/regions/chhatarpur-district
छतरपुर जिला
बुन्देलखण्ड के किसान को मजबूरी ने बना दिया मजदूर
Posted on 30 Apr, 2016 03:28 PMखेती ने दिया धोखा : मनरेगा में काम नहीं
बुन्देलखण्ड : ग्रामोदय अभियान का सच
Posted on 24 Apr, 2016 02:11 PMलोगों को पता नहीं इस अभियान में क्या होना है और कब होना है। लोगों की भागीदारी भी नहीं।
जिला जल एवं स्वच्छता समिति प्रारम्भ कर रही है ऑपरेशन मल्हार
Posted on 07 Apr, 2016 01:01 PMजिला पंचायत सीईओ चंद्र मोहन सिंह ठाकुर ने ऑपरेशन मल्हार योजना
बुन्देलखण्ड पैकेज : केन्द्र तथा राज्यों को जारी करना होगा श्वेत पत्र – राजेन्द्र सिंह
Posted on 02 Feb, 2016 10:00 AM1. उजाड़, सुखाड़ तथा बिगाड़ बचाना है तो बुन्देलखण्ड के तालाबों को संरक्षित करना होगा।
2. सदियों से चले आ रहे पानी संचयन तरीके आज भी कारगर
पेशवा बाजीराव-मस्तानी के अमर प्रेम का गवाह है जैतपुर-बेलाताल
Posted on 17 Jan, 2016 03:06 PMकमल- कुमुदिनियों से सुशोभित मीलों तक फैले बेल
तालाबों को बचाने की जरूरत
Posted on 08 Jan, 2016 12:36 PM
इस बार बारिश बहुत कम होने की चेतावनी से देश के अधिकांश शहरी इलाकों के लोगों की चिन्ता की लकीरें इस लिये भी गहरी हैं कि यहाँ रहने वाली सोलह करोड़ से ज्यादा आबादी के आधे से ज्यादा हिस्सा पानी के लिये भूजल पर निर्भर है। वैसे भी भूजल पाताल में जा रहा है और इस बार जब बारिश हुई नहीं तो रिचार्ज भी हुआ नहीं, अब पूरा साल कैसे कटेगा।
बुन्देलखण्ड को सूखाने की कोशिश
Posted on 06 Nov, 2015 10:47 AMपिछले एक दशक में जितनी भी पेयजल और दूसरी योजनाएँ बुन्देलखण्ड क्षेत्र में चलाई गई हैं वह सभी अफस
पानीदार बुन्देलखण्ड सूख रहा है
Posted on 12 Oct, 2015 09:04 AMइंटरनेशनल नेचुरल डिजास्टर रिडक्शन दिवस, 13 अक्टूबर 2015 पर विशेष
और किशोर सागर बन गया ‘बूढ़ा नाबदान’
Posted on 19 Dec, 2014 10:04 AMकलम और तलवार दोनों के समान धनी महाराज छत्रसाल ने सन् 1907 में जब छतरपुर शहर की स्थापना की थी तो यह वेनिस की तरह हुआ करता थ। चारों तरफ घने जंगलों वाली पहाड़ियों और बारिश के दिनों में वहाँ से बहकर आने वाले पानी की हर बूँद को सहजेने वाले तालाब, तालाबों के बीच से सड़क व उसके किनारे बस्तियाँ।
सन् 1908 में ही इस शहर को नगरपलिका का दर्जा मिल गया था। आसपास के एक दर्जन जिले बेहद पिछड़े थे से व्यापार, खरीदारी, सुरक्षित आवास जैसे सभी कारणों के लिए लोग यहाँ आकर बसने लगे।
आजादी मिलने के बाद तो यहाँ का बाशिन्दा होना गर्व की बात कहा जाने लगा। लेकिन इस शहरीय विस्तार के बीच धीरे-धीरे यहाँ की खूबसूरती, नैसर्गिकता और पर्यावरण में सेंध लगने लगी।
तालाब मिटते गए सूखा बढ़ता गया
Posted on 29 Oct, 2014 12:53 PM यहां पचास हजार से अधिक कुएं हैं कोई सात सौ पुराने ताल-तलैया। केन, उर्मिल, लोहर, बन्ने, धसान, काठन, बाचारी, तारपेट जैसी नदियां हैं। इसके अलावा सैंकड़ों बरसाती नाले और अनगिनत प्राकृतिक झिर व झरने भी इस जिले में मौजूद हैं। इतनी पानीदार तस्वीर की हकीकत यह है कि जिला मुख्यालय में भी बारिश के दिनों में एक समय ही पानी आता है।होली के बाद गांव-के-गांव पानी की कमी के कारण खाली होने लग जाते हैं। चैत तक तो जिले के सभी शहर-कस्बे पानी की एक-एक बूंद के लिए बिलखने लगते हैं। लोग सरकार को कोसते हैं लेकिन इस त्रासदी का ठीकरा केवल प्रशासन के सिर फोड़ना बेमानी होगा, इसका असली कसूरवार तो यहां के बाशिंदे हैं, जिन्होंने नलों से घर पर पानी आता देख अपने पुश्तैनी तालाबों में गाद भर दी थी, कुओं को बिसरा कर नलकूपों की ओर लपके थे और जंगलों को उजाड़ कर नदियों को उथला बना दिया था।