मौजूदा समय में विश्व की कुल जनसंख्या लगभग 6 अरब 70 करोड़ 35 हजार है, जबकि एशिया महाद्वीप की जनसंख्या अकेले लगभग चार अरब के बराबर है। यह खतरनाक दस्तक है। बढ़ती जनसंख्या और पर्यावरण असन्तुलन के कारण ऊष्मा बढ़ने से ध्रुव पिघल रहे हैं। बर्फ के पहाड़ पानी बन जा रहे हैं जिससे समुद्र का जलन स्तर बढ़ रहा है। प्राकृतिक आपदाओं का सिलसिला बढ़ा है। सूनामी, केदारनाथ की त्रासदी और हाल के भूकम्प और उसकी तबाही को हम झेल चुके हैं। आने वाले समय में प्रलय की सम्भावनाएँ बढ़ेगी तथा कई बड़े महानगर अपना अस्तित्व ही खो देंगे।
हर साल विश्व जनसंख्या दिवस जुलाई महीने की 11 तारीख को मनाया जाता है। सम्मेलनों और आयोजन की औपचारिकताओं के जरिए जनसंख्या की भयावहता पर मंथन करते हैं। हर दिवस की भाँति इसको भी अगले एक साल तक भुला दिया जाता है। विश्व की आबादी भी दिन दूनी और रात चौगुनी बढ़ रही है और इसे रोकने के लगभग सारे प्रयास विफल साबित हो रहे हैं।
अठारहवीं शताब्दी के अन्त में इंग्लैड के अर्थशास्त्री टामस माल्थस का विचार था कि एक निश्चित समय में किसी स्थान की खाद्य सामग्री के उत्पादन में जितनी वृद्धि होती है, उससे कई गुनी अधिक जनसंख्या में वृद्धि हो जाती है। लिहाजा कि जनता के लिये पर्याप्त रुप से खाद्य सामग्री उपलब्ध नहीं होती। आज के युग में मानव के पास अपने पूर्वजों के उत्तराधिकार के रुप में यदि कोई निधि है, तो वह है परिवार। परिवार मानव की वह पूँजी है, जिसकी स्थापना उसने सृष्टि के प्रारम्भिक क्षणों में सभ्यता के उदय के साथ-साथ की थी। वह अपना परिवार और उसकी वृद्धि देखकर प्रसन्नता से खिल उठता था।
पहले भारत में छोटे-छोटे परिवार होते थे, जिनका नियन्त्रण और व्यवस्था सरलता से की जा सकती थी। यही दशा विदेशों में भी थी। परन्तु आज इसके विपरीत दिखाई पड़ रहा है। कि विश्व की जनसंख्या उतरोत्तर बढ़ती जा रही है। मनुष्य का जीवन संघर्षमय और अशांत होता जा रहा है। इसलिये प्राकृतिक प्रकोप से जनसंख्या में कमी की जाती है।
देश को समृद्ध बनाने के लिये जहाँ सरकार ने अनेक योजनाओं को जन्म दिया है, मसलन परिवार-नियोजन, जननी सुरक्षा योजना, बाल-सुरक्षा योजना आदि को सभी देशवासियों के लिये प्रस्तुत किया है। देश की जागरुक जनता परिवार कल्याण की दिशा में स्वयं अग्रसर हो रही है। क्योंकि इसी में अपने परिवार और देश का कल्याण निहित है। देश वासियों ने, विशेष रुप से प्रबुद्ध वर्ग ने यह अच्छी तरह समझ लिया है कि छोटे परिवार में ही बच्चों की देख-रेख, शिक्षा-दीक्षा एवं उनके भविष्य का सुन्दर निर्माण हो सकता है तथा देश को बर्बादी से बचाया जा सकता है। छोटा परिवार, सुखी परिवार होता है।
परिवार नियोजन से माँ के स्वास्थ्य में सुधार होता है, लिंग समानता बढ़ती है और गरीबी कम होती है, जिससे परिवारों, समुदायों और राष्ट्रों की स्थिति बेहतर होती है। एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में 6.7 अरब लोग हैं और अगले 40 वर्षों में यह संख्या बढ़ कर 9.2 अरब होने की उम्मीद है। बहुत सारे अवांछित बच्चे होंगे और परिवारों की मुश्किलें बढ़ जाएँगी । रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में करीब 20 करोड़ महिलाओं का कहना है कि वे गर्भधारण में विलंब करना चाहती हैं या उसे रोकना चाहती हैं, लेकिन वे कोई कारगर गर्भ-निरोधक इस्तेमाल नहीं कर रही हैं। परिवार नियोजन से माँओं और उनके शिशुओं के जीवन पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। शोध से पता चला है कि प्रत्येक वर्ष माताओं की होने वाली पाँच लाख मौतें कम होकर एक-तिहाई हो सकती हैं तथा 27 लाख शिशुओं की प्रतिवर्ष होने वाली मौतों को भी रोका जा सकता है।
