उत्तराखंड

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कहीं झीलों का शहर कहीं लहरों पर घर
Posted on 17 Oct, 2010 08:51 AM सोचो कि झीलों का शहर हो, लहरों पे अपना एक घर हो..। कोई बात नहीं जो झीलों के शहर में लहरों पर अपना घर नहीं हो पाए, कुछ समय तो ऐसा अनुभव प्राप्त कर ही सकते हैं जो आपको जिंदगी भर याद रहे। कहीं झीलों में तैरते घर तो कहीं, उसमें बोटिंग का रोमांचक आनन्द। कहीं झील किनारे बैठकर या वोटिंग करते हुए डॉलफिन मछली की करतबों का आनन्द तो कहीं धार्मिक आस्थाओं में सराबोर किस्से। ऐसी अनेक झीलें हैं हमारे देश में जिनमें से 10 महत्वपूर्ण झीलों पर एक रिपोर्ट।

डल लेक

जहां लहरों पर दिखते हैं घर


डल लेक का तो नाम ही काफी है। देश की सबसे अधिक लोकप्रिय इस लेक को प्राकृतिक खूबसूरती के लिए तो दुनियाभर में जाना ही जाता है, यह लोगों की आस्था से भी जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में इस लेक के किनारे देवी दुर्गा की निवास स्थली थी और इस स्थली का नाम था सुरेश्वरी। लेकिन यह झील ज्यादा लोकप्रिय हुई अपने प्राकृतिक और भौगोलिक
पुष्कर लेक
पर्यटन का कचरा
Posted on 11 Oct, 2010 03:20 PM गंगा के किनारे अनेक गांव और छोटे-बड़े शहर मिले। मगर एक भी गांव ऐसा नहीं मिला, जिसका गंदा पानी गंगा की ओर जाता हो। वे पारंपरिक ढंग से इस प्रकार बने हैं कि उनकी ढलान गंगा की ओर न जाकर दूसरी तरफ को है, ताकि गंदा पानी गंगा में न जाए। मगर एक भी ऐसा शहर नहीं मिला, जिसकी गंदगी गंगा में न जाती हो। उत्तराखंड भारत के तीन सबसे नए राज्यों में से एक है। उत्तर प्रदेश से अलग होने का एक बड़ा कारण-यहां की भौगोलिक स्थिति का उत्तर प्रदेश की भौगोलिक स्थिति से भिन्न होना माना गया। पर अलग राज्य बनने के दस साल बाद भी ऐसा कहीं नहीं लगता कि यहां विकास का स्वरूप किसी प्रकार भी उत्तर प्रदेश या शेष मैदानी इलाके से भिन्न है या यहां के नेताओं, अफसरों और प्रभावशाली वर्ग के दिमाग में कोई अलग तरह की कल्पना है।

उत्तराखंड राज्य बनने के बाद पर्यटन को लेकर एक सम्मेलन में जाने का मौका मिला। वहां चाय के समय एक साधु से मुलाकात हुई। ‘विकास’ के मुद्दे पर बात होने लगी।
टिहरी बांध के मामले में सर्वोच्च अदालत के आदेश का उल्लंघन
Posted on 02 Oct, 2010 05:43 PM

टिहरी बांध के संबंध में एन. डी. जयाल बनाम भारत सरकार एवं अन्य के मुकदमे में उच्चतम न्यायालय के माननीय न्यायाधीश आर. वी. रविन्द्रन एवं माननीय न्यायाधीश एच. एल. गोखले की पीठ ने उत्तराखंड राज्य सरकार एवं टीएचडीसी को 17 सितंबर 2010 को आदेश दिया कि वे एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप बंद करें और प्रभावित लोगों का पुनर्वास कार्य करें। उन्हें छः सप्ताह के अंदर स्थिति एवं कार्यवाही रिपोर्ट दाखिल करना है। हालांकि उच्चतम न्यायालय का फैसला काबिले तारीफ है लेकिन इसमें टीएचडीसी एवं राज्य सरकार को अपनी जिम्मेदारी पूरा करने की जरूरी गंभीरता का अभाव है।

 

