तारिख : 19-25 जनवरी 2015 तक।
स्थान : श्रीक्षेत्र सिद्धगिरि मठ, कणेरी गांव, कोल्हापुर।
भारत विकास संगम का चौथा सम्मेलन भारतीय संस्कृति उत्सव के नाम से महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में आयोजित किया जा रहा है। कोल्हापुर को मां लक्ष्मी का धाम माना जाता है। जो लोग तिरुपति में भगवान विष्णु का दर्शन करने जाते हैं, वे यहां मां लक्ष्मी के दर्शन के लिए अवश्य आते हैं।
कोल्हापुर शहर के बाहरी इलाके में कणेरी गांव के पास एक प्राचीन मठ है, जो श्रीक्षेत्र सिद्धगिरि मठ के नाम से प्रसिद्ध है। इसी मठ के प्रांगण में भारत विकास संगम का चौथा सम्मेलन आयोजित हो रहा है।
पिछले आयोजनों की तरह इस सम्मेलन में भी कई दिनों तक यहां पूरे देश से सज्जनशक्ति का जमावड़ा रहेगा। इसमें लगभग दस हजार समाजसेवी हिस्सा लेंगे। विविध सामाजिक कार्यों में प्रतिष्ठा प्राप्त इन समाजसेवियों के काम को जानने, समझने और देखने के लिए पूरे देश से लगभग दस लाख लोगों के आने की संभावना है।
सरकार देश के विकास को लेकर क्या सोचती है, इसका ढिंढोरा तो खूब पीटा जाता है, लेकिन विकास के बारे में समाज की क्या सोच है, इसे जानने के बहुत कम अवसर मिलते हैं। कोल्हापुर का सम्मेलन इस कमी को पूरा करेगा। यहां आपको उस भारत के दर्शन होंगे, जिसके सपने देश की सज्जनशक्ति देखती है। भारत विकास संगम की कोशिश है कि ये सपने कुछ गिने-चुने समाजसेवी ही नहीं, बल्कि देश की जनता भी देखे। और जब कोई सपना देश की जनता देखती है तो वह सपना-सपना नहीं रहता, वह सच्चाई बन जाता है।
श्री क्षेत्र सिद्धगिरी मठ के पवित्र परिसर में आयोजित होने वाला भारत विकास संगम का चौथा सम्मेलन एक ऐतिहासिक आयोजन होगा। लगभग 100 एकड़ में आयोजित होने वाले इस सम्मेलन की विशालता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन सात दिनों में आयोजकों को लगभग 10 लाख अतिथियों के भोजन, नाश्ते, चाय के साथ उनके लिए स्नान, शौच और आवास की व्यवस्था करनी है। कार्यक्रम के सुचारू प्रबंधन के लिए 10,000 स्वयंसेवकों की निरंतर उपस्थिति और लगभग 7 करोड़ रुपए नकद की जरूरत पड़ेगी। मठ से जुड़े गांवों और अपने तमाम अनुयाइयों से मठ ने अपील की है कि वे कार्यक्रम के निमित्त घर में गुल्लक रखें और प्रतिदिन उसमें कुछ न कुछ पैसे डालें। साथ ही सभी से हर रोज एक मुट्ठी चावल अलग से निकाल कर रखने के लिए कहा गया है। दिसंबर, 2014 से इन गुल्लकों और चावल को मठ परिसर में स्वीकार किया जाएगा।
अब तक मठ को महाराष्ट्र के कई जिलों से मदद का आश्वासन मिल चुका है। पूरे आयोजन के लिए कोल्हापुर के लोग सूजी देंगे। इचलकरंजी से 1 ट्रक तुअर दाल, सातारा से 1 टैंकर खाद्य तेल, सिंधुदुर्ग से पक्की सब्जियां, पुणे से 1 ट्रक शक्कर, रत्नागिरि से 7 ट्रक चावल का आश्वासन मिला है। गोवा के लोगों ने 1 ट्रक नारियल देने की बात कही है। मठ के आस-पास के गांव वाले हरी सब्जियां उपलब्ध कराएंगे। सम्मेलन के सात दिन पूरी गहमाहमी के दिन होंगे। उन सात दिनों की भव्यता को लिखकर बता पाना संभव नहीं, फिर भी उसका एक अनुमान लगाने के लिए सातों दिनों का विवरण यहां दिया गया है।
