वाराणसी जिला

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इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश की धज्जी
Posted on 24 Apr, 2009 06:01 PM वाराणसी। रोज सुबह आठ ट्रैक्टर टालियां मिट्टी लेकर डाफी-लंका मार्ग से पहुंचती हैं शुक्रेश्वर तालाब। शुक्रेश्वर तालाब एक ऐतिहासिक तालाब है, जो कि धीरे –धीरे पट रहा है।
नोबेल पचौरी
Posted on 06 Mar, 2009 08:04 AM
मनोज तिवारी
वाराणसी में भारतीय रेलवे के डीजल लोकोमोटिव वर्क्स से प्रबंधकीय कार्य की शुरुआत करने वाले भारत के एक सपूत आरके पचौरी ने नोबल शांति पुरस्कार में भारत को हिस्सेदारी दिलाई है। नैनीताल में जन्मे इस देसी सपूत ने दुनिया के बड़े से बड़े मंच पर हिंदुस्तान का परचम लहराया है। नोबल पुरस्कार में हिस्सेदारी बांटने का यह गौरव पचौरी की अध्यक्षता वाली इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) संस्था को मिला है। पारिस्थितिकी परिवर्तन और उसमें बनने वाली नीतियों में भी पचौरी का अंतर्राष्ट्रीय दखल हमेशा रहा है। इस दखल ने ही देश के इस पर्यावरणविद को पारिस्थितिकी के क्षेत्र में विश्वव्यापी आयाम दिलवाया।

नैनीताल की सुरम्य वादियां श्री पचौरी को हमेशा पर्यावरण सुरक्षा के प्रति उनके दायित्व की याद दिलाती रहीं।
जल संकट से निजात पाना है तो पौधरोपण करना होगा
Posted on 03 Mar, 2009 09:58 AM
23 Feb,09 वाराणसी। पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा ने कहा कि दिनों दिन दूषित हो रहे जल और गहराते पर्यावरण संकट से निजात पाना है तो पौधरोपण करना होगा। अभी यह सुनने को मिल रहा है कि जहरीली शराब पीने से इतने लोगों की मौत हो गई।
पानी की कमी से मर रहे हैं दुर्लभ प्रजाति के लंगूर
Posted on 24 Feb, 2009 07:22 AM मई 12, 2008/ (आईएएनएस)

वाराणसी, सोनभद्र के जंगलों में पानी की कमी और भीषण गर्मी के चलते भारी संख्या में काले मुंह वाले बंदरों की मौत हो रही है।
वरूणा
Posted on 04 Feb, 2009 07:08 AM

डा0 व्योमेश चित्रवंश एडवोकेट

विश्व की सांस्कृतिक राजधानी प्राच्य नगरी वाराणसी को पहचान देने वाली वरूणा नदी तेजी से समाप्त हो रही है। कभी वाराणसी व आसपास के जनपदों की जीवनरेखा व आस्था की केन्द्र रही वरूणा आज स्वयं मृत्युगामिनी होकर अस्तित्वहीन हो गयी है।

वरुणा
कैसे मरने दें गंगा को
Posted on 25 Jan, 2009 08:50 AM जब हरिद्वार में ही गंगा जल आचमन के योग्य नहीं रहा, तो इलाहाबाद और वाराणसी का क्या कहना
- स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती


अनेक वर्षों से मैं माघ मास की मौनी अमावस्या के पर्व पर प्रयाग जाता रहा हूं। कुछ वर्ष पूर्व जब मैं माघ मेले के अपने शिविर में जा रहा था, तब अनेक महात्माओं, कल्पवासियों एवं पुरी के शंकराचार्य जी आदि ने मुझे बताया कि गंगा की धारा अत्यंत क्षीण हो गई है और उसका जल लाल दिखाई दे रहा है। मुझे भी ले जाकर गंगा की वह स्थिति दिखाई गई। मैंने जब लोगों से गंगा की इस दुर्दशा का कारण जानना चाहा, तो पता चला कि गंगोत्री से नरौरा तक गंगा जी को कई स्थानों पर बांध दिया गया है, जिसके कारण हिमालय का यह पवित्र जल कई स्थानों पर ठहर कर सड़ रहा है, और जो जल दिखाई दे रहा है,
कोका कोला इंडिया (वाराणसी संयंत्र): 4आर दृष्टिकोण
Posted on 08 Oct, 2008 09:29 PM वाराणसी से २२ किलोमीटर दूर मेंहदीगंज में कोका कोला इंडिया प्लांट 4आर (रिड्यूस, रीयूज़, रिसाइकिल और रिजार्ज) यानी पानी के इस्तेमाल में कमी, दोबारा इस्तेमाल, पुनर्चक्रण और पुनर्भरण के दृष्टिकोण पर केंद्रित है। कंपनी की बहुआयामी गतिविधियों में पानी के इस्तेमाल पर जागरुकता कार्यक्रम, बोतलों की सफ़ाई के दौरान पानी के न्यूनतम इस्तेमाल के लिए नोज़ल के आकार में कमी, स्टीम कंडेंसेट का दोबारा इस्तेमाल, गंदे
काशी की आंखों का पानी मर चुका है!
यह एक संस्कृति की परिवर्तन की कथा है। हम वरुणा, नदी के देवता, के घावों को ठीक करने का प्रयास करते हैं, पर हमारा परिश्रम उस पार के मलबे में और पॉलीथीनों के ढलानों में, जो वरुणा-जल को गंदा करते हैं, डूब जाता है। आज वह अपनी वेदना पर सिसक रही है, पर उसके पास रोने का पानी भी नहीं है। उसके किनारों से विकास का शोर सुनाई पड़ता है। बीच में आते हैं किला कोहना के जंगल। जब वह राजघाट की इन सुनसान घाटियों में पहुंचती है, तो कारखानों के ज़हर से मिलकर, वरुणा फ़ेन-फ़ेन होकर समुद्र में मिलती है। अपना बचा-खुचा मन और संवरा चुके पानी की एक क्षीण-सी नाली, गंगा को सौंप कर वरुणा अपना मुंह जंगलों की ओर फेरकर लजाती है, तो संगम की चटखदार दुपहरिया भी काली पड़ जाती है।

Posted on 18 Oct, 2023 12:03 PM

मेरे गांव से चलने वाली बस तब 9 रूपये के किराये में बनारस पहुंचा देती थी, जहां से आने में अब 120 रूपये लगते हैं। यह 1984 की बात है। कम्प्यूटर नाम की किसी नयी मशीन का दुनिया में तब बहुत शोर मचा हुआ था, जो लाखों और करोड़ों के जोड़-घटाने पलक झपकते कर देती थी। दुनिया विकास के नये-नये मानदण्ड स्थापित कर रही थी। हमारा देश भी विकसित होने लगा था। अपने गांव के देहाती वातावरण से निकलकर जब हम बनारस पहुंचते

कारखानों के रसायनों से मिलकर झाग-झाग हुआ वरुणा का पानी, PC-– सर्वोदय जगत
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