कर्नाटक

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कृषक नदी घटप्रभा
Posted on 01 Mar, 2011 05:00 PM घटप्रभा और मलप्रभा हमारी ओर के कर्नाटक की प्रमुख नदियां हैं। वे स्वभाव से किसान हैं। वे जहां जाती हैं वहां खेती करती हैं, जमीन को खाद देती हैं, पानी देती हैं और मेहनत करने वाले लोगों को समृद्धि देती हैं। इसमें भी गोकाक के पास एक बड़ा बांध बनाकर मनुष्य ने इस नदी की शक्ति बढ़ा दी है। जहां नदी के पानी की पहुंच न थी, वहां इस बांध के कारण वह पहुंच गयी। घटप्रभा का नाम लेते ही गोकाक के पास का लंबा बांध ध
जल संकट के कारकों की बानगी
Posted on 14 Feb, 2011 10:05 AM

कर्नाटक के बीजापुर जिले की बीस लाख की आबादी को पानी की त्राहि-त्राहि के लिए गरमी का इंतजार नहीं करना पड़ता है।

कहने को इलाके में जल भंडारण के अनगिनत संसाधन मौजूद हैं लेकिन बारिश का पानी यहां टिकता ही नहीं हैं। लोग सूखे नलों को कोसते हैं, जबकि उनकी किस्मत को आदिलशाही जल प्रबंधन के बेमिसाल उपकरणों की उपेक्षा का दंश लगा हुआ है। समाज और सरकार पारंपरिक जल-स्रोतों- कुओं, बावडि़यों और तालाबों में गाद होने की बात करते हैं जबकि हकीकत में गाद तो उन्हीं के माथे पर है। सदा नीरा रहने वाले बावड़ी-कुओं को बोरवेल और कचरे ने पाट दिया तो तालाबों को कंक्रीट का जंगल निगल गया।

भगवान रामलिंगा के नाम पर दक्षिण के आदिलशाहों ने जल संरक्षण की अनूठी 'रामलिंगा व्यवस्था' को शुरू किया था। लेकिन समाज और सरकार की उपेक्षा के चलते आज यह समृद्ध परंपरा विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है। चार सदी पहले अनूठे जल-कुंडों का निर्माण कर तत्कालीन राजशाही ने इस इलाके को जल-संरक्षण का रोल-मॉडल बनाया था।

water crisis
जोग का प्रपात
Posted on 23 Oct, 2010 02:17 PM हिन्दुस्तान की बड़ी से बड़ी सोने की खानें मैसूर में ही है। भद्रावती के लोहे के कल-कारखाने की कीर्ति बढ़ती ही जा रही है। और कृष्णसागर तालाब तो मानव-पराक्रम का एक सुन्दर नमूना है। यह तो हो ही नहीं सकता कि ऐसे मैसूर राज्य को गिरसप्पा के प्रपात को भुनाकर खाने की बात सूझी न हो। किन्तु अब तक यह बात अमल में नहीं आयी-इतनी बड़ी शक्ति का कौन सा उपयोग किया जायठेठ बचपन में जब मैं पश्चिम समुद्र के किनारे कारवार में था तब से ही, गिर सप्पा के बारे में मैंने सुना था। उस समय सुना था कि कावेरी नदी पहाड़ पर से नीचे गिरती है और उसकी इतनी बड़ी आवाज होती है कि दो मील की दूरी पर एक के ऊपर एक रखी हुई गागरें हवा के धक्के से ही गिर जाती हैं! तब फिर उस प्रपात की आवाज तो कहां तक पहुंचती होगी? बाद में जब भूगोल पढ़ने लगा तब मन में संदेह पैदा हुआ कि कावेरी का उद्गम तो ठेठ कुर्ग में है और वह पूर्व-समुद्र से जा मिलती है। वह पश्चिम घाट के पहाड़ पर से नीचे गिर ही नहीं सकती। तब गिरसप्पा में जो गिरती है वह नदी दूसरी ही होगी। उसे तो शीघ्रता से होन्नावर के पास ही पश्चिम समुद्र से मिलना था। इसलिए सवा-सौ, डेढ़-सौ पुरुष जितनी ऊंचाई से वह कूद पड़ी है। उस नदी का नाम क्या होगा?

