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शिव अलकों की पावन शोभा
अमृत धारा गंगे
मोक्षदायिनी पतितपाविनी
त्रिपथगामिनि गंगे
शैलसुता तुम त्रिविध ताप से
करती थीं उद्धार
सदा निर्मला बहती थी
अब हो विरल धार गंगे
जीवनदायिनी तुमसे बनता था
स्वर्णिम प्रभात
भारत भू की अटल आस्था
अब बदरंग हुई गंगे
मनुज की अमिट लालसा ने
लूटा गंगे तुमको
परेशान सी रहती है अब
बीते महीने एक महत्त्वपूर्ण कानून संसद के दोनों सदनों में पारित होकर कानून की शक्ल में आ ग