समृद्धि की एक और मिसाल

कर्नाटक स्थित बायफ डेवपलमेंट रिसर्च फाउंडेशन (बायफ) ने एक अनोखा मॉडल विकसित किया है। जिसे खेत तालाब नेटवर्क के नाम से जाना जाता है। खेत तालाबों का विभिन्न उद्देश्यों से उपयोग किया जाता है। इनमें खेती और मछली पालन का काम होता है। इसमें फसल और मछली पानी के अलावा सिंचाई से लेकर छोटे-छोटे उद्यमों तक की पानी की जरूरतें पूरी होती हैं। अभी हाल के जल पंढाल विकास काय्रक्रमों में वर्षाजल संग्रहण करने के लिए खेत- तालाब के निर्माण को सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है। इसके तहत फाउंडेशन ने एक जलपंढाल विकास परियोजना में मिट्टी व जल संरक्षण तथा पानी का उपयोग करने के लिए खेत-तालाब नेटवर्क बना लिया है।

कर्नाटक में हसन जिले का अदिहल्ली, मिल्लानहल्ली गांव का इलाका सूखाग्रस्त है, जहां लोग कृषि उत्पादन के लिए बारिश के पानी पर निर्भर रहते हैं। छुटपुट बारिश, अनुपजाऊ मिट्टी, पानी के तेज बहाव और सिंचाई व पीने के पानी का अभाव होने के कारण यह क्षेत्र सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ था। अत: ऐसे में एक समग्र जल पंढाल विकास की परियोजना चलाई गई, जिससे इस क्षेत्र की सामाजिक-आर्थिक व पारिस्थितिकीय व्यवस्था में सुधार लाने के लिए मिट्टी और पानी का संरक्षण किया जा सके। इस परियोजना की टीम ने सन् 1996 से खेत- तालाब के आधार पर मिट्टी और जल संरक्षण के उपायों को अपनाया।

खेत- तालाब आधारित जलपंढाल विकास मिट्टी व जल संरक्षण में लोगों की सहभागिता पर टिका होता है। इस क्षेत्र में गड्ढे खोदने व बांध बनाने के काम किए गए हैं, जिनसे इस खेत के किनारे स्थित खेत-तालाब में पानी पहुंचता रहता है।

प्रत्येक तालाब में गाद रोकने के लिए प्रवेश द्वार है और अधिक पानी के बाहर फैलाव के लिए एक निकास द्वार है, जो इस श्रृंखला के अगले तालाब में जाकर जुड़ते हैं। तालाब के प्रवेश और निकास द्वार पर पत्थर की फर्श बनाई गई है, जिससे इसकी बनावट खराब न हो। इस श्रृंखला में पहले तालाब का अधिक पानी दूसरे तालाब में और दूसरे से तीसरे तालाब के क्रम में बहता रहता है। इस प्रकार इस क्षेत्र में तालाबों का जाल बिछाकर यहां के समूचे पानी को बहने से रोका जाता है और गड्ढे, बांध व तालाब के निर्माण से वर्षाजल का संग्रहण होता है। 1,004 एकड़ के जल पंढाल में से 700 एकड़ की जमीन पर करीब 350 तालाबों का निर्माण किया गया। है (चित्रः 1 में अदिहल्ली, म्ल्लानहल्ली जल पंढ़ाल के खेत-तालाब नेटवर्क की रुपरेखा देखें)

उपलब्धियां

सन् 1996-97 से लेकर 2000-01 के दौरान इस परियोजना का जो क्रियान्वयन हुआ, उसके काफी उत्साहजनक परिणाम सामने आए हैं। इस परियोजना की मुख्य उपलब्धियों में जमीन के ऊपर और अंदर के पानी में वृद्धि होना शामिल है।

जमीन के पानी की उपलब्धता का क्षेत्र 72.22 एकड़ तक बढ़ गया है, जबकि इस परियोजना के शुरु होने से पहले यह 8.57 एकड़ में ही मौजूद था। भूजल का स्तर 3.79 मीटर तक ऊपर उठ आया। यहां के सभी कुओं में पूरे साल पर्याप्त पानी रहता है। कभी-कभी बहने वाली जलधाराएं आज पूरे साल बहती रहती हैं।

जलपंढाल के गांवो में गर्मियों में भी आमतौर पर पीने के पानी की समस्या बनी रहती थी, जिसका पूरी तरह से समाधान निकाल लिया गया है। एक फसल के खेतों में से 10 प्रतिशत खेतों में दो फसलें उगने लगीं हैं। तीन फसलों और बराबर फसल उगते रहने वाले खेतों का क्षेत्र 140 एकड़ से बढ़कर 349 एकड़ तक हो गया है (इसमें करीब 89 प्रतिशत की बढ़त हुई) खरीफ की फसल का उत्पादन 18.49 क्विंटल प्रति एकड़ से 27.2 क्विंटल प्रति एकड़ तक बढ़ गया है। रबी के फसल की पैदावार 60.32 क्विंटल प्रति एकड़ से बढ़कर अब 99.4 क्विंटल प्रति एकड़ हो गई है।

पूरे साल पानी और चारे की उपलब्धता से किसान उत्कृष्ट नस्ल के पशुओं को पालने के लिए प्रोत्साहित हुए। कृषि उत्पाद में बढ़त से जलपंढाल की आबादी की खाद्यान्न सुरक्षा सुनिश्चित हुई। परिवारों में सब्जियों के मामले में आत्म-निर्भरता बनी, जिसकी पैदावार 13 से 38 प्रतिशत तक बढ़ी। कृषि उत्पादन में वृद्धि होने से यहां के परिवारों की आमदनी 1.5-4 गुना तक बढ़ी है। आज महिलाओं को पानी लाने में 25 मिनट का समय लगता है, जबकि पहले इस काम में 72 मिनट का समय लगता था।

पानी की विकेद्रित व्यवस्था होने के कारण यहां के जो किसान जलपंढाल के ऊपरी हिस्सों में रहते हैं,उनकी भी सतह के पानी और भूजल तक पहुंच बनी है।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें : बायफ डेवलपमेंट रिसर्च फाउंडेशन बैफ भवन,डॉ मनीभाई देसाई नगर, वार्ज़ पुणे- 411052 फोन : 020 - 52316161 फैक्स : 020 - 5231662 ई-मेल : baif@vsnl.com
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