इस दिन कार्यक्रम के लिए तैयार की गई विभिन्न झांकियों का उद्घाटन किया जाएगा। आगामी सात दिनों में क्या-क्या होगा, इसका पूर्व दर्शन कराने के साथ ही सम्मेलन की थीम ‘मेरा जिला-मेरी दुनिया, मेरा गांव-मेरा देश’ के बारे में विशेष रूप से जानकारी दी जाएगी।
सम्मेलन का यह दिन कृषि और किसानों के लिए समर्पित होगा। विभिन्न मंचों से कई विशेषज्ञ किसानों को कम पूंजी में अधिक और स्वास्थ्यवर्धक उपज लेने के तरीके सिखाएंगे। किसानों से जुड़े तमाम मुद्दों पर सवाल-जवाब के साथ कई आधुनिक तकनीकों की भी जानकारी दी जाएगी।
कृषि उत्सव के जरिए गैर कृषक समूहों को भी किसान और किसानी से जुड़े मुद्दों से परिचित कराया जाएगा। खाद्यान्न सबकी जरूरत है। जो किसान इसे उपजाते हैं, उनके बारे में जानकारी होना सभी के लिए जरूरी है।
देश में विकास और खुशहाली के लिए नागरिकों का स्वस्थ रहना अत्यंत जरूरी है। इसके लिए सम्मेलन में एलोपैथी, नेचुरोपैथी, योग, आयुर्वेद, यूनानी, होमियोपैथी और तमाम देशी उपचार पद्धतियों के बारे में जानकारी देने के साथ इससे जुड़े विशेषज्ञों से सीधे सलाह लेने की भी व्यवस्था होगी। मानव शरीर को ठीक रखने के लिए ईश्वर ने इतनी व्यवस्था कर रखी है, इसके बावजूद हम अस्वस्थ होते हैं, तो उसके जिम्मेदार हम स्वयं हैं। आरोग्य हमारी सहज स्थिति है, यही रेखांकित करना इस दिन का मूल उद्देश्य है।
देश का युवा शुद्ध, सात्विक जीवन जीते हुए समाज और राष्ट्र के प्रति अपनी भूमिका किस प्रकार निभाए, इस बारे में कई वास्तविक उदाहरण प्रस्तुत किए जाएंगे। युवाओं द्वारा सेवा और ज्ञान के क्षेत्र में किए गए उल्लेखनीय कार्यों, अनुसंधानों को विशेष रूप से बताया और दिखाया जाएगा।
युवा ज्ञानोत्सव के दिन युवाओं के संदर्भ में अतीत की विरासत, वर्तमान का सच और भविष्य की संभावनाएं तथा चुनौतियां, सभी के ऊपर समग्रता के साथ प्रकाश डाला जाएगा।
सम्मेलन का यह दिन मातृशक्ति को समर्पित है। आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ आदर्श परिवार निर्माण की कला, आहार-विहार-परिहार का ज्ञान और संस्कृति की रक्षा में मातृशक्ति का योगदान कैसे हो, इसके लिए इस दिन विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
इस दिन लगभग एक लाख वारकरि लोग 1,000 मृदंग और 10,000 ताल के साथ सुबह के भजन से लेकर रात के भजन-कीर्तन और आरती तक अपनी विविध लोककलाओं का प्रदर्शन करेंगे। पंढरपुर के गोल रिंगण का प्रदर्शन सभी के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र होगा।
पिछले 6 दिनों के विभिन्न कार्यक्रमों की संक्षिप्त रिपोर्ट सभी के सामने प्रस्तुत की जाएगी। सभी लोग अपने गांव, मुहल्ले और जिलों में जाकर क्या कर सकते हैं, इस बारे में समग्र जानकारी दी जाएगी। भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम और विशिष्ट अतिथियों के भाषण के साथ सम्मेलन का समापन होगा।
सम्मेलन में प्रत्येक दिन की विषयवस्तु के अनुसार विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम प्रतिदिन अलग-अलग आयोजित किए जाएंगे, लेकिन कुछ चीजें सातों दिन चलेंगी। इनका विवरण इस प्रकार है-
सम्मेलन में प्रत्येक दिन मंच पर और यहां-वहां विभिन्न प्रकार की लोककलाओं जैसे नृत्य, वादन, गायन आदि के साथ कई रोमांचक शारीरिक करतबों का प्रदर्शन होगा। देश के सभी क्षेत्रों से प्रसिद्ध कलाकारों को बुलाया जाएगा। एक स्थान पर इतनी लोक कलाओं का प्रदर्शन बहुत दुर्लभ होता है। यदि आपकी लोक कलाओं में रुचि है तो आपको 19 से 25 जनवरी के बीच कोल्हापुर में रहना अनिवार्य होगा।