याचिकाकर्ता एड्वोकेट कोलिन गोंसाल्विस एवं एड्वोकेट संजय पारिख द्वारा उजागर किये गये समस्याओं पर अदालत ने राज्य सरकार एवं टीएचडीसी को कई अहम मुद्दों पर ध्यान देने की जरूरत पर जोर दिया है। सर्वोच्च अदालत का कहना है कि बांध में पानी का स्तर बढ़ने के कारण भागीरथी नदीघाटी में तीन गांवों रौलाकोट, नाकोट, स्यांसु के डूबने की आशंका है। वास्तव में,

लोहारी नागपाला शुभ शुरुआत
Posted on 22 Sep, 2010 11:10 AM विकास की अंधी दौड़ में हमारी सरकारें नदियों का गला घोंटने में लगी हैं। उनकी कुदृष्टि से महान गंगा भी बची नहीं है। आज गंगा का नैसर्गिक जल प्रवाह खतरे में है। बिजली पैदा करने के नाम पर गंगा नदी सुरंगों में डाली जा रही है। इससे अविरल प्रवाह अवरुद्ध हो गया है।नदियों का प्रवाह शुद्ध रहे, इसके लिए जरूरी है कि उनका नैसर्गिक जल प्रवाह बना रहे। नदियों का वेग ही उनकी शुद्धि के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक तत्व है। ‘रजसा शुद्धते नारी, नदी वेगेन शुद्धते।’ अर्थात जैसे रजस्वला होकर नारी शुद्ध हो जाती है उसी प्रकार नदियां अपने वेग से शुद्ध होती है । यह भारतीय संस्कृति की अनुभव सिद्ध मान्यता है। इसलिए अविरल नैसर्गिक प्रवाह नदी की निर्मलता के लिए अनिवार्य शर्त है। लेकिन विकास की अंधी दौड़ में हमारी सरकारें नदियों का गला घोंटने में लगी हैं। उनकी कुदृष्टि से महान गंगा भी बची नहीं है। आज गंगा का नैसर्गिक जल प्रवाह खतरे में है। बिजली पैदा करने के नाम पर गंगा नदी सुरंगों में डाली जा रही है। इससे अविरल प्रवाह अवरुद्ध हो गया है।

पहाड़ को खोखला करती परियोजनाएं
Posted on 13 Sep, 2010 02:19 PM
आखिरकार केंद्र सरकार ने लोहारी नागपाला जलविद्युत परियोजना को रोकने का फैसला कर लिया है लेकिन खतरा अभी टला नहीं है।
हिमालय दिवस: पर्वत को बचाने की एक मुहिम
Posted on 12 Sep, 2010 12:24 PM हिमालय दिवस के बहाने इस मुहिम को परवान चढ़ाने वालों की सोच है कि हिमालय की रक्षा तभी होगी जब उसकी गोद में रचे-बसे करोड़ों लोग वहीं रहेंगे। बीते कुछ वर्षो से पलायन की जो गति है, उसने इस चिंता को और बढ़ाया है। अगर पलायन की गति यूं ही बनी रही तो कंकड़-पत्थर का पहाड़ रहकर भी क्या करेगा। यह मानने में किसी को एतराज नहीं होना चाहिए कि सुदूर पहाड़ों में कोई बड़ा कारखाना नहीं लग सकता। इस सूरत में हमें पहाड़ के बाशिंदों को रोकना आसान नहीं होगा। वे तभी रुकेंगे जब उनके लिए आजीविका के ठोस इंतजाम किए जाएँगे। अभी पहाड़ों पर जो भी सामान बिक रहा है, सब नीचे से जा रहा है। ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि पहाड़ में पैदा होने वाले अन्न और वन उपजों से वहीं रोजगार के अवसर पैदा किए जाएँ। बर्फ के घर यानी हिमालय को बचाने की पहल उत्तराखंड की धरती से शुरू हो रही है। सभी को लगने लगा है कि इस पर्वत श्रृंखला की रक्षा अब बेहद जरूरी है। अब भी न जागे तो देर हो जाएगी। हिमालय के खतरे में पड़ने का मतलब पर्यावरण के साथ ही कई संस्कृतियों का खतरे में पड़ना है।

संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन पर बने अन्तरराष्ट्रीय पैनल की तीन साल पहले आई रिपोर्ट में जब इस बात का खुलासा किया गया था कि हिमालय के ग्लेशियर 2035 तक पिघल कर समाप्त हो जाएँगे, तब ग्लोबल वार्मिग से जोड़कर पूरी दुनिया के विज्ञानी चिंता में डूब गए थे। बाद में यह मामला हल्का पड़ा, लेकिन इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता कि ग्लेशियर पिघलने की गति तेज हुई है। उत्तराखंड सरकार ने कई वर्ष पहले जलनीति के ड्राफ्ट में स्वीकार किया है कि राज्य में स्थित 238 ग्लेशियर तेजी से सिकुड़ रहे हैं। इन्हीं से गंगा, यमुना और काली जैसी नदियाँ निकलती हैं।
मनरेगा लौटायेगा खेतों की हरियाली ?
Posted on 08 Sep, 2010 03:42 PM
सरकार अब महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत पर्वतीय क्षेत्रों में बंजर पड़ी कृषि भूमि को सुधारने का प्रयास कर रही है। पौड़ी जिले में 37 हजार 829 हेक्टेयर ऐसी भूमि बंजर पड़ी है, जो कभी हरी-भरी हुआ करती थी। प्राकृतिक स्रोतों के धीरे-धीरे सूखने, कम वर्षा और उस पर जंगली जीवों द्वारा खेतों में मचाये आतंक के चलते ग्रामीणों को यह घाटे का सौदा लगने लगा। दुर्गम चट्टानों को काट
जलते वनों के प्रति उपेक्षा और हमारा भविष्य
Posted on 07 Sep, 2010 12:27 PM
गर्मियों में मन को अत्यन्त व्यथित करने वाला एक दृश्य उत्तराखण्ड हिमालय में चारों ओर दिखाई देता है। वह है, वनों को निर्दयतापूर्वक नष्ट करती हुई वनाग्नि की धधकती लाल लपलपाती लपटें और उनसे उठते धुएँ के गुबार। यहाँ की खूबसूरत वादियाँ मानो कार्बन डाइ ऑक्साइड के गैस चैम्बर्स बन जाती हैं। पर मानव का संसार चलता रहता है, वन विभाग के ऑफिस भी सदैव की तरह चलते रहते हैं। वनकर्मियों की हड़तालें भी अपनी मा
श्रीनगर के लिये अभिशाप बन कर आई है जल विद्युत परियोजना
Posted on 07 Sep, 2010 10:50 AM
कुछ समय पहले तक श्रीनगर से आगे बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर जाते हुए नदी का विहंगम दृश्य एक अलग तरह का आनंद देता था। लेकिन अब इस पूरे इलाके में सतर्कता बढ़ गई है और शुरू हो गया है हमारे प्राकृतिक संसाधनों को हड़पने का एक घिनौना खेल। जहाँ कभी हरियाली होती थी वहाँ पर मिट्टी के ढेर और इन ढेरों से झाँकते हुए परियोजना के दौरान उखाड़ फेंके गए पेड़-पौंधे ही दिखाई देते हैं। अब भी लोग अपनी गाड़ियों
हिमालयी झीलों से लुप्त होती मछलियां
Posted on 26 Jul, 2010 03:56 PM
हिमालय की झीलों में बढ़ते प्रदूषण के कारण मछलियों की कई प्रजातियां नष्ट होने की कगार पर पहुंच गई हैं। बढ़ते प्रदूषण और जल में कम होते ऑक्सीजन के कारण मछलियों की कई प्रजातियां आकार और भार में कमतर होती जा रही हैं। सबसे अधिक दुष्परिणाम झेलने वाली मछलियों में महाशीर मछली का नाम लिया जा सकता है। भीमताल स्थित राष्ट्रीय शीत मत्स्यकी अनुसंधान केंद्र के आंकड़े इन तथ्यों को तसदीक करते हैं जहां एक ओर
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