Posted on 31 Mar, 2012 04:14 PMछत्तीसगढ़ राज्य के राजनांदगाव जिले के कुछ ग्रामों में स्थित कुओं तथा नलकूपों के जल में आर्सेनिक अधिक मात्रा में पाया गया। यह जल सतत पेयजल के रुप में उपयोग में लाने से वहां के शहरहवासियों पर उसका घातक प्रभाव देखा गया। पेयजल द्वारा आर्सेनिक के सतत सेवन से कैंसर जैसे महाभयंकर रोगों से पीड़ित रुग्ण पाये गये। इन जल स्रोतों की आर्सेनिक की मात्रा के लिए जांच की गई और आर्सेनिक से होने वाले उन घातक परिणामो
Posted on 31 Mar, 2012 03:59 PMभारत का ग्रामीण क्षेत्र पेयजल के लिए मुख्यतः भूजल पर निर्भर है। वैज्ञानिक सिद्धांत एवं मानक को दुर्लक्षित कर अंधाधुंध/अव्यवस्थित भूजल के उपयोग से हमारे सामने दो विवादास्पद विषय खड़े हुए हैं। पहला स्रोत की बहनशीलता (Sustainability) में कमी और दूसरा जल गुणवत्ता में गिरावट। पेयजल गुणवत्ता की सभी समस्याओं में फ्लोराइड जल प्रदूषण से स्वास्थ्य पर परिणाम की समस्या, पेयजल में फ्लोराइड की मात्रा अनुज्ञेय स
Posted on 31 Mar, 2012 03:21 PMकिसी भी जल स्रोत का उपयोग पेयजल के रूप में लाने से पूर्व उसका रासायनिक और जैविक परीक्षण आवश्यक है। रासायनिक तत्वों से पेयजल की स्वास्थ्य एवं सौन्दर्य पर समस्याओं का पता चलता है तथा जैविक तत्वों की प्रचुरता से जल की योग्यता जांची जा सकती है। आगरा जल संयंत्र का अपरिष्कृत स्रोत, यमुना नदी एवं किथम तालाब है। इस स्रोतों में फाइटोप्लांकटन की आबादी पाई गई है। इसकी प्रचुरता से जल संबंध संयत्र के छन्ने अवर
Posted on 31 Mar, 2012 03:01 PMभारत के ग्रामीण क्षेत्र में भूजल तथा शहरी क्षेत्र में मुख्यतः सतही जल का उपयोग होता है। सतही जल में रासायनिक प्रदूषण की समस्या साधारणतः कम पायी जाती है, परंतु संचित सतह जल के निचली सतह में कार्बनिक, लोह तथा मैंगनीज घुलनशीलता के कारण प्रायः संपूर्ण जल प्रदूषित हो जाता है। यह समस्या जल के निचली सतह में अधिकतम होती है और ऊपरी सतह तक आते-आते कम हो जाती है। इनकी घुलनशीलता के कारण परंपरागत जल प्रक्रिया
Posted on 31 Mar, 2012 12:44 PMचयनित भारतीय नदियों के समस्थानिक गुणधर्मों में स्थानिक एवं कालिक परिवर्तनों का अध्ययन, अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजैन्सी (IAEA) वियना, ऑस्ट्रिया द्वारा प्रायोजित विशाल नदी बेसिनों में जलविज्ञानीय प्रक्रमों का समस्थानिक चित्रण नामक अनुसंधान परियोजना का एक भाग है। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य समस्थानिक तकनीकी द्वारा वृहद नदी बेसिनों के जल चक्र के अध्ययन के लिए वृहद् पद्धति को विकसित एवं प्रदर्शित
Posted on 31 Mar, 2012 12:35 PMभूजल हमारे देश का अत्यंत बहुमूल्य प्राकृति संसाधन है। सुचारु प्रबंधन तथा बचाव के बिना, भूजल संसाधन में गिरावट आती जा रही है। हर वर्ष जल की आवश्यकता भिन्न-भिन्न उपयोगों के लिए बढ़ती जा रही है जिससे जल की कमी होती जा रही है। जल प्रदूषण की समस्या के कारण स्थिति और भी खराब हो गई है। राजस्थान प्रदेश का कुल भूजल संसाधन वहां बढ़ती हुई घरेलू एवं औद्योगिक जरूरतों की पूर्ति करने में अपर्याप्त है। प्रदेश के
Posted on 31 Mar, 2012 12:28 PMजयपुर जिले के भूजल की सिंचाई हेतु उपयुक्तता की जांच के लिए भू-जल गुणता का निर्धारण किया गया। 38 भूजल- नमूने मानसून से पूर्व एवं पश्चात् गहरे एवं अति गहरे कूपों से एकत्र किए गए। सार (SAR) के मानों का मानसून से पूर्व एवं पश्चात की अवधि के लिए निर्धारण किया गया। सार (SAR) के मान संकेत करते हैं के अधिकांश नमूने निम्न सोडियम क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। सिंचाई जल का यूं.एस.
Posted on 31 Mar, 2012 12:21 PMजल जनित रोगों की रोकथाम में क्लोरीन एक महत्वपूर्ण विसंक्रामक के रूप में उपयोग में लाया जाता है। पेय जल के शुद्धिकरण हेतु क्लारीन का उपयोग भारत में लंबे समय से किया जा रहा है। क्लोरिन जल में उपस्थित कार्बनिक यौगिक (फ्लविक एवं ह्रयूमिक एसिड) से क्रिया कर विसंक्रामक उत्पाद का निर्माण करती है जो ट्रायहैलोमीथेन होते हैं जिनमें प्रमुखतः क्लोरोफार्म, डाइक्लोरोब्रोमीथेन, डाइब्रोमोक्लोरीमीथेन एवं ब्रोमोफार