1960 में केवल पाँच प्रतिशत महिलाएँ गर्भ-निरोधकों का इस्तेमाल करती थीं, लेकिन 2000 में यह संख्या बढ़ कर 60 प्रतिशत हो गई। यह एक अच्छी जानकारी है। सारी दुनिया में प्रजनन में गिरावट आ रही है। अगर तीन-चार दशक पीछे देखें तो विकासशील देशों में महिलाओं के औसतन छह बच्चे होते थे। अब तीन बच्चों का औसत है। विकसित देशों में यह एक ओर दो तक रह गया है। यह एक बहुत बड़ा परिवर्तन है। परन्तु क्षेत्रीय स्तर पर इतनी प्रगति नहीं हुई है। यहाँ तक कि कुछ देशों में जनसंख्या फिर से बढ़ रही है। वैश्विक स्तर पर बहुत बड़ा परिवर्तन आया है। शिशु मृत्यु दर कम हो गई है। 20 साल पहले हर वर्ष 5 वर्ष से कम आयु के करीब 1.5 करोड़ बच्चों की मौत हो जाती थी। अब यह 1 करोड़ से कम है। बेहतर भोजन और टीकों की व्यवस्था होने से अब कम बच्चे मरते हैं, उन्हें घातक रोगों से बचा लिया जाता हैं। दुर्भाग्य से नवजात शिशु मौतों की दर में कमी नहीं आ रही है क्योंकि प्रसव की जिन जटिलताओं से माँ की मौत होती है, उससे उनके बच्चे भी मर जाते हैं।
दुनिया भर में कहीं-न-कहीं हर मिनट एक महिला गर्भावस्था के दौरान या प्रसव के दौरान मर जाती है और करीब 20 महिलाएँ किसी-न-किसी रोग की शिकार हो जाती हैं। इसमें कहा गया है कि पाँच लाख से ज्यादा माताओं की मौतों में से 99 प्रतिशत विकासशील देशों में होती हैं। इन मौतों में कमी लाने के लिए तीन कदम उठाए जा सकते हैं। इनमें से एक, यह है कि जन्म के समय महिलाओं के पास कुशल सहायिका उपलब्ध हो। दूसरा कदम, यह है कि प्रसव के दौरान जटिलताएँ पैदा होने पर उसे आपात्कालीन चिकित्सा सुविधा उपलब्ध हो। उदाहरण के लिए शिशु के जन्म के दौरान कई बार बहुत अधिक खून बह जाता है, जिसे एक कुशल दाई सम्भाल नहीं सकती। इसके लिए अस्पताल जाना पड़ता है और वहाँ दो घंटों के भीतर पहुँचना जरुरी है ताकि जरुरत पड़ने पर माँ को खून दिया जा सके। तीसरा कदम, परिवार नियोजन है।
आँकड़ों से पता चलता है कि किसी महिला के अपने जीवन काल में गर्भावस्था से सम्बन्धित कारणों से मरने की सम्भावना 7 में से एक है। अमेरिका में 4,800 में से करीब 1 और स्वीडन में 17400 में से 1 महिला के मरने की सम्भावना रहती है। देश में जनसंख्या वृद्धि से रोजी, मकान और पीने योग्य पानी जैसी गम्भीर समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। इन समस्याओं का विश्व के प्रायः सभी देशों को सामना करना पड़ रहा है। जनसंख्या में लगातार बढ़ोत्तरी से भयंकर होती परिस्थितियों के विनाश से बचने के लिए व्यक्ति के संयमित आचरण की पवित्रता होनी चाहिये। बढ़ती हुई जनसंख्या पर गहन चिन्तन का विषय है। भारत में अभी भी जागरुकता और शिक्षा की कमी है। लोग जनसंख्या की भयावहता का अंदाजा नहीं लगा पा रहे है, कि यह भविष्य में हमें नुकसान कितना पहुँचा सकती है। भारत एक लोकतान्त्रिक देश है, यहाँ ऐसा सम्भव नहीं है। बिना जागरुकता और शिक्षा के प्रसार के इस पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता है।
अभी हाल में ही हमें दुनिया में बढ़ते खाद्यान संकट के लिए एशिया जिम्मेदार ठहराया गया था। खाद्यान संकट तेजी से बढ़ रहा है। अन्न के साथ जल संकट बढ़ रहा है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या ने प्रदूषण कि दर को भी धधका दिया है। जिससे जमीन की उर्वरता तेजी से घट रही है साथ ही पानी का स्तर भी तेजी से घट रहा है। बच्चे ‘भगवान की देन’ होते हैं, वाली मानसिकता का त्याग करना ही होगा वरना यदि हमनें समय रहते ही जागरुक प्रयासों से बढ़ती जनसंख्या को नहीं रोका तो एक दिन भूख और प्यास से हमारे अपने ही त्रस्त होंगे। प्रति व्यक्ति जागरुकता और प्रति व्यक्ति शिक्षा के बिना ऐसा सम्भव नहीं है। आने वाली पीढ़ियों को सुखी और समृद्ध बनाने के लिए जनसंख्या पर नियन्त्रण जरुरी है।
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