Posted on 12 Nov, 2015 11:35 AM पंचायत समिति, सवाई माधोपुर (जिला सवाई माधोपुर) अतिदोहित (डार्क) श्रेणी में वर्गीकृत
हमारे पुरखों ने सदियों से बूँद-बूँद पानी बचाकर भूजल जमा किया था। वर्ष 2001 में भूजल की मात्रा सवाई माधोपुर जिले में 1783 मिलियन घनमीटर थी जो अब घटकर 1497 मिलियन घनमीटर रह गई है। भूजल अतिदोहन के कारण पानी की कमी गम्भीर समस्या बन गई है।
Posted on 12 Nov, 2015 11:31 AM पंचायत समिति, खण्डार (जिला सवाई माधोपुर) संवेदनशील (क्रिटिकल) श्रेणी में वर्गीकृत
हमारे पुरखों ने सदियों से बूँद-बूँद पानी बचाकर भूजल जमा किया था। वर्ष 2001 में भूजल की मात्रा सवाई माधोपुर जिले में 1783 मिलियन घनमीटर थी जो अब घटकर 1497 मिलियन घनमीटर रह गई है। भूजल अतिदोहन के कारण पानी की कमी गम्भीर समस्या बन गई है।
Posted on 10 Nov, 2015 03:42 PM पंचायत समिति, गंगापुर (जिला सवाई माधोपुर) अतिदोहित (डार्क) श्रेणी में वर्गीकृत
हमारे पुरखों ने सदियों से बूँद-बूँद पानी बचाकर भूजल जमा किया था। वर्ष 2001 में भूजल की मात्रा सवाई माधोपुर जिले में 1783 मिलियन घनमीटर थी जो अब घटकर 1497 मिलियन घनमीटर रह गई है। भूजल अतिदोहन के कारण पानी की कमी गम्भीर समस्या बन गई है।
Posted on 10 Nov, 2015 03:40 PM पंचायत समिति, बोंली (जिला सवाई माधोपुर) अतिदोहित (डार्क) श्रेणी में वर्गीकृत
हमारे पुरखों ने सदियों से बूँद-बूँद पानी बचाकर भूजल जमा किया था। वर्ष 2001 में भूजल की मात्रा सवाई माधोपुर जिले में 1783 मिलियन घनमीटर थी जो अब घटकर 1497 मिलियन घनमीटर रह गई है। भूजल अतिदोहन के कारण पानी की कमी गम्भीर समस्या बन गई है।
Posted on 10 Nov, 2015 03:38 PM पंचायत समिति, बामनवास (जिला सवाई माधोपुर) अतिदोहित (डार्क) श्रेणी में वर्गीकृत
हमारे पुरखों ने सदियों से बूँद-बूँद पानी बचाकर भूजल जमा किया था। वर्ष 2001 में भूजल की मात्रा सवाई माधोपुर जिले में 1783 मिलियन घनमीटर थी जो अब घटकर 1497 मिलियन घनमीटर रह गई है। भूजल अतिदोहन के कारण पानी की कमी गम्भीर समस्या बन गई है।
जीवन के लिए जल जरूरी है और इसकी प्राप्ति तभी संभव है जब मानव और प्रकृति के बीच सह अस्तित्व अक्षुण्ण रहे। इस हेतु जरूरी है कि नदियों को शुद्ध-सदानीरा बनाएं; जहां बैठकर सर्वत्र हरियाली की आशा-आकांक्षा के साथ अपना वर्तमान व साझे भविष्य को संवारने वाली सर्वहितकारी नीति-निर्माण की जा सके। नीति-निर्माण से पूर्व समूचे देश में नदियों के किनारे छोटे-छोटे कुम्भ आयोजित किए जाएं, जहां प्रकृति संरक्षण से जुड़े सभी सवालों पर सार्थक बहस हो। डाँग क्षेत्र के लोगों को जल-कुम्भ करने की प्रेरणा भी जयपुर जिले के नीमी गांव में हुए जल-सम्मेलन को देख कर ही मिली थी। नीमी गांव के लोगों ने अपने गांव में तरुण भारत संघ के आंशिक सहयोग से पानी के कई अच्छे काम किए थे। पानी के कारण उनकी खेती की पैदावार में आशातीत वृद्धि हुई थी। अचानक आई इस समृद्धि की खुशी में तथा देशभर के अन्य लोगों को प्रेरणा देने के उद्देश्य से उन्होंने तरुण भारत संघ के सहयोग से एक विशाल जल-सम्मेलन का आयोजन रखा था।
उल्लेखनीय है कि इसी सम्मेलन से जल-बिरादरी जैसे राष्ट्रीय स्तर के एक बड़े संगठन का भी जन्म हुआ था।