विभिन्न प्रकार की कलात्मक वस्तुओं के साथ-साथ सम्मेलन में आपको कई इलाकों के विशेष उत्पाद बड़े ही किफायती दरों में खरीदने को मिलेंगे। कला, संस्कृति और विकास से जुड़े साहित्य के लिए भी सम्मेलन में विशेष स्टॉल लगाए जाएंगे। कुटीर उद्योग से जुड़े छोटे-बड़े यंत्रों की प्रदर्शनी के साथ उनकी खरीद-बिक्री की भी व्यवस्था रहेगी। देश के विभिन्न इलाकों की खास वस्तुओं एवं कारीगरी के कारनामों को यहां न केवल आप देख सकेंगे, बल्कि उन्हें खरीद भी सकेंगे। लगे हाथ आपका इन्हें बनाने वाले कारीगरों से भी परिचय हो, इसकी भी व्यवस्था रहेगी। इसी के साथ पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद लेने के लिए भी सम्मेलन में आपको अनगिनत अवसर मिलेंगे।
40 एकड़ में फैली सजीव कृषि प्रदर्शनी कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण होगी। इसमें लगभग 150 फसलों को वास्तविक खेत में देखा जा सकेगा। साथ ही जैविक खेती से जुड़ी कई जानकारियां यहां प्रत्यक्ष देखने को मिलेंगी। आयोजन स्थल में गौशाला, डेयरी डेवलपमेंट, गुरुकुल से लेकर आज तक की शिक्षा पद्धतियां, विभिन्न प्रकार के युगांतरकारी आविष्कार, महाराष्ट्र और देश के संतों एवं महापुरुषों की झांकियां अत्यंत मनोहारी एवं ज्ञानवर्धक होंगी।
एलोपैथी, नेचुरोपैथी, आयुर्वेद, यूनानी, पुष्प चिकित्सा, संगीत चिकित्सा, पंचगव्य, योग के साथ कई देशी इलाज की पद्धतियों एवं स्वस्थ जीवनशैली की न केवल झांकियों के माध्यम से जानकारी दी जाएगी, बल्कि उसके विशेषज्ञों से दर्शकों को सलाह लेने का भी अवसर मिलेगा। इसी के साथ भौतिक विकास से अक्षय विकास की ओर जाने में देशी गाय, बैल, स्वच्छ ऊर्जा की भूमिका पर प्रदर्शनियां होंगी। मातृशक्ति और युवाशक्ति से जुड़ी झांकियां भी दर्शकों को बहुत कुछ बताएंगी और समझाएंगी। जो चीजें आप साल भर समय लगाकर भी नहीं देख सकते, वो सब कोल्हापुर में सात दिनों में देख पाना संभव होगा।
इन सबके साथ मठ के ग्रामीण म्यूजियम को देखना भी अपने आप में एक यादगार अनुभव होगा। एक स्थान पर जहां एक साथ इतनी सारी चीजें हो रही हों, वहां जाने से भला अपने आप को कैसे रोक पाएंगे।
श्रीक्षेत्र सिद्धगिरि मठ, ग्राम-कणेरी, तालुका-करवीर, जिला-कोल्हापुर, महाराष्ट्र
संपर्क:
विक्रम पाटिल (9421781843), महेश कुमार (9403667177)
ईमेल- siddhagiribvs@gmail.com
वेबसाइट siddhagiri.org
स्थान : श्रीक्षेत्र सिद्धगिरि मठ, कणेरी गांव, कोल्हापुर।
सरकार देश के विकास को लेकर क्या सोचती है, इसका ढिंढोरा तो खूब पीटा जाता है, लेकिन विकास के बारे में समाज की क्या सोच है, इसे जानने के बहुत कम अवसर मिलते हैं। कोल्हापुर का सम्मेलन इस कमी को पूरा करेगा। यहां आपको उस भारत के दर्शन होंगे, जिसके सपने देश की सज्जनशक्ति देखती है। भारत विकास संगम की कोशिश है कि ये सपने कुछ गिने-चुने समाजसेवी ही नहीं, बल्कि देश की जनता भी देखे। और जब कोई सपना देश की जनता देखती है तो वह सपना-सपना नहीं रहता, वह सच्चाई बन जाता है।
