वर्तमान परिवेश में अधिकतम वाष्पन के कारण दिल्ली के भू-जल में लवणता की वृद्धि

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली भारत की राजधानी है एवं सर्वाधिक जनसंख्या वाले नगरों की सूची में देश तृतीय स्थान रखता है। समुद्र तट से अत्यधिक दूर होने तथा हिमालय पर्वत के निकट होने के बावजूद दिल्ली के अधिकांश भाग में लवणीय भू-जल स्तर काफी नीचे स्तर पर उपलब्ध है। भू-जल की लवणता के स्रोत को चयनित करने का कोई निश्चित कारण उपलब्ध नहीं है। भू-जल की लवणता को दूर किये बिना निरंतर बढ़ती जनसंख्या की मांग को पूरा करने के लिए भू-जल का प्रयोग नहीं किया जा सकता। अतः यह समय की आवश्यकता है कि प्राकृतिक एवं कृत्रिम विधियों द्वारा भू-जल की लवणता को दूर किया जाये एवं प्राकृतिक स्वच्छ जल जोनों को चयनित किया जाये। प्रस्तुत प्रपत्र में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की भू-जल लवणता के कारणों के खोजने के प्रयत्न किये गये हैं।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली भारत का तीसरा सर्वाधिक प्रदूषित शहर है। दिल्ली में गहरे जलदायको के लवणता में वृद्धि के कारण भू-जल संसाधनों की उपलब्धता सीमित है। कुछ स्थलों पर लवणता 30000 माइक्रो सीमेन/सेमी तक पायी गयी है। 100 से अधिक भू-जल के नमूनों के परिणाम दर्शाते हैं कि दिल्ली के पश्चिमी – उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में लवणता की मात्रा अधिक पाई गयी है। दक्षिण क्षेत्र के अधिकांश भागों में स्वच्छ जल अन्तर्वाह के कारण लवणता में कमी पाई गयी। इन लावण्य क्षेत्र के अतिरिक्त मालरवा झील व गंदे नाले (पालम नाला) के निकट स्थानीय लावण्य क्षेत्र भी देखे जा सकते हैं। जल गुणवत्ता एवं मात्रा के न्यूनतम परिवर्तन एवं वृहत स्थानीय उपलब्धता के कारण विशिष्टतः सतही जलाशयों की अनुपलब्धता वाले क्षेत्रों में, भू-जल को विश्व के अधिकांश भागों में जल के मुख्य स्रोत के रूप में स्वीकार किया गया है। केवल एशिया में ही लगभग एक मिलियन लोग इस संसाधन पर पूर्ण रुप से निर्भर है। पुनः पूरन से पूर्व एवं बाढ़ में पर्यावरण में निरंतर सम्पर्क के कारण, अपने मुख्य स्रोत वर्षन से भू-जल की गुणता में परिवर्तन पाया गया है। क्षेत्र से प्राप्त भू-जल की रसायनिक गुणवत्ता अनेकों घटकों जैसे पुनः पूरण क्षेत्र में जल रसायन पुनः पूरण के समय वायुमंडलीय अन्तेवश एवं अंतर्स्मंदन के समय मृदा के साथ परस्पर सम्बंध पर निर्भर करती है।

यद्यपि भू-जल में घुलित पदार्थों, सूक्ष्म कार्बनिक पदार्थ नहीं पाये जाते तथापि उच्च लवणीयकरण एवं प्रदूषण जल को पीने एवं सिंचाई के लिये अनुपयुक्त बनाते हैं। लवणता गंगा के जलोढ़ के अर्ध-शुष्क भागों विशिष्ट-पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली एवं बिहार के कुछ भागों, पश्चिमी बंगाल, उड़िसा, केरल, तमिलनाडू, आंध्र प्रदेश एवं महाराष्ट्र के तटीय जल दायको एवं राजस्थान व गुजरात के शुष्क भागों में वितरित है।

जल के लवण से अधिक मात्रा के न केवल जल के स्वाद को अरूचिकर बनाती है वस्तुतः इसमें पाई जाने वाले धातु पदार्थ डायरिया जैसी शारीरिक बीमारियों, पशुधन में बांझपन, वनस्पति विकास में अवरोध प्रदान करते हैं। भू-जल लवणता में वृद्धि के मुख्य कारण वातावरणीय प्रदूषण, वाष्पण, घुलनशील पदार्थों की उपसतह में विलेयता, जल एकत्रीकरण खंडों में वाष्पन एवं नमक में वृद्धि इत्यादि है।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली भारत की राजधानी है एवं सर्वाधिक जनसंख्या वाले नगरों की सूची में देश तृतीय स्थान रखता है। समुद्र तट से अत्यधिक दूर होने तथा हिमालय पर्वत के निकट होने के बावजूद दिल्ली के अधिकांश भाग में लवणीय भू-जल स्तर काफी नीचे स्तर पर उपलब्ध है। भू-जल की लवणता के स्रोत को चयनित करने का कोई निश्चित कारण उपलब्ध नहीं है। भू-जल की लवणता को दूर किये बिना निरंतर बढ़ती जनसंख्या की मांग को पूरा करने के लिए भू-जल का प्रयोग नहीं किया जा सकता। अतः यह समय की आवश्यकता है कि प्राकृतिक एवं कृत्रिम विधियों द्वारा भू-जल की लवणता को दूर किया जाये एवं प्राकृतिक स्वच्छ जल जोनों को चयनित किया जाये। प्रस्तुत प्रपत्र में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की भू-जल लवणता के कारणों के खोजने के प्रयत्न किये गये हैं।

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