महाराष्ट्र

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बहुत कुछ कहती है मालिन की तबाही
Posted on 04 Aug, 2014 11:54 AM

आपदा आने के पश्चात राहत कार्य शुरू करने में कम-से-कम समय लगना चाहिए और यदि पहले से ही चेतावनी म

कोल्हापुर में होगा चौथा भारत विकास संगम
Posted on 05 Jul, 2014 04:15 PM तारिख : 19-25 जनवरी 2015 तक।
स्थान : श्रीक्षेत्र सिद्धगिरि मठ, कणेरी गांव, कोल्हापुर।


सरकार देश के विकास को लेकर क्या सोचती है, इसका ढिंढोरा तो खूब पीटा जाता है, लेकिन विकास के बारे में समाज की क्या सोच है, इसे जानने के बहुत कम अवसर मिलते हैं। कोल्हापुर का सम्मेलन इस कमी को पूरा करेगा। यहां आपको उस भारत के दर्शन होंगे, जिसके सपने देश की सज्जनशक्ति देखती है। भारत विकास संगम की कोशिश है कि ये सपने कुछ गिने-चुने समाजसेवी ही नहीं, बल्कि देश की जनता भी देखे। और जब कोई सपना देश की जनता देखती है तो वह सपना-सपना नहीं रहता, वह सच्चाई बन जाता है।

उत्तर प्रदेश और कर्नाटक की यात्रा करता हुआ भारत विकास संगम का राष्ट्रीय सम्मेलन अब महाराष्ट्र के कोल्हापुर में दस्तक देने वाला है। ‘भारतीय संस्कृति उत्सव’ के नाम से आयोजित हो रहे इस बार के सम्मेलन की मेजबानी का जिम्मा श्री क्षेत्र सिद्धगिरि मठ, कणेरी के ऊपर है। 19 जनवरी से 25 जनवरी, 2015 के बीच होने वाले इस सम्मेलन की तैयारियां जोरों पर है।

भारत विकास संगम का चौथा सम्मेलन भारतीय संस्कृति उत्सव के नाम से महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में आयोजित किया जा रहा है। कोल्हापुर को मां लक्ष्मी का धाम माना जाता है। जो लोग तिरुपति में भगवान विष्णु का दर्शन करने जाते हैं, वे यहां मां लक्ष्मी के दर्शन के लिए अवश्य आते हैं।
जमनालाल बजाज पुरस्कार के लिए आवेदन आंमंत्रित
Posted on 30 Dec, 2013 02:49 PM

2014 में रचनात्मक कार्य में विशेष योगदान के लिए


.रचनात्मक सामाजिक कार्य के एक या अधिक क्षेत्रों में विशेष योगदान के लिए व्यक्ति/व्यक्तियों को प्रतिवर्ष प्रदान किया जाने वाला रु.पांच लाख का नकद पुरस्कार, ट्रॉफी तथा प्रशस्तिपत्र।

इस पुरस्कार के अंतर्गत ग्राम विकास, स्वास्थ्य एवं सफाई, खादी एवं ग्रामोद्योग, गो सेवा नशाबंदी, हरिजन एवं आदिवासी कल्याण, कुष्ठरोग निवारण, महिला विकास व बाल कल्याण, साक्षरता प्रसार, कृषि क्षेत्र में सहकारिता एवं सामूहिक प्रवृत्तियों को सशक्त करना, स्थानीय नेतृत्व का निर्माण कर स्वयंसेवी प्रयासों को प्रोत्साहन देना आदि, गांधीजी द्वारा प्रारंभ किए गए रचनात्मक कार्यों पर विचार किया जाता है।
लोहे के सरदार और सरदार सरोवर
Posted on 31 Oct, 2013 02:35 PM बांध की 90 मीटर ऊंचाई से प्रभावित अलिराजपुर एवं बड़वानी जिले के पहाड़ी गाँवों के सैकड़ों आदिवासी परिवा
प्यास
Posted on 23 Sep, 2013 04:28 PM दोपहर सिर पर थी। धूप आंखों को डस रही थी। पसीने की धारा बह रही थी। प्रमोद अपनी दुकान में बैठकर सड़क पर दौड़ते वाहनों को देखने में समय काट रहा था। उसका एक बेकाम का मित्र मोहन काले दुकान में बैठा था। वह कोई अखबार पढ़ रहा था।