उत्तर प्रदेश और कर्नाटक की यात्रा करता हुआ भारत विकास संगम का राष्ट्रीय सम्मेलन अब महाराष्ट्र के कोल्हापुर में दस्तक देने वाला है। ‘भारतीय संस्कृति उत्सव’ के नाम से आयोजित हो रहे इस बार के सम्मेलन की मेजबानी का जिम्मा श्री क्षेत्र सिद्धगिरि मठ, कणेरी के ऊपर है। 19 जनवरी से 25 जनवरी, 2015 के बीच होने वाले इस सम्मेलन की तैयारियां जोरों पर है।भारत विकास संगम का चौथा सम्मेलन भारतीय संस्कृति उत्सव के नाम से महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में आयोजित किया जा रहा है। कोल्हापुर को मां लक्ष्मी का धाम माना जाता है। जो लोग तिरुपति में भगवान विष्णु का दर्शन करने जाते हैं, वे यहां मां लक्ष्मी के दर्शन के लिए अवश्य आते हैं।
कोल्हापुर शहर के बाहरी इलाके में कणेरी गांव के पास एक प्राचीन मठ है, जो श्रीक्षेत्र सिद्धगिरि मठ के नाम से प्रसिद्ध है। इसी मठ के प्रांगण में भारत विकास संगम का चौथा सम्मेलन आयोजित हो रहा है।
पिछले आयोजनों की तरह इस सम्मेलन में भी कई दिनों तक यहां पूरे देश से सज्जनशक्ति का जमावड़ा रहेगा। इसमें लगभग दस हजार समाजसेवी हिस्सा लेंगे। विविध सामाजिक कार्यों में प्रतिष्ठा प्राप्त इन समाजसेवियों के काम को जानने, समझने और देखने के लिए पूरे देश से लगभग दस लाख लोगों के आने की संभावना है।
सरकार देश के विकास को लेकर क्या सोचती है, इसका ढिंढोरा तो खूब पीटा जाता है, लेकिन विकास के बारे में समाज की क्या सोच है, इसे जानने के बहुत कम अवसर मिलते हैं। कोल्हापुर का सम्मेलन इस कमी को पूरा करेगा। यहां आपको उस भारत के दर्शन होंगे, जिसके सपने देश की सज्जनशक्ति देखती है। भारत विकास संगम की कोशिश है कि ये सपने कुछ गिने-चुने समाजसेवी ही नहीं, बल्कि देश की जनता भी देखे। और जब कोई सपना देश की जनता देखती है तो वह सपना-सपना नहीं रहता, वह सच्चाई बन जाता है।
आयोजन की विशालता
श्री क्षेत्र सिद्धगिरी मठ के पवित्र परिसर में आयोजित होने वाला भारत विकास संगम का चौथा सम्मेलन एक ऐतिहासिक आयोजन होगा। लगभग 100 एकड़ में आयोजित होने वाले इस सम्मेलन की विशालता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन सात दिनों में आयोजकों को लगभग 10 लाख अतिथियों के भोजन, नाश्ते, चाय के साथ उनके लिए स्नान, शौच और आवास की व्यवस्था करनी है। कार्यक्रम के सुचारू प्रबंधन के लिए 10,000 स्वयंसेवकों की निरंतर उपस्थिति और लगभग 7 करोड़ रुपए नकद की जरूरत पड़ेगी। मठ से जुड़े गांवों और अपने तमाम अनुयाइयों से मठ ने अपील की है कि वे कार्यक्रम के निमित्त घर में गुल्लक रखें और प्रतिदिन उसमें कुछ न कुछ पैसे डालें। साथ ही सभी से हर रोज एक मुट्ठी चावल अलग से निकाल कर रखने के लिए कहा गया है। दिसंबर, 2014 से इन गुल्लकों और चावल को मठ परिसर में स्वीकार किया जाएगा।
अब तक मठ को महाराष्ट्र के कई जिलों से मदद का आश्वासन मिल चुका है। पूरे आयोजन के लिए कोल्हापुर के लोग सूजी देंगे। इचलकरंजी से 1 ट्रक तुअर दाल, सातारा से 1 टैंकर खाद्य तेल, सिंधुदुर्ग से पक्की सब्जियां, पुणे से 1 ट्रक शक्कर, रत्नागिरि से 7 ट्रक चावल का आश्वासन मिला है। गोवा के लोगों ने 1 ट्रक नारियल देने की बात कही है। मठ के आस-पास के गांव वाले हरी सब्जियां उपलब्ध कराएंगे। सम्मेलन के सात दिन पूरी गहमाहमी के दिन होंगे। उन सात दिनों की भव्यता को लिखकर बता पाना संभव नहीं, फिर भी उसका एक अनुमान लगाने के लिए सातों दिनों का विवरण यहां दिया गया है।
