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उत्तर कोरिया सरकार ने मानव मल एकत्र करने के लिए आदेश क्यों दिया है
उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन के एक नए आदेश के बारे में जानना चाहिए कि उन्होंने कोरिया की जनता से 10 किलोग्राम मानव मल एकत्र करने का आदेश दिया है। ताकि उसे खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सके। हालांकि यह आदेश उत्तर कोरियाई लोगों के लिए पूरी तरह से नया नहीं है, क्योंकि वे पहले से ही सर्दियों में खाद के रूप में मानव मल का उपयोग करते आए हैं। Posted on 03 Jul, 2024 07:08 AM

उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन के एक नए आदेश के बारे में जानना चाहिए कि उन्होंने कोरिया की जनता से 10 किलोग्राम मानव मल एकत्र करने का आदेश दिया है। ताकि उसे खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सके। हालांकि यह आदेश उत्तर कोरियाई लोगों के लिए पूरी तरह से नया नहीं है, क्योंकि वे पहले से ही सर्दियों में खाद के रूप में मानव मल का उपयोग करते आए हैं। हालाँकि, इस बार यह आदेश गर्मियों में भी मानव मल एक

प्रतिकात्मक तस्वीर
बदलते मौसम का विज्ञान
दलते मौसम का कहर केवल हमारे देश पर ही नहीं हैं, दुनिया भर में यह बीमारी फैल चुकी है. मौसम में हो रहे इन बदलावों का कारण जानने के लिए दुनिया भर में अनुसंधान हो रहे हैं. नए-नए सिद्धांत प्रतिपादित किए जा रहे हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार अन्य कारणों के अलावा वायुमंडल में मौजूद दो गैसें ओजोन और कार्बन डाइऑक्साइड-मौसम के निर्धारण और नियमन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. Posted on 02 Jul, 2024 09:09 AM

पिछले कई वर्षों में पूरा देश इस सदी के सबसे भंयकर सूखे की चपेट में था. सूखे ने करोड़ों की फसल बरबाद कर दी, हजारों पशुओं को मौत के कगार पर ला दिया और लाखों परिवारों को दाने-दाने के लिए मोहताज कर दिया. बदलते मौसम का कहर केवल हमारे देश पर ही नहीं हैं, दुनिया भर में यह बीमारी फैल चुकी है. मौसम में हो रहे इन बदलावों का कारण जानने के लिए दुनिया भर में अनुसंधान हो रहे हैं.

मौसम बदल रहा है
तैरती खेती : जलवायु संकट से प्रभावित भूमिहीन समुदायों की आजीविका के लिए जलमग्न भूमि का उपयोग
नदी मार्ग में गाद का जमाव जल निकासी को अवरुद्ध करता है, जिससे स्थायी जल भराव की समस्या (4000 हेक्टेयर/प्रति वर्ष) लगातार बढ़ रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक पानी के साथ जीने के अलावा अन्य विकल्प नहीं है। अतः बांग्लादेश के दक्षिण मध्य जिलोंः बरिशाल, गोपालगंज, मदारीपुर, सतखीरा और पिरोजपुर के किसानों ने, अपने पुरखों से विरासत में मिली सदियों पुरानी, मृदा-रहित, स्थिर, उथले पानी पर तैरती खेती/कृषि (फ्लोटिंग एग्रीकल्चर), की बाढ अनुकूलित ऐतिहासिक प्रणाली को पुनर्जीवित किया है, जो कि इसी आर्द्रभूमि इलाके में लगभग 250 साल पहले विकसित हुई थी। इन तैरते खेतों की जरूरत अब लगभग पूरे साल ही रहती है। तैरती क्यारियों के रूप में प्राप्त 40% अतिरिक्त कृषि योग्य भूमि, भूमिहीन किसान के लिए आय के अवसर पैदा करती है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार, इस पारंपरिक कृषि तकनीक पर भरोसा कर बांग्लादेशी किसान तैरती क्यारी के प्रति 100 वर्ग मीटर से S (डॉलर) 40/₹3280 का औसत लाभ कमाते हैं। Posted on 19 Jun, 2024 08:09 PM

