

सधुवै दासी, चौरवै खाँसी
Posted on 25 Mar, 2010 12:13 PM
सधुवै दासी, चौरवै खाँसी, प्रेम बिनासै हाँसी।
घग्घा उनकी बुद्धि बिनासै, खाय जो रोटी बासी।।


भावार्थ- साधु को दासी, चोर को खाँसी और प्रेम को हँसी (उपहास) नष्ट कर देती है। इसी तरह जो बासी रोटी खाते हैं उनकी भी बुद्धि नष्ट हो जाती है।

सावन घोड़ी भादौं गाय
Posted on 25 Mar, 2010 12:07 PM
सावन घोड़ी भादौं गाय। माघ मास जो भैंस बिआय।।
कहैं घाघ यह साँची बात। आप मरै कि मालिकै खाय।।


भावार्थ- घाघ कहते हैं कि यदि घोड़ी सावन में और गाय भादों में और भैंस माघ के महीने में बच्चा देती है तो या तो वह स्वयं मर जायेगी या अपने मालिक को खा जायेगी।

लरिका ठाकुर बूढ़ दिवान
Posted on 25 Mar, 2010 12:05 PM
लरिका ठाकुर बूढ़ दिवान।
ममिला बिगरै साँझ बिहान।।


भावार्थ- यदि ठाकुर (राजा, जमींदार) बच्चा हो और उसका मंत्री बुड्ढा हो तो दोनों में कभी मेंल नहीं खा सकता और सुबह शाम में किसी वक्त झगड़ा हो सकता है।

राँड़ मेंहरिया अन्ना भैंसा
Posted on 25 Mar, 2010 12:02 PM
राँड़ मेंहरिया अन्ना भैंसा।
जब बिचलै तब होवै कैसा।।


भावार्थ- विधवा स्त्री और बिना स्वामी का स्वच्छंद भैंसा यदि बहक जायें तो अनर्थ ही होगा।

माँ ते पूत पिता ते घोड़ा
Posted on 25 Mar, 2010 12:01 PM
माँ ते पूत पिता ते घोड़ा।
बहुत न होय तो थोड़म थोड़ा।


भावार्थ- माँ का गुण पुत्र में और पिता का गुण घोड़े में अधिक नहीं तो थोड़ा जरूर होता है।

मुये चाम से चाम कटावैं
Posted on 25 Mar, 2010 11:59 AM
मुये चाम से चाम कटावैं, सकरी भुंइ मां सोवै।
घाघ कहैं ये तीनौ भकुवा, उढ़रि गये पर रोवै।।


शब्दार्थ- मुये-मरे हुए। चाम-चमड़ा। सकरी-कम जगह। भकुआ-बेवकूफ। ओढ़री-बहकाकर लाई गयी स्त्री।
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