सदानंद देशमुख

सदानंद देशमुख
प्यास
Posted on 23 Sep, 2013 04:28 PM
दोपहर सिर पर थी। धूप आंखों को डस रही थी। पसीने की धारा बह रही थी। प्रमोद अपनी दुकान में बैठकर सड़क पर दौड़ते वाहनों को देखने में समय काट रहा था। उसका एक बेकाम का मित्र मोहन काले दुकान में बैठा था। वह कोई अखबार पढ़ रहा था।

इतने में प्रमोद की मां हाथ में लोटा लिए वहां आई।

‘देख रे प्रमोद... कितने जीव-जंतु हो गए इस पानी में...’
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