बैंको से मोटे-मोटे कर्ज लेकर किसानों ने पास के गांवों में सैंकड़ों बोरवैल लगाए। लेकिन इससे समस्या खत्म होने के बजाए और ज्यादा बढ़ गई। बोरवैल की संख्या तो बढ़ रही थी लेकिन पानी.... और घट रहा था। जिन किसानों के कुएं में पानी था वे दूसरे किसानों को सिंचाई के लिए 40-50 रु. प्रति घंटा पर पानी बेचकर पैसा बनाने लगे थे। परिणाम हुआ कि अब किसी के पास पानी नहीं था ...।
कर्नाटक के टूमकूर में खेती ही लोगों की मुख्य जीवनधारा है। यहां की अधिकतर जनता खेती के द्वारा ही अपना भरण-पोषण करती है। यहां पर सिंचाई के नाम पर सिर्फ 288 हेक्टेयर के दायरे में फैला एक नागावल्ली तालाब है जो समय के साथ-साथ सूखता जा रहा है। किसानों ने बैंकों से कर्ज लेकर कई जगह कुएं खुदवाए हैं। किन्तु 1990 से 2000 तक खुदे 11 कुओं में से कुछ ही पानी देने में सक्षम हैं।
मगर इन सब के बावजूद वहीं के जया फार्म की स्थिति कुछ और ही है। 45 एकड़ मैं फैले जया फार्म में सिंचाई के पानी की समस्या न के बराबर है। फार्म के मालिक बी.जे. कुमार स्वामी की दूरदृष्टि का ही परिणाम है कि आज जया फार्म में मुख्य फसल के साथ-साथ अन्य फसलें जैसे सुपारी, धान इत्यादि भी पूर्ण मात्रा में उपज रही हैं। नारियल के अलावा कोका, धान आदि फसलें भी उगाते हैं। जया फार्म में ऐसा चमत्कार सिर्फ वर्षा जल संचयन की वजह से हुआ। उसने पिछले दशक में वर्षाजल संचयन के लिए उपाए किए जिसमें करीब 8 लाख की लागत आई। लेकिन अब इस खेत से वे 4-5 लाख रु वार्षिक कमा रहे हैं।
जया फार्म को न तो प्रकृति ने कुछ अनोखा दिया है और न ही इसके साथ कुछ दैवीय शक्ति है। अंतर है तो बस इतना कि पिता-पुत्र ने इस जमीन पर वर्षा जल संरक्षण का सफलतापूर्वक प्रयोग किया है। परिणाम यह निकला कि आज पूरे प्रांत में भले ही सूखा पड़ जाए पर जया फार्म में फसलें लहलहाती रहती हैं।
करीब 15 वर्ष पूर्व जयम्मा के पुत्र कुमार स्वामी को वर्षा जल संरक्षण के बारे में पता चला। ज्यादा जानकारी के लिए उन्होंने पत्रिकाओं, किताबों तथा समितियों का सहारा लिया। 1993 में उन्होंने यह प्रक्रिया प्रयोग के तौर पर अपने खेतों में शुरू कर दी।
परिणाम चौंकाने वाले थे। 45 में से 40 एकड़ भूमि वर्षा-जल का पूर्ण सदुपयोग कर फिर से उपजाऊ हो गई। वर्षा-जल को एकत्रित करने के लिए उन्होंने आसपास के ऊंचे इलाकों में ढेरों बांध बंधवाए। इस प्रक्रिया में भी उन्होंने खासी बुद्धिमत्ता का परिचय दिया तथा आम के बगीचों की उर्वरक मिट्टी की बजाए सूखे हुए तालाबों की जमी मिट्टी का प्रयोग किया। फार्म से दूर भी वर्षा जल को रोकने के लिए स्वामी ने 2.5 किलोमीटर लंबी एक नाली खुदवाई जो कि आस-पास के इलाके से संपूर्ण वर्षा का जल उनके फार्म तक खींच कर लाती है। इसी वजह से स्वामी के फार्म में स्थित कुआ सालभर पूरी तरह भरा रहता है। जमीन की उर्वरक क्षमता बढ़ाने के लिए भी जयम्मा तथा स्वामी आस-पास के हर खेत से नारियल तथा सुपारी की भूंसी खरीदकर खेत में इस्तेमाल करते हैं।
एक और तरीका जो कि जया फार्म ने इस्तेमाल किया है, वह है तारों की जगह पेड़ों की बाड़ लगाना। सुपारी के पेड़ जमीन को पकड़कर रखते हैं तथा उसकी ऊपरी उर्वरक सतह को बचाए रखते हैं। पेड़ों की बाड़ की वजह से सुपारी की फसल को इकट्ठा करने में थोड़ी दिक्कत आती है, मगर इसके लाभ नुकसान से कहीं ज्यादा हैं।
आज स्वामी के छोटे से पुस्तकालय में ढेरों किताबें हैं। उनके सहयोग तथा मार्गदर्शन का हर जागरूक किसान कायल हो रहा है। मगर फिर भी संख्या काफी कम है। कई लोगों को अभी भी यही लगता है कि जल की समस्या दैवी तथा कुदरती है तथा इसका कोई समाधान नहीं है। स्वामी गांव के लोगों की मानसिकता को भी एक बड़ा कारण मानते हैं। मगर उन्हें उम्मीद है कि हालात बदलेंगे। इसके लिए वे उन बैंकों का भी सहयोग चाहते हैं जिन्होंने किसानों को ऋण दिया है। स्वामी कहते हैं कि बैंक ऋण अवश्य दें किंतु साथ ही किसानों को जल संचयन तथा भूमि संरक्षण के तरीके भी बताएं। स्वामी को उम्मीद है कि आज नहीं तो कल उनका प्रयास रंग लाएगा।
साभार – भारतीय पक्ष
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