आरंभोत्सव (19 जनवरी)
इस दिन कार्यक्रम के लिए तैयार की गई विभिन्न झांकियों का उद्घाटन किया जाएगा। आगामी सात दिनों में क्या-क्या होगा, इसका पूर्व दर्शन कराने के साथ ही सम्मेलन की थीम ‘मेरा जिला-मेरी दुनिया, मेरा गांव-मेरा देश’ के बारे में विशेष रूप से जानकारी दी जाएगी।
कृषि उत्सव (20 जनवरी)
सम्मेलन का यह दिन कृषि और किसानों के लिए समर्पित होगा। विभिन्न मंचों से कई विशेषज्ञ किसानों को कम पूंजी में अधिक और स्वास्थ्यवर्धक उपज लेने के तरीके सिखाएंगे। किसानों से जुड़े तमाम मुद्दों पर सवाल-जवाब के साथ कई आधुनिक तकनीकों की भी जानकारी दी जाएगी।
कृषि उत्सव के जरिए गैर कृषक समूहों को भी किसान और किसानी से जुड़े मुद्दों से परिचित कराया जाएगा। खाद्यान्न सबकी जरूरत है। जो किसान इसे उपजाते हैं, उनके बारे में जानकारी होना सभी के लिए जरूरी है।
आरोग्य उत्सव (21 जनवरी)
देश में विकास और खुशहाली के लिए नागरिकों का स्वस्थ रहना अत्यंत जरूरी है। इसके लिए सम्मेलन में एलोपैथी, नेचुरोपैथी, योग, आयुर्वेद, यूनानी, होमियोपैथी और तमाम देशी उपचार पद्धतियों के बारे में जानकारी देने के साथ इससे जुड़े विशेषज्ञों से सीधे सलाह लेने की भी व्यवस्था होगी। मानव शरीर को ठीक रखने के लिए ईश्वर ने इतनी व्यवस्था कर रखी है, इसके बावजूद हम अस्वस्थ होते हैं, तो उसके जिम्मेदार हम स्वयं हैं। आरोग्य हमारी सहज स्थिति है, यही रेखांकित करना इस दिन का मूल उद्देश्य है।
युवा ज्ञानोत्सव (22 जनवरी)
देश का युवा शुद्ध, सात्विक जीवन जीते हुए समाज और राष्ट्र के प्रति अपनी भूमिका किस प्रकार निभाए, इस बारे में कई वास्तविक उदाहरण प्रस्तुत किए जाएंगे। युवाओं द्वारा सेवा और ज्ञान के क्षेत्र में किए गए उल्लेखनीय कार्यों, अनुसंधानों को विशेष रूप से बताया और दिखाया जाएगा।
युवा ज्ञानोत्सव के दिन युवाओं के संदर्भ में अतीत की विरासत, वर्तमान का सच और भविष्य की संभावनाएं तथा चुनौतियां, सभी के ऊपर समग्रता के साथ प्रकाश डाला जाएगा।
मातृशक्ति उत्सव (23 जनवरी)
सम्मेलन का यह दिन मातृशक्ति को समर्पित है। आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ आदर्श परिवार निर्माण की कला, आहार-विहार-परिहार का ज्ञान और संस्कृति की रक्षा में मातृशक्ति का योगदान कैसे हो, इसके लिए इस दिन विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
वारकरि उत्सव (24 जनवरी)
इस दिन लगभग एक लाख वारकरि लोग 1,000 मृदंग और 10,000 ताल के साथ सुबह के भजन से लेकर रात के भजन-कीर्तन और आरती तक अपनी विविध लोककलाओं का प्रदर्शन करेंगे। पंढरपुर के गोल रिंगण का प्रदर्शन सभी के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र होगा।
मंगलोत्सव (25 जनवरी)
पिछले 6 दिनों के विभिन्न कार्यक्रमों की संक्षिप्त रिपोर्ट सभी के सामने प्रस्तुत की जाएगी। सभी लोग अपने गांव, मुहल्ले और जिलों में जाकर क्या कर सकते हैं, इस बारे में समग्र जानकारी दी जाएगी। भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम और विशिष्ट अतिथियों के भाषण के साथ सम्मेलन का समापन होगा।