बदलती "वैश्विक जलवायु" का प्रतिकूल प्रभाव हमारे जन-जीवन, पर्यावरण और कृषि व्यवसाय पर "जलवायु संकट" यानी घातक प्राकृतिक आपदाओं (तूफान, भारी वर्षा व हिमपात, बाढ़, सूखा और हिमस्खलन आदि) की बढ़ती आवृत्ति एवं तीव्रता के रुप में स्पष्ट दिखाई दे रहा है। बाढ़ का मुख्य कारण, वैश्विक ऊष्मन है, जिससे गर्म हवा, अधिक जल वाष्प धारण कर सकती है। परिणामस्वरूप कम समय में भारी वर्षा हो रही है, जिससे मृदा क्षरण व

तैरते खेत (फोटो साभार - netzfrauen.org)
स्नो अपडेट रिपोर्ट-2024 : हिंदुकुश हिमालय पर इस वर्ष बर्फबारी में रिकॉर्ड स्तर की कमी, पानी बोओ शुरू करना होगा
हाल ही में प्रकाशित एक शोधपत्र में वैज्ञानिकों ने इस पर गंभीर चेतावनी जारी की है। रिपोर्ट के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से हिमालय पर हिमपात की मात्रा में कमी के कारण, पहाड़ों के नीचे बसे समुदायों को पेयजल की गंभीर कमी का सामना करना पड़ सकता है। Posted on 18 Jun, 2024 04:17 PM

हिंदुकुश हिमालयी क्षेत्र में इस वर्ष हिमपात में अभूतपूर्व कमी आने से जल संकट की संभावना और भी मजबूत हो गई है। हाल ही में प्रकाशित एक शोधपत्र में वैज्ञानिकों ने इस पर गंभीर चेतावनी जारी की है। रिपोर्ट के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से हिमालय पर हिमपात की मात्रा में कमी के कारण, पहाड़ों के नीचे बसे समुदायों को पेयजल की गंभीर कमी का सामना करना पड़ सकता है। 'नेपाल स्थित ‘अंतर्राष्ट्रीय पर्वतीय

 हिंदू कुश हिमालय में बर्फबारी घट रही है
बावड़ियाँ: प्राचीन भारत के भूले-बिसरे एवं विश्वसनीय जल स्रोत (भाग 1)
भारत में इन सीढ़ीनुमा कुओं को आमतौर पर बावड़ी या बावली के रूप में जाना जाता है, जैसा कि नाम से पता चलता है कि इसमें एक ऐसा कुआ होता है जिसमें उतरते हुए पैड़ी या सीढ़ी होती है। भारत में, विशेषकर पश्चिमी भारत में बावली बहुतायत में पाई जाती हैं और सिंधु घाटी सभ्यता काल से ही इसका पता लगाया जा सकता है। इन बावड़ियों का निर्माण केवल एक संरचना रूप में ही नहीं किया गया था। अपितु उनका मुख्य उद्देश्य व्यावहारिक रूप में जल संरक्षण का था। लगभग सभी बावड़ियों का निर्माण पृथ्वी में गहराई तक खोद कर किया गया है ताकि यह सम्पूर्ण वर्ष जल के निरंतर स्रोत के रूप में काम करते रहें। तत्पश्चात, पैड़ी या सीढ़ियों का निर्माण किया जाता था, जो जल के संग्रह को और अधिक सुलभ एवं सरल करने का काम करती थी। इन सीढ़ियों का उपयोग पूजा एवं मनोरंजन आदि के लिये भी किया जाता था। Posted on 15 Jun, 2024 08:56 AM