इतने में प्रमोद की मां हाथ में लोटा लिए वहां आई।

‘देख रे प्रमोद... कितने जीव-जंतु हो गए इस पानी में...’
सरदार सरोवर: ख़ामियाज़ा भुगतती नर्मदा घाटी
Posted on 23 Sep, 2013 09:50 AM बांध के पर्यावरणीय असर जैसे मछली की प्रजातियाँ नष्ट होकर उनका उत्पादन घटना, जंगल डूबने से गाद से बांध
युवाबल से युगपरिवर्तन
Posted on 30 Aug, 2013 10:07 AM हिवड़े बाजार जाने पर आपको तरतीब से बने गुलाबी मकान दिखेंगे। साफ और चौड़ी सड़कें भी। नालियां बंद हैं और जगह-जगह कूड़ेदान लगे हैं। हर जगह एक अनुशासित व्यवस्था के दर्शन होते हैं। शराब और तंबाकू के लिए अब गांव में कोई जगह नहीं रही। हर घर में पक्का शौचालय है। खेतों में मकई, ज्वार, बाजरा, प्याज और आलू की फसलें लहलहा रही हैं। सूखे से जूझते किसी इलाके में यह देखना किसी चमत्कार से कम नहीं। 235 परिवारों और 1,250 लोगों की आबादी वाले इस गांव में 60 करोड़पति हैं। ताराबाई मारुति कभी दिहाड़ी मजदूर थीं। आज उनके पास 17 गायें हैं और वे ढाई सौ से तीन सौ लीटर दूध रोज बेचती हैं। वे बताती हैं, 'पहले मजदूरी करते थे। पांच-दस रुपये रोज मिलते थे तो खाना मिलता था। आज आमदनी बढ़ गई है।' हिवड़े बाजार नाम के जिस गांव में ताराबाई रहती हैं वहां के ज्यादातर लोगों का अतीत कभी उनके जैसा ही था। वर्तमान भी उनके जैसा ही है। आज राजनीति से लेकर तमाम क्षेत्रों में जिस युवा शक्ति को अवसर देने की बात हो रही है वह युवा शक्ति कैसे समाज की तस्वीर बदल सकती है, इसका उदाहरण है हिवड़े बाजार। दो दशक पहले तक महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में बसे इस गांव की आबादी का एक बड़ा हिस्सा मजदूरी करने आस-पास के शहरों में चला जाता था। यानी उन साढ़े छह करोड़ लोगों में शामिल हो जाता था जो 2011 की जनगणना के मुताबिक देश के 4000 शहरों और कस्बों में नारकीय हालात में जी रहे हैं।
Hiware Bazar
‘हमारे गांव में हम ही सरकार’
Posted on 23 Aug, 2013 04:48 PM महाराष्ट्र के मेंढा गांव का उदाहरण बताता है कि स्वाभिमान और स्वावलंबन के साथ आजीविका का अवसर मिले तो नक्सलवाद से जूझते इलाकों में खुशहाली का नया अध्याय शुरू हो सकता है..

