“हमारी नदियों को जीने दो” - दिल्ली उद्घोषणा में निहित इस अपील के साथ गत् वर्ष सम्पन्न हुए प्रथम भारत नदी सप्ताह को एक वर्ष पूरा हो चुका, किन्तु क्या इस एक वर्ष के दौरान अपील पर ध्यान देने की कोई सरकारी-गैर सरकारी समग्र कोशिश, पूरे भारत में शुरू हुई? क्या भारत की नदियों को जीने का अधिकार देने की माँग शासकीय, प्रशासनिक, न्यायिक या सामाजिक स्तर पर परवान चढ़ सकी?
क्या याद रही नदी की परिभाषा
नदी सप्ताह के दौरान देश भर के नदी कार्यकर्ताओं, अध्ययनकर्ताओं और विशेषज्ञों ने मिलकर नदी को परिभाषित करने की एक कोशिश की थी। श्री अनुपम मिश्र ने ठीक कहा था कि इंसान की क्या हैसियत है कि वह नदी को परिभाषित करे; इसीलिये नदी की परिभाषा, निष्कर्षों के कुछ टुकड़ों के जोड़ के रूप में आई
इसे हम अपनी संस्कृति की विशेषता कहें या परम्परा कि हमारे यहाँ मेले नदियों के तट पर, उनके संगम पर या धर्म स्थानों पर लगते हैं और जहाँ तक कुम्भ का सवाल है, वह तो नदियों के तट पर ही लगते हैं जहाँ आस्था के वशीभूत लाखों-करोड़ों लोग आकर उन नदियों में स्नानकर पुण्य अर्जित कर खुद को धन्य समझते हैं। बल्कि गर्व का अनुभव करते हैं।
आजादी के बाद प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की सबसे बड़ी चिन्ता देश को आत्मनिर्भर बनाने की थी। खासतौर पर खाद्य सुरक्षा के मामले में। और इसके लिये उनके विश्वस्त विशेषज्ञ सलाहकारों ने बता दिया था कि इसके लिये जल प्रबन्धन सबसे पहला और सबसे बड़ा काम है।
कभी सूखे के मारे अकाल और कभी ज्यादा बारिश में बाढ़ की समस्याओं से जूझने वाले देश में नदियों का प्रबन्धन ही एकमात्र चारा था। नदियों का प्रबन्धन यानी बारिश के दिनों में नदियों में बाढ़ की तबाही मचाते हुए बहकर जाने वाले पानी को रोककर रखने के लिये बाँध बनाने की योजनाओं पर बड़ी तेजी से काम शुरू कर दिया गया था।
वह वैसा समय था जब पूरे देश को एक नजर में देख सकने में सक्षम वैज्ञानिक और विशेषज्ञों का इन्तजाम भी हमारे पास नहीं था। अभाव के वैसे कालखण्ड में पंडित नेहरू की नजर तबके मशहूर इंजीनियर डॉ. केएल राव पर पड़ी थी।
Posted on 26 Sep, 2015 09:05 AM माना जाता है कि डेंगू मूल रूप से स्वाहीली भाषा (अफ्रीका) का शब्द है हालाँकि इसमें मतैक्य नहीं है। केन्या और तंजानिया जैसे देशों में इसका उच्चारण ‘डिंगी पेपो’ के तौर पर होता था। कबीलाई सभ्यताओं में इसे बुरी आत्मा का प्रकोप माना गया। तीन सदी पहले 1789 में बेंजामिन रश ने सबसे पहले इसकी पहचान की थी। उन्होंने इसे हड्डी-तोड़ बुखार का नाम दिया। हड्डियों में दर्द इस बीमारी का प्रमुख लक्षण है। करी
Posted on 25 Sep, 2015 03:31 PM परिशिष्ट - II छोटे व गोल पत्थरों की दीवाल काफी अस्थिर होती है और भूकम्प में तुरन्त ध्वस्त हो जाती है। ऐसे इलाकों में जहाँ छोटे व गोल पत्थर ही मिलते हों वहाँ काँक्रीट के ब्लाॅक बनाए जा सकते हैं।
यह थोड़ा महंगा जरूर होता है परन्तु पत्थर की तुलना में इसके निम्न फायदे भी हैंः
Posted on 25 Sep, 2015 03:04 PM परिशिष्ट - I मकान बनाने के लिए मिट्टी एक ऐसा साधन है जो देश के हर कोने में उपलब्ध है और जिसे ग्रामीण लोग सदियों से इस्तेमाल करते आ रहे हैं। यह मकान बनाने का एक सस्ता और आसान साधन है।