दिल्ली

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हमारे पर्यावरण का भविष्यवक्ता
Posted on 23 Jul, 2015 11:22 AM

‘‘यदि हमारे गाँव ऐसे स्थान पर हैं जहाँ पर्यावरण व इंसान एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं तो शहर ऐसा स्थान है, जहाँ इंसान एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। शहर के साझा स्थानों को इस्तेमाल तो सभी करना चाहते हैं, उस पर अपना अधिक से अधिक अधिकार का दावा भी सभी करते हैं, लेकिन उस स्थान के रख-रखाव की ज़िम्मेदारी लेने को कोई तैयार नहीं होता।’’ यह बात आज की नहीं है, सन 1988 की है, जब वैश्विकरण का हल्ला

Environment
पुस्तक विमर्श : हर एक पेड़ जरूरी होता है
Posted on 23 Jul, 2015 09:46 AM

‘‘यह वनस्थली खड़ी है विविध पुष्पचिन्हों से सज्ज्ति हरित साड़ी पहनकर अपने कोमल शरीर पर, अकारण अंकुरित पुलक से सिहरी पक्षियों के कलरव में बारम्बार कहलास करती हुई’’ (मलयालम के महान कवि जी.शंकर कुरूप के काव्य संग्रह ‘औटक्कुशल’ (बाँसुरी) की एक रचना)

Book cover
लोक-विश्वास, टोने-टोटके
Posted on 21 Jul, 2015 12:36 PM अवर्षण से मुक्ति के लिए
सरयू से बागमती तक
Posted on 20 Jul, 2015 02:41 PM भारत और नेपाल की भौगोलिक सीमाएं भले ही अलग हों, मगर उनमें गहरी सामाजिक और सांस्कृतिक एका है। पवित्र नदियाँ दोनों देश की पहचान है। इसी पहचान को समझने-बुझने के लिए सरयू से बागमती तक का एक यात्रा-वृत प्रस्तुत कर रही हैं उर्मिला शुक्ल।
पर्यावरण हितैषी मकान ‘किफायती’ होते हैं
Posted on 19 Jul, 2015 01:37 PM पर्यावरण हितैषी मकानों के खिलाफ यह बात अक्सर उठाई जाती रही है कि ये
मौसम, मनुष्य और बेईमानी
Posted on 19 Jul, 2015 12:00 PM आज साफ पेयजल की कमी, आनुवंशिक विविधता की कमी, जमीन का कटाव, जंगल की
आपदा : जागरूकता से कम हो सकता है खतरा
Posted on 18 Jul, 2015 12:06 PM

प्राकृतिक आपदाएँ हालाँकि आदिकाल से आती रही हैं लेकिन इधर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के चलते इनकी आवृत्ति बढ़ गई है। आज मानव समाज के लिए सबसे बड़ी चुनौती इनसे जूझने की है। ऐसा नहीं है कि सरकारों ने इनसे निपटने के लिए उपाय नहीं किए हों लेकिन जब भी ऐसी कोई आपदा आती है, तमाम तैयारियाँ धरी की धरी रह जाती हैं। हमारे देश में भी आपदाओं से निपटने और राहत कार्यों के लिए एक बड़े तन्त्र की स्थापना की गई ह

Disaster management
अन्न जल सुरक्षा के ​लिए चुनौती है बढ़ती जनसंख्या
Posted on 17 Jul, 2015 11:18 AM

मौजूदा समय में विश्व की कुल जनसंख्या लगभग 6 अरब 70 करोड़ 35 हजार है, जबकि एशिया महाद्वीप की जनसंख्या अकेले लगभग चार अरब के बराबर है। यह खतरनाक दस्तक है। बढ़ती जनसंख्या और पर्यावरण असन्तुलन के कारण ऊष्मा बढ़ने से ध्रुव पिघल रहे हैं। बर्फ के पहाड़ पानी बन जा रहे हैं जिससे समुद्र का जलन स्तर बढ़ रहा है। प्राकृतिक आपदाओं का सिलसिला बढ़ा है। सूनामी, केदारनाथ की त्रासदी और हाल के भूकम्प और उसकी तबाही

Population
कैंसर का कारण किसानी : कोई रोको
Posted on 14 Jul, 2015 10:53 AM अगर कोई किसान आपका मित्र है और वह रासायनिक खाद का प्रयोग कर रहा है,
भविष्य की आपदा : जल संकट
Posted on 14 Jul, 2015 09:57 AM बेहिसाब जल दोहन से भविष्य में जल संकट एक आपदा के रूप में सामने आएगा। जिस प्रकार से इस्तेमाल से अधिक जल का दुरुपयोग किया जा रहा है, एक समय आएगा जब जरूरत के पानी के लिए भी मारामारी करनी पड़ेगी। लोगों की लापरवाही के साथ ही राज्य व केन्द्र सरकारें भी जल संरक्षण के लिये पर्याप्त योजनाएँ नहीं बनाए जाने की दोषी हैं। जल को संरक्षित किए जाने के लिए यदि समय पर गम्भीर
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