देवाजी टोफा वह शख्स हैं जिन्होंने अधिकारों के लिए इस क्रांति की अलख जगाई थी। अंग्रेजों ने 1927 में भारतीय वन अधिनियम बनाकर एक तरह से जंगल पर निर्भर समाज को उससे बेदखल कर दिया था। 2006 में केंद्र सरकार द्वारा वनाधिकार कानून पास करने के साथ ही यह अधिकार एक बार फिर से बहाल हुआ। लेकिन हक की यह बहाली सिर्फ फाइलों में हुई थी। वन विभाग के अधिकारियों ने मेंढावासियों को उनका हक देने की राह में जमकर रोड़े अटकाए, मेंढा के पास बांस का अकूत भंडार था। इसके अलावा उसके 1,800 हेक्टेयर के जंगलों में चिरौंजी, महुआ, तेंदू पत्ता, हर्र, बरड़ आदि भी खूब होते हैं। महाराष्ट्र के गढ़चिरोली की सबसे बड़ी पहचान फिलहाल यही है कि यह नक्सल प्रभावित जिला है। आदिवासी और जंगल की बहुलता वाले इस जिले की धनौरा तहसील में एक गांव है मेंढा। मेंढा और लेखा नाम के दो टोलों का यह गांव देखने में कहीं से भी विशेष नहीं लगता। लेकिन अपनी करनी से इसने वह मिसाल कायम की है जिसमें नक्सलवाद से जूझते देश के कई इलाकों में खुशहाली का एक नया अध्याय कैसे शुरू हो, इसका संकेत छिपा है। मेंढा के नाम दो बड़ी उपलब्धियाँ हैं। यह देश का पहला गांव है जिसने सामुदायिक वनाधिकार हासिल किया और जिसकी ग्राम सभा को ट्रांजिट परमिट (टीपी) रखने का अधिकार मिला। इस अधिकार ने गांववालों को अपने जंगल का बांस अपनी मर्जी से बेचने की आजादी दी है। इससे वे न सिर्फ स्वाभिमान के साथ आजीविका कमा रहे हैं बल्कि वनों की सुरक्षा भी सुनिश्चित कर रहे हैं।

सबल, स्वावलंबी, अपने हित के फैसले खुद ले सकने वाला और स्वाभिमानी, महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज की यही आत्मा थी। लेकिन विकास की आधुनिक परिभाषा में गांधी और उनके सिद्धांत पीछे छूटते गए।
बड़े बांध और समझदारी का सूखा
Posted on 28 Jun, 2013 11:53 AM राष्ट्रीय स्तर पर भी बड़े बांधों की उपयोगिता पर कई सवाल उठते हैं।
मानव – निर्मित सूखा
Posted on 28 Jun, 2013 11:45 AM महाराष्ट्र के इस साल के भयानक सूखे की तुलना 1972 से की गई है। लेकिन 1972 की तुलना में 2012 में बारिश की हालत बेहतर रही है। दरअसल गन्ने की खेती के अंधाधुंध प्रसार, बड़े बांधों पर गैर जरूरी जोर, संसाधनों की बर्बादी और पानी की उपेक्षा से कृत्रिम मानव-निर्मित संकट पैदा हुआ है। महाराष्ट्र इस वर्ष सबसे भयानक सूखे का सामना कर रहा है। केंद्रीय कृषी मंत्री शरद पवार और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान दोनों ने कहा है कि इस वर्ष का सूखा 1972 के मुकाबले ज्यादा भीषण हैं। 1972 के सूखे को अकाल की संज्ञा दी गई थी। इन राजनेताओं द्वारा इस वर्ष के सूखे की तुलना 1972 के सूखे से करना ऐसा आभास देने की कोशिश है कि 1972 के समान इस वर्ष का सूखा भी एक प्राकृतिक विपदा है।

अलबत्ता, यदि हम 17 सूखा प्रभावित जिलों (अहमदनगर, पुणे, शोलापुर, सतारा, सांगली, औरंगाबाद, जालना, बीड़, लातूर, उस्मानाबाद, नांदेड़, अकोला, नासिक, धुले, जलगांव, परभणी और बुलढाणा) में 1972 व 2012 में बारिश के आंकड़ों की तुलना सामान्य बारिश के पैटर्न से करें, तो एक अलग ही तस्वीर सामने आती है। बारिश के हिसाब से देखें तो इस वर्ष के सूखे को 1972 से बदतर नहीं कहा जा सकता।
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