स्वर्णजलः कहीं पास कहीं फेल
Posted on 26 Jan, 2010 12:08 PM

आमतौर पर कहा जाता है, पब्लिक स्कूलों में जहां कहीं भी सरकारी पैसे से रूफवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाए गए हैं, पैसे की बर्बादी ही हुई है। इसके बावजूद भी चिकमगलूर जिले में तो कहानी ही दूसरी है। इस जिले की अच्छाईयां और कुछ शिक्षाओं को गिना रहे हैं श्री पद्रे...

समृद्धि की एक और मिसाल
Posted on 31 Dec, 2009 07:59 PM कर्नाटक स्थित बायफ डेवपलमेंट रिसर्च फाउंडेशन (बायफ) ने एक अनोखा मॉडल विकसित किया है। जिसे खेत तालाब नेटवर्क के नाम से जाना जाता है। खेत तालाबों का विभिन्न उद्देश्यों से उपयोग किया जाता है। इनमें खेती और मछली पालन का काम होता है। इसमें फसल और मछली पानी के अलावा सिंचाई से लेकर छोटे-छोटे उद्यमों तक की पानी की जरूरतें पूरी होती हैं। अभी हाल के जल पंढाल विकास काय्रक्रमों में वर्षाजल संग्रहण करने के लिए
कर्नाटक में भूजल गुणवत्ता का परिदृश्य - जिलेवार रिपोर्ट (2004)
Posted on 20 Nov, 2009 09:08 AM

ग्रामीणों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता के मद्देनजर, विश्व बैंक की सहायता और कर्नाटक के ग्रामीण जल आपूर्ति और स्वच्छता एजेंसी ने एक कार्यक्रम 'जलनिर्मल योजना' चलाया। इस योजना के ही एक भाग के रूप में कर्नाटक राज्य-सरकार ने राज्य के भूजल गुणवत्ता पर भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) के आधार पर एक नोलेज बेस विकसित करने का निर्णय लिया।

भूजल गुणवत्ता
पूरी संस्कृति है कावेरी
Posted on 16 Nov, 2009 09:26 AM

दक्षिण भारत के कर्नाटक में दो पर्वत मालाएं हैं-पश्चिम और पूर्व, जिन्हें पश्चिमी और पूर्वी घाट के नाम से जाना और पुकारा जाता है। पश्चिमी घाट के उत्तारी भाग में एक बहुत ही सुंदर 'कुर्ग' नामक स्थान है। इसी स्थान पर 'सहा' नामक पर्वत है, जिसे 'ब्रह्माकपाल' भी कहते हैं, जिसके कोने में एक छोटा-सा तालाब है। यही तालाब कावेरी नदी का उद्गम स्थल है। यहां देवी कावेरी की मूर्ति है, जहां एक दीपक सदा जलता रहता

कावेरी उद्गम
स्वामी शिवकुमार और उनके मंत्र का जादू
Posted on 07 Nov, 2009 01:02 PM

कर्नाटक के 70,000 एकड़ में फ़ैली कपोटागिरि पहाड़ियां धातुओं के अवैध खनन और पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की वजह से बंजर और वीरान हो चुकी थीं, लेकिन वन अधिकारियों के साथ मिलकर सिध्दगंगा मठ के 100 वर्ष के स्वामी शिवकुमार और उनके “ॐ जलाय नमः' मंत्र ने कमाल का जादू किया, नंगी पहाड़ियां पर हरियाली की चादर ओढ़ा दी। इस अनोखे प्रयास के बारे में बता रहे हैं शिवराम पेल्लूर।

स्वामी शिवकुमार
वर्षा जल का कमाल
Posted on 18 Apr, 2009 06:59 AM
बैंको से मोटे-मोटे कर्ज लेकर किसानों ने पास के गांवों में सैंकड़ों बोरवैल लगाए। लेकिन इससे समस्या खत्म होने के बजाए और ज्यादा बढ़ गई। बोरवैल की संख्या तो बढ़ रही थी लेकिन पानी.... और घट रहा था। जिन किसानों के कुएं में पानी था वे दूसरे किसानों को सिंचाई के लिए 40-50 रु. प्रति घंटा पर पानी बेचकर पैसा बनाने लगे थे। परिणाम हुआ कि अब किसी के पास पानी नहीं था ...।
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