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संदर्भ राजस्थान: पानी के रास्ते में खड़े हम
Posted on 21 Sep, 2010 02:41 PM मौसम को जानने वाले हमें बताएंगे कि 15-20 वर्षो में एक बार पानी का ज्यादा होना या ज्यादा बरसना प्रकृति के कलेंडर का सहज अंग है। थोड़ी-सी नई पढ़ाई कर चुके, पढ़-लिख गए हम लोग अपने कंप्यूटर, अपने उपग्रह और संवेदनशील मौसम प्रणाली पर इतना ज्यादा भरोसा रखने लगते हैं कि हमें बाकी बातें सूझती ही नहीं हैं। वरूण देवता ने इस बार देश के बहुत-से हिस्से पर और खासकर कम बारिश वाले प्रदेश राजस्थान पर भरपूर कृपा की है। जो विशेषज्ञ मौसम और पानी के अध्ययन से जुड़े हैं, वो हमें बेहतर बता पाएंगे कि इस बार कोई 16 बरस बाद बहुत अच्छी वर्षा हुई है।

हमारे कलेंडर में और प्रकृति के कलेंडर में बहुत अंतर होता है। इस अंतर को न समझ पाने के कारण किसी साल बरसात में हम खुश होते हैं, तो किसी साल बहुत उदास हो जाते हैं। लेकिन प्रकृति ऎसा नहीं सोचती। उसके लिए चार महीने की बरसात एक वर्ष के शेष आठ महीने के हजारों-लाखों छोटी-छोटी बातों पर निर्भर करती है। प्रकृति को इन सब बातों का गुणा-भाग करके अपना फैसला लेना होता है। प्रकृति को ऎसा नहीं लगता, लेकिन हमे जरूर लगता है कि अरे, इस साल पानी कम गिरा या फिर, लो इस साल तो हद से ज्यादा पानी बरस गया।

water rajasthan
ग्रीन मार्केटिंग वक्त की जरूरत
Posted on 21 Sep, 2010 02:31 PM वर्तमान व्यापारिक जगत में, मार्केटिंग के क्षेत्र में पर्यावरण पर आधारित मुद्दों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। उत्पादों व सेवाओं का, उनके पर्यावरणीय लाभों के आधार पर विक्रय करने की प्रक्रिया को 'ग्रीन मार्केटिंग' कहा जाता है। इसके अंतर्गत वे सभी क्रय/विक्रय आते हैं जिनके द्वारा मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके और साथ ही पर्यावरण को न्यूनतम क्षति पहुंचे। ऎसा उत्पाद या तो स्वयं पर्यावरण मित्र हो अथ
सितारों के आगे जहां और भी हैं
Posted on 13 Sep, 2010 03:29 PM

इस साल प्रकृति ने भारत के अधिकांश हिस्से में और दुनिया के कुछ हिस्सों में जो नजारा पेश किया है, वह हैरान करने वाला है। इतनी बारिश हो रही है कि हर कोई चकित है।

मौसम परिवर्तन से बढ़ती आपदाएं
Posted on 13 Sep, 2010 01:31 PM
हर कोई मौसम की बात करता है, लेकिन उसके बारे में कोई कुछ कर नहीं सकता। यही बात प्राकृतिक आपदाओं के बारे में भी कही जा सकती है।
झूठा है खतरा, बाढ़ का प्रकोप
Posted on 12 Sep, 2010 08:59 AM
जिस भेड़िये के आने का डर दिखाकर पिछले महीने भर से हमारा मीडिया अपनी भेड़ों को हांक रहा था, उस भेड़िये की आहट आ गयी है. हरियाणा के हथिनीकुण्ड से आठ लाख क्यूसेक पानी 'छोड़' दिया गया है. दिल्ली में बाढ़ वाले हालात हैं. नहीं नहीं, मीडिया हाइप नहीं है. सच में, बाढ़ के हालात हैं. यमुना के किनारे किनारे लो लाइंग (निचले) इलाकों में पानी पसर रहा है. लेकिन रुकिए.
घर को बारिश में भी रखें सुरक्षित
Posted on 11 Sep, 2010 10:25 AM नई दिल्ली: बारिश के मौसम में धूप न मिलने के चलते आपको कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इनसे बचने के लिए आप अपने घर को बारिश के असर से बचाएं या इसे मानसून से पूरी सुरक्षा दें। घरों और बगीचों के लिए सबसे जरूरी पर्याप्त मात्रा में धूप का पहुंचना होता है। बारिश के मौसम में आपके घर में पर्याप्त मात्रा में धूप पहुंचे, इसके लिए कुछ छोटे-मोटे बदलाव करने पड़ें, तो उसे समय रहते करा लेना च
अधिकार कागजों तकः अनुपम मिश्र
Posted on 31 Aug, 2010 09:49 AM अधिकार तो लोगों को मिले हैं लेकिन सिर्फ कागजों पर। जल, जंगल और जमीन की लड़ाई जारी है और अधिकारों की भी। लेकिन इससे भी जरूरी, बात यह है कि आप अपना कर्त्तव्य करते रहें, अधिकार पीछे-पीछे चल कर आएगा। मशहूर पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र का ऐसा मानना है। अमेरिका सहित कई देशों के विरोध के बावजूद हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने फैसला सुनाया है कि सफाई और साफ पानी लोगों का बुनियादी अधिकार है। अनुपम मिश्र इस मामले
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पानी पियो बार-बार
Posted on 28 Aug, 2010 09:27 AM बहुत देर तक बैठना पड़ता था उन्हें। काम ही कुछ ऐसा था। वह कोशिश करते थे कि कुछ एक्सरसाइज हो जाए, लेकिन रोज कर नहीं पाते थे। वजन बढ़ता ही जा रहा था। वैन्डरबिल्ट यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च के मुताबिक अगर हम दिन में तीन गिलास पानी ज्यादा पी लेते हैं, तो एक साल में पांच किलो वजन कम कर सकते हैं। इसके अलावा पानी पीने से हम कहीं ज्यादा तरोताजा होते हैं। हमारा मेटाबॉलिज्म भी बेहतर होता है।
मनरेगा, गरीबी और नौकरशाही
Posted on 23 Aug, 2010 01:00 PM कई अध्ययनों से पता चला है कि ब्लाक स्तर पर कायम नौकरशाही ने मनरेगा में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार किया है। अनुमान है कि ग्रामीण मजदूरों के नाम पर आवंटित राशि में से 30 फीसद राशि नौकरशाही की जेब में पहुंची और करीब 20 फीसद राशि जनप्रतिनिधियों की। इस तरह मजदूरों तक सिर्फ पचास फीसद राशि ही पहुंच पाई। यह योजना नौकरशाहों और नेताओं की संपन्नता का एक बहुत बड़ा जरिया बन गई। इस भ्रष्टाचार का दूसरा सिरा भारत
आ जा चिड़िया आ जा री, चुग-चुग दाना खा जा री
Posted on 23 Aug, 2010 12:05 PM
अपने नाती के मुंह में ग्रास डालते हुए मैं वही गाना गाती हूं जो बरसों पहले उसकी मां के लिए गाती थी- 'आ जा चिड़या आ जा री / चुग-चुग दाना खा जा री / आती हूं मैं आती हूं / फुदक-फुदक कर आती हूं / चुग-चुग दाना खाती हूं / झट ऊपर उड़ जाती हूं।' पर एक भी चिड़िया नहीं आती। लेकिन तब तो आंगन भर जाता था। एक ग्रास बच्चे के मुंह में डालती और एक के नन्हे-नन्हे टुकड़े कर के आंगन में छितरा देती। बड़ों के नाश
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