भारत में इन सीढ़ीनुमा कुओं को आमतौर पर बावड़ी या बावली के रूप में जाना जाता है, जैसा कि नाम से पता चलता है कि इसमें एक ऐसा कुआ होता है जिसमें उतरते हुए पैड़ी या सीढ़ी होती है। भारत में, विशेषकर पश्चिमी भारत में बावली बहुतायत में पाई जाती हैं और सिंधु घाटी सभ्यता काल से ही इसका पता लगाया जा सकता है। इन बावड़ियों का निर्माण केवल एक संरचना रूप में ही नहीं किया गया था। अपितु उनका मुख्य उद्देश्य व्य

चांद बावड़ी, साभार - Pixabay
भारत के पंजाब राज्य में भूजल प्रदूषकों फ्लोराइड, आयरन और नाइट्रेट प्रभावित क्षेत्रों का मानचित्रण
तीव्र गति से बढ़ते कृषि विकास, औद्योगीकरण और शहरीकरण के परिणामस्वरूप भूजल संसाधन के स्रोतों पर दवाव बढ़ रहा है जिसके परिणामस्वरूप भूजल संसाधनों का अतिदोहन और संदूषण हुआ है। उत्तरी भारत में लगभग 109 घन किमी भूजल की हानि हुई है जिसके कारण बंगाल की खाड़ी में समुद्र के जल स्तर में वृद्धि हुई है। पंजाब में फ्लोराइड और नाइट्रेट की मात्रा भटिंडा और फरीदकोट जिलों में क्रमशः 10 मिलीग्राम/लीटर और 90 मिलीग्राम/लीटर तक पायी है। प्राकृतिक रूप से होने वाले फ्लोराइड की उच्च सांद्रता ने दक्षिणी और उत्तर पश्चिमी भारत में लगभग 66 मिलियन लोगों को प्रभावित किया है। Posted on 14 Jun, 2024 07:03 PM

जलवायु परिवर्तन एवं अन्य प्राकृतिक परिवर्तनों के परिपेक्ष में भूजल संसाधन, जल के महत्वपूर्ण संसाधन हैं हालांकि कुछ प्राकृतिक एंव कुछ मानव जनित कारणों ने इन संसाधनों के पुनर्भरण की मात्रा एवं गुणवत्ता को प्रभावित किया है। मानवीय गतिविधियों एवं प्राकृतिक रूप से अकार्बनिक रसायन, मृदा, तलछट एवं चट्टानों से बिंदु स्रोत या गैर बिंदु स्रोत के रूप में भूजल प्रणाली में प्रवेश करते हैं जिसके कारण भूजल की

एक स्थिति पंजाब के भूजल के बारे में
पीने योग्य पानी की कमी और इसका सही उपयोग
सोचने वाली बात तो यह है कि घरती पर 2 तिहाई हिस्सा पानी होने के बावजूद पीने योग्य शुद्ध पेयजल सिर्फ 1 प्रतिशत ही है। 97 फीसदी जल महासागर में खारे पानी के रुप में भरा हुआ है, जबकि 2 प्रतिशत जल का हिस्सा बर्फ के रुप में जमा है। जिसकी वजह से यह नौबत आ गई है कि कई जगह पर लोगों को बूंद-बूंद पानी के लिए तरसना पड़ रहा है। इसलिए सभी को जल संरक्षण के महत्व को समझना चाहिए और अनावश्यक पानी की बर्बादी नहीं करनी चाहिए। Posted on 12 Jun, 2024 06:15 AM

जल हमारे जीवन के लिए बेहद जरूरी है, जल के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन आजकल जल का व्यर्थ इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसकी वजह से आज भारत समेत पूरी दुनिया में जल की भारी कमी है। वहीं सोचने वाली बात तो यह है कि घरती पर 2 तिहाई हिस्सा पानी होने के बावजूद पीने योग्य शुद्ध पेयजल सिर्फ 1 प्रतिशत ही है। 97 फीसदी जल महासागर में खारे पानी के रुप में भरा हुआ है, जबकि 2 प्रतिशत जल का हिस्सा