सातों दिन चलने वाले कार्यक्रम
सम्मेलन में प्रत्येक दिन की विषयवस्तु के अनुसार विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम प्रतिदिन अलग-अलग आयोजित किए जाएंगे, लेकिन कुछ चीजें सातों दिन चलेंगी। इनका विवरण इस प्रकार है-
लोककलाओं का प्रदर्शन
सम्मेलन में प्रत्येक दिन मंच पर और यहां-वहां विभिन्न प्रकार की लोककलाओं जैसे नृत्य, वादन, गायन आदि के साथ कई रोमांचक शारीरिक करतबों का प्रदर्शन होगा। देश के सभी क्षेत्रों से प्रसिद्ध कलाकारों को बुलाया जाएगा। एक स्थान पर इतनी लोक कलाओं का प्रदर्शन बहुत दुर्लभ होता है। यदि आपकी लोक कलाओं में रुचि है तो आपको 19 से 25 जनवरी के बीच कोल्हापुर में रहना अनिवार्य होगा।
मेले की चहल-पहल
विभिन्न प्रकार की कलात्मक वस्तुओं के साथ-साथ सम्मेलन में आपको कई इलाकों के विशेष उत्पाद बड़े ही किफायती दरों में खरीदने को मिलेंगे। कला, संस्कृति और विकास से जुड़े साहित्य के लिए भी सम्मेलन में विशेष स्टॉल लगाए जाएंगे। कुटीर उद्योग से जुड़े छोटे-बड़े यंत्रों की प्रदर्शनी के साथ उनकी खरीद-बिक्री की भी व्यवस्था रहेगी। देश के विभिन्न इलाकों की खास वस्तुओं एवं कारीगरी के कारनामों को यहां न केवल आप देख सकेंगे, बल्कि उन्हें खरीद भी सकेंगे। लगे हाथ आपका इन्हें बनाने वाले कारीगरों से भी परिचय हो, इसकी भी व्यवस्था रहेगी। इसी के साथ पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद लेने के लिए भी सम्मेलन में आपको अनगिनत अवसर मिलेंगे।
प्रदर्शनी एवं झांकियां
40 एकड़ में फैली सजीव कृषि प्रदर्शनी कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण होगी। इसमें लगभग 150 फसलों को वास्तविक खेत में देखा जा सकेगा। साथ ही जैविक खेती से जुड़ी कई जानकारियां यहां प्रत्यक्ष देखने को मिलेंगी। आयोजन स्थल में गौशाला, डेयरी डेवलपमेंट, गुरुकुल से लेकर आज तक की शिक्षा पद्धतियां, विभिन्न प्रकार के युगांतरकारी आविष्कार, महाराष्ट्र और देश के संतों एवं महापुरुषों की झांकियां अत्यंत मनोहारी एवं ज्ञानवर्धक होंगी।
एलोपैथी, नेचुरोपैथी, आयुर्वेद, यूनानी, पुष्प चिकित्सा, संगीत चिकित्सा, पंचगव्य, योग के साथ कई देशी इलाज की पद्धतियों एवं स्वस्थ जीवनशैली की न केवल झांकियों के माध्यम से जानकारी दी जाएगी, बल्कि उसके विशेषज्ञों से दर्शकों को सलाह लेने का भी अवसर मिलेगा। इसी के साथ भौतिक विकास से अक्षय विकास की ओर जाने में देशी गाय, बैल, स्वच्छ ऊर्जा की भूमिका पर प्रदर्शनियां होंगी। मातृशक्ति और युवाशक्ति से जुड़ी झांकियां भी दर्शकों को बहुत कुछ बताएंगी और समझाएंगी। जो चीजें आप साल भर समय लगाकर भी नहीं देख सकते, वो सब कोल्हापुर में सात दिनों में देख पाना संभव होगा।
इन सबके साथ मठ के ग्रामीण म्यूजियम को देखना भी अपने आप में एक यादगार अनुभव होगा। एक स्थान पर जहां एक साथ इतनी सारी चीजें हो रही हों, वहां जाने से भला अपने आप को कैसे रोक पाएंगे।
श्रीक्षेत्र सिद्धगिरि मठ, ग्राम-कणेरी, तालुका-करवीर, जिला-कोल्हापुर, महाराष्ट्र
संपर्क:
विक्रम पाटिल (9421781843), महेश कुमार (9403667177)
ईमेल- siddhagiribvs@gmail.com
वेबसाइट siddhagiri.org
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