Posted on 13 Mar, 2014 12:27 PM‘महेश्वरा नदी’ को सदानीरा बनाने का काम यहां के समाज के सदाचार और श्रम से ही संभव हो सका है। यह एक अद्भुत काम है; जिसे यहां के लोगों ने सहजता, सरलता व श्रमनिष्ठा के भाव से निर्विघ्न सम्पन्न किया है। उम्मीद है कि ‘महेश्वरा नदी’ के इस सामाजिक साझे श्रम के अभिक्रम को देख कर अब दूसरे क्षेत्र के लोग भी इससे अच्छी सीख ले सकेंगे। ‘महेश्वरा नदी’ राजस्थान की उन सात नदियों में से एक है; जिन्हें समाज के साझे श्रम ने पुनर्जीवित कर सदानीरा बनाया। लेकिन अगर आप यहां के सिंचाई विभाग के किसी सरकारी अधिकारी, इंजीनियर अथवा जिला कलेक्टर तक से भी पूछेंगे तो वह आपको ‘महेश्वरा नदी’ के बारे में कुछ भी नहीं बता सकेगा; कारण कि इस इलाके के किसी भी सरकारी नक्शे में महेश्वरा नाम की कोई नदी दर्ज ही नहीं है।
लेकिन सपोटरा की डांग में बसने वाला हर बाशिंदा आपको ‘महेश्वरा नदी’ के बारे में तथा इसके पुनः लौटे जीवन के बारे में सहर्ष विस्तृत जानकारी दे देगा।
Posted on 23 Feb, 2009 09:42 AM -विपिन दिसावर
‘बिन पानी सब सून’ यह कहावत शहरों के साथ-साथ गांवों और कस्बों और यहां तक कि जंगलों में भी लागू होती है। खासतौर पर संरक्षित वन क्षेत्रों में तो बिना पानी के वहां के आकर्षण को जीवंत रखना संभव ही नहीं है। ऐसे में बेहतर जल प्रबंधन का प्रयास ही कामयाब हो सकता है।
Posted on 25 Aug, 2014 11:35 AMराजस्थान में सवाई माधोपुर जिले की करमोदा तहसील के दोंदरी गांव के प्रयोगधर्मी और प्रगतिशील किसान लियाकत अली अपनी हर सफलता का श्रेय उद्यानिकी को देते हैं। अपनी पांच हेक्टेयर कृषि भूमि में से तीन हेक्टेयर पर उन्होंने अमरूदों का बाग लगा रखा है। उनके बगीचे में इस वर्ष अमरूदों की बम्पर पैदावार हुई है। छोटे-बड़े सभी पेड़ फलों से लदे हुए हैं। कई पेड़ों की डालें तो फलों के वजन से जमीन पर गिरी हुई हैं। लेखक
जब कोई व्यक्ति अथवा समुदाय समाज के भले के लिए काम करता है तो भगवान भी उसकी मदद करता है। इसीलिए तो अगले ही वर्ष ‘मोरे वाले ताल’ ने अपने जलागम क्षेत्र से बहकर आई हुई बरसात की हर एक बूंद को अपने आगार में रोक लिया। एक साथ इतना सारा पानी देखकर लोग हर्षातिरेक से आनंद-विभोर हो उठे। लेकिन दूसरे ही क्षण यह सोच कर चिंतित भी हो गए कि इतना बड़ा ताल है, कहीं टूट गया तो…? सब ने मिल कर चिंतन किया, और अंततः समाधान भी खोज लिया। बस! फिर क्या था? सभी स्त्री-पुरुष व बच्चे अपना-अपना फावड़ा-परात लेकर पाल की सुरक्षा के लिए तैनात रहने लगे। डांग में पानी कैसे आया? ‘महेश्वरा नदी’ का पुनर्जन्म कैसे हुआ? डांग के लोगों के चेहरे पर रौनक कैसे आई? यह सब जानने के लिए हमें थोड़ा इस काम की पृष्ठभूमि में जाना होगा। पानी के काम का प्रारम्भ तरुण भारत संघ ने सर्वप्रथम वर्ष 1985-86 ई. में अलवर जिले की तहसील थानागाजी के गांव गोपालपुरा से शुरू किया था और सुखद आश्चर्य की बात है कि पानी को संरक्षित करने की प्रेरणा भी हमें गोपालपुरा गांव के ही एक अनुभवी बुजुर्ग मांगू पटेल से ही मिली थी। मांगू पटेल की प्रेरणा से, सबसे पहले इस गांव में चबूतरे वाली जोहड़ी का काम शुरू हुआ था।