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नदी जोड़ का मिथक और साइंस
Posted on 15 Mar, 2012 12:20 PM

यही समय है, जब जल संसाधनों के नियोजन में पानी बचाने की बात सबसे ऊपर रहनी चाहिए। लेकिन इसके उलट नदी जोड़ परियोजना

खतरे में है महाबाहु ब्रह्मपुत्र
Posted on 14 Mar, 2012 03:05 PM

ब्रह्मपुत्र सिर्फ एक नदी नहीं है। यह एक दर्शन है-समन्वय का। इसके तटों पर कई सभ्यताओं और संस्कृतियों का मिलन हुआ है। आर्य-अनार्य, मंगोल-तिब्बती, बर्मी-द्रविड़, मुगल-आहोम संस्कृतियों की टकराहट और मिलन का गवाह यह ब्रह्मपुत्र रहा है। जिस तरह अनेक नदियां इसमें समाहित होकर आगे बढ़ी हैं, उसी तरह कई संस्कृतियों ने मिलकर एक अलग संस्कृति का गठन किया है। ब्रह्मपुत्र पूर्वोत्तर की, असम की पहचान है, जीवन है और संस्कृति भी। असम का जीवन तो इसी पर निर्भर है। असमिया समाज, सभ्यता और संस्कृति पर इसका प्रभाव युगों-युगों से प्रचलित लोककथाओं और लोकगीतों में देखा जा सकता है।

चीन की कुदृष्टि की वजह से तिब्बत से बांग्लादेश तक फैले विस्तृत ब्रह्मपुत्र नदी का अस्तित्व खतरे में है। इस बात की खबर आ रही है कि अपने देश में चीन इस नदी की धारा मोड़ने या पनबिजली परियोजना के लिए बांध बनाकर उसके प्रवाह को रोकने की साजिश कर रहा है। इस महानदी के सूखने का मतलब कई संस्कृतियों और सभ्यताओं का सूखना है इसलिए अरुणाचल से असम तक ब्रह्मपुत्र के किनारे बसे लोगों में बेचैनी है। हालांकि चीन बार-बार ऐसे आरोपों से इनकार कर चुका है लेकिन जब 29 फरवरी को अरुणाचल के पासीघाट के निकट सियांग नदी (अरुणाचल में ब्रह्मपुत्र को इसी नाम से जाना जाता है) का जलस्तर गिरता हुआ बिल्कुल बरसाती नदी जैसा हो गया तो पूरे राज्य में सनसनी फैल गई। अरुणाचल प्रदेश के सरकारी प्रवक्ता ताको दाबी ने इस बात की जानकारी फौरन राज्य सरकार को दी और केंद्र सरकार से वास्तविकता का पता लगाने का आग्रह किया। लोगों को लग रहा है कि चीन ब्रह्मपुत्र की धारा के साथ छेड़छाड़ कर रहा है।
अमीरों के हितों में पिसते गरीब
Posted on 05 Mar, 2012 06:13 PM

रिपोर्ट कहती है कि अगर ग्रीन हाउस गैसों पर रोक नहीं लगाई गई तो वर्ष 2100 तक ग्लेशियरों के पिघलने के कारण समुद्र

विश्व में प्रतिवर्ष जल की खपत
Posted on 01 Mar, 2012 05:35 PM

जल का एक प्रमुख उपयोग पीने का पानी है। विश्व में जितने भी गर्म देश हैं अथवा गर्म क्षेत्र हैं, वहां गर्मियों में

पशु-पक्षियों को आपदाओं का सहज नैसर्गिक पूर्वाभास होता है
Posted on 07 Feb, 2012 12:55 PM विकसित सभ्यता के इस दौर में ऐसा लगता है, जैसे मनुष्य प्रत्येक प्रकार की विपदाओं से निपटने में पूरी तरह सक्षम है। जबकि ऐसा है नहीं। पहले जब मनुष्य प्रकृति के घनिष्ठ सम्पर्क में रहता था, तब उसे शायद आने वाली विपदाओं का पूर्वाभास हो जाता था। पशु-पक्षियों में आज भी इस तरह की क्षमतायें देखी जाती हैं। जरूरत है कि उनकी इस क्षमता का उपयोग किया जाये। हमारे अध्ययन बतलाते हैं कि भूकम्प से पूर्व पशु-पक्षी असा
विकल्पों के लिए व्यापक आंदोलन
Posted on 04 Feb, 2012 11:38 AM

जलवायु बदलाव जैसे संकट के दौर में यह और भी जरूरी हो जाता है कि सभी पशु-पक्षियों, जीव-जंतुओं के अस्तित्व और भलाई

कपड़े धोने में निकलता है खतरनाक कचरा
Posted on 31 Jan, 2012 11:03 AM लंदन। एक ताजा अध्ययन में पाया गया है कि कप़ड़ा धोने से निकलने वाला प्लास्टिक का सूक्ष्म कचरा समुद्री तटों पर जमा होकर इंसान और कुदरत के लिए खतरा बनता जा रहा है। शोधकर्ताओं को इन सूक्ष्म प्लास्टिक के कणों का पता सिंथेटिक कप़ड़ों से चला है जो हर धुलाई में कम से कम 1900 सूक्ष्म रेशे पानी में छोड़ते हैं। इसके पहले के शोध में यह पाया गया था कि एक मिली मीटर से भी छोटे प्लास्टिक के रेशों को आमतौर पर जानव
चीन की नदी में मिला कैंसर कारक रसायन
Posted on 30 Jan, 2012 04:11 PM बीजिंग. हांगकांग और मकाऊ के आसपास जल स्रोतों में कैंसर कारक कैडमियम रसायन की काफी मात्रा मिलने से दक्षिणी चीन में चिंता व्याप्त है। औद्योगिक अपशिष्ट के कारण महत्वपूर्ण जल संसाधनों के प्रदूषण होने के बीच दक्षिणी गुआंग्क्सी झुआंग प्रांत की एक नदी में कैडमियम प्रदूषक की मात्रा प्रतिबंधित स्तर से दोगुनी पाई गई है।
थम सकती है ग्लोबल वार्मिंग
Posted on 28 Jan, 2012 11:02 AM

इन सारे 14 उपायों से काले कार्बन और मीथेन गैस के उत्सर्जन पर अंकुश लगाया जा सकता है। ये दोनों

जलवायु वार्ताओं का जाल
Posted on 27 Jan, 2012 03:18 PM

चीन का प्रतिव्यक्ति उत्सर्जन अमेरिका के प्रतिव्यक्ति उत्सर्जन से एक-तिहाई है। इसलिए चीन अगर ऊर

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