पीने योग्य पानी आज सबसे बड़ा मुद्दा
अंटार्कटिका में घट रही है बर्फ
1986 में अंटार्कटिका से टूटकर अलग हुआ जो हिमखंड स्थिर बना हुआ था।  वह अब 37 साल बाद समुद्री सतह पर बहने लगा है।  उपग्रह से लिए चित्रों से पता चला है कि करीब एक लाख करोड़ टन वजनी यह हिमखंड अब तेज हवाओं और जल धाराओं के चलते अंटार्कटिका के प्रायद्वीप के उत्तरी सिरे की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है। Posted on 10 Jun, 2024 04:12 PM

अंटार्कटिका से हिमखंड कट रहे हैं

जलवायु परिवर्तन के संकेत अब अंधी आंखों से भी दिखने लगे हैं।  नये शोध बताते हैं कि अंटार्कटिका से हिमखंड तो टूट ही रहे हैं, वायुमंडल का तापमान बढ़ने के कारण बर्फ भी तेज़ी से पिघल रही है।  जलवायु बदलाव का बड़ा संकेत संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में भी देखने में आया है।  बीते 75 सालों में यहां सबसे अधिक बारिश रिकॉर्ड की गयी है।  24 घंटे में 10 इंच से ज़्यादा

अंटार्कटिका से हिमखंड कट रहे हैं
भारतीय लोक संस्कृति और साहित्य में जल की महिमा
भारतीय धर्म, संस्कृति और साहित्य में जल को अमृत तुल्य और जीवनदाता माना गया है। एक ओर जहां जल को प्रदूषित न करने की बात कही गई है, वहीं दूसरी ओर उसका संरक्षण यानी अपव्यय न करने की बात कही गई है। सभी धर्मों में इसकी महत्ता को समझाया गया है। Posted on 10 Jun, 2024 06:25 AM

यदि हम प्राचीन ग्रंथों की बात करें तो ऋग्वेद में जल संरक्षण करने का उल्लेख मिलता है। अथर्ववेद में भी लोगों को जल संरक्षण के लिए आगाह किया गया है। इसके अलावा, तैतरीय उपनिषद, छांदग्योपनिषद और शंख स्मृति में भी कहा गया है कि पानी असीमित नहीं है, उसकी मात्रा निश्चित है। इसलिए उसे बचाने की चेतावनी दी गई है।

लोक साहित्य में जल
मिलकर भविष्य संवारें
दुनिया का बदलता मौसम समय के गहराते संकट को हमारे परिभाषित कर रहा है- और यह काम जितनी गति से हो रहा है, उसकी हमने कल्पना भी नहीं की थी।  लेकिन इस वैश्विक संकट के सामने हम उतने असहाय नहीं हैं जितना हम समझ रहे हैं।  मौसम का यह संकट-काल भले ही आज हमें हारी हुई स्पर्धा लग रहा हो, पर हम यह मुकाबला जीत सकते हैं।  Posted on 09 Jun, 2024 07:24 PM

क्लाइमेट में हो रहे परिवर्तन के खतरनाक परिणामों से विश्व का कोई कोना अछूता नहीं है।  बढ़ता तापमान पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति को, प्राकृतिक विनाश को, खाद्यान्न और पानी की असुरक्षा, आर्थिक उतार-चढ़ाव को, अन्य संघर्षों को बढ़ावा ही दे रहा है।  समुद्र का जल-स्तर बढ़ रहा है, आर्कटिक पिघल रहा है, कोरल रीफ मर रहे हैं, समुद्रों में तेज़ाब की मात्रा बढ़ रही है, जंगल जल रहे हैं।  स्पष्ट है स्थितियां अनुक

बेहतर धरती के भविष्य के लिए
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