परिणीता दाडेकर एवं हिमांशू ठक्कर

परिणीता दाडेकर एवं हिमांशू ठक्कर
मानव – निर्मित सूखा
Posted on 28 Jun, 2013 11:45 AM
महाराष्ट्र के इस साल के भयानक सूखे की तुलना 1972 से की गई है। लेकिन 1972 की तुलना में 2012 में बारिश की हालत बेहतर रही है। दरअसल गन्ने की खेती के अंधाधुंध प्रसार, बड़े बांधों पर गैर जरूरी जोर, संसाधनों की बर्बादी और पानी की उपेक्षा से कृत्रिम मानव-निर्मित संकट पैदा हुआ है। महाराष्ट्र इस वर्ष सबसे भयानक सूखे का सामना कर रहा है। केंद्रीय कृषी मंत्री शरद पवार और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान दोनों ने कहा है कि इस वर्ष का सूखा 1972 के मुकाबले ज्यादा भीषण हैं। 1972 के सूखे को अकाल की संज्ञा दी गई थी। इन राजनेताओं द्वारा इस वर्ष के सूखे की तुलना 1972 के सूखे से करना ऐसा आभास देने की कोशिश है कि 1972 के समान इस वर्ष का सूखा भी एक प्राकृतिक विपदा है।

अलबत्ता, यदि हम 17 सूखा प्रभावित जिलों (अहमदनगर, पुणे, शोलापुर, सतारा, सांगली, औरंगाबाद, जालना, बीड़, लातूर, उस्मानाबाद, नांदेड़, अकोला, नासिक, धुले, जलगांव, परभणी और बुलढाणा) में 1972 व 2012 में बारिश के आंकड़ों की तुलना सामान्य बारिश के पैटर्न से करें, तो एक अलग ही तस्वीर सामने आती है। बारिश के हिसाब से देखें तो इस वर्ष के सूखे को 1972 से बदतर नहीं कहा जा सकता।
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