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आत्मा की झील में
Posted on 16 Jul, 2011 09:21 AM कितने दिनों से पीड़ा-पराजय
पश्चाताप की झड़ी लगी है
हृदय को धूप दिखाना है

होंठ ठस पड़ते जा रहे हैं
खुलकर मुस्कुराना है
हँसना-खिलखिलाना है

आँखों में बहुत धूल भर गयी है
आत्मा की झील में
तैर कर आना है

आकाश माथे पर दिन चढ़ आया है
पूजा का वह इंदीवर लाना है
इधर कण्ठ ने पिया नहीं कुछ मीठा-मधुर
झील के घाट पर बैठ
है किसका अधिकार नदी पर
Posted on 15 Jul, 2011 03:11 PM

चलो नदी तट वार चलो रे
चलो नदी तट पार चलो रे,
करें यात्रा नदियों की
नदी वार तट पार चलो रे,
करें यात्रा नदियों की

इन नदियों के अगल-बगल ही
जीवन का विस्तार, चलो रे करें यात्रा नदियों की
आज इन्हीं नदियों के ऊपर
पड़ी है मारामार, चलो रे करें यात्रा नदियों की
टुकड़ा-टुकड़ा नदी बिक रही
बूँद-बूँद जल भर, चलो रे करें यात्रा नदियों की

झील की माटी अब खुश है
Posted on 15 Jul, 2011 09:12 AM झील से काढ़ी जा रही माटी का मन
पहले भारी था
लेकिन ट्राली में लदी हुई
झील की माटी अब खुश है
कि वह खेत में
हरियाली बन कर लहरायेगी
सुनेगी अंकुरित होते बीजों का संगीत
और अपने सम्पूर्ण वात्सल्य से उन्हें वह दुलराएगी

फसलों के फूल से
महकेगा अब उसका हिया
हवा में जब बालियों के दाने बजेंगे
मारे खुशी के वह झूम जायेगी
सीएसई का बारहवां मीडिया फैलोशिप- आवेदन की अंतिम तिथि बढ़ायी गई
Posted on 14 Jul, 2011 06:45 PM सेंटर फॉर साईंस एंड एन्वायर्न्मेंट (सीएसई) की पापिया समजदार से प्राप्त सूचना के अनुसार सीएसई के बारहवें मीडिया फैलोशिप- वाटरबॉडीज इन इंडिया: पब्लिक स्पेस, प्राइवेट डिजायन- में आवेदन करने की अंतिम तिथि बढाकर 31 मई,2011 कर दी गई है। इस सिलसिले में किसी भी स्पष्टीकरण के लिए कृपया निम्नलिखित नंबर पर फोन या फैक्स करें- फोन: 011-29955124, 29955125, फैक्स: 011-29955879' 9811906977
एक अनुभूति
Posted on 14 Jul, 2011 09:12 AM हलक सूख रहा है
अकड़ रहा है शरीर
प्यास के मारे छटपटा रही है जान
सूखते-सूखते कुआँ को ऐसा ही लगा होगा
इसी तरह तड़पी होगी सूखते समय नदी

अपना पानी चुकते लख
मछलियों को देख मरते
आसमान की तरफ़ निहार-निहार
कितना छटपटायी होगी
अपनी बड़ी झील!!

कीचड़ निकालने के वास्ते
Posted on 13 Jul, 2011 09:11 AM अपनी झील की पसलियों से
कीचड़ निकालने के वास्ते
उमड़ पड़ा है शहर

बड़ी झील को सहेजने-सँवारने में
लग गये हैं हाथ
तसलों-तगाडि़यों मंे भरी जा रही मिट्टी खुश है
कि पानी के लिए खाली कर रही है वह जगह

आसमान से अपना आफताब
हँस रहा है धूप-हँसी
और अब तगाड़ी-तसले उठाते लोगों के साथ
भिड़ गया है श्रमदान में खुद वह भी!

कोलांस
Posted on 12 Jul, 2011 09:27 AM बड़ी झील को भरी-पूरी देख कर
लहक उठती है कोलांस नदी

सुनते हैं आजकल कोलांस भी
झेल रही है सूखे की मार

दूरदराज से पानी लाकर
कोलांस ही भरती रही है बड़ी झील का पेट
बारिश का अभाव कि कोलांस भी
मनमसोस कर रह जाती है

कोलांस सूखती है
तो बड़ी झील के मन में उदासी बैठ जाती है
और बड़ी झील मछरी की तरह
छटपटाती रहती है गाद में रात-दिन!
बड़ी झील सूख कर
Posted on 09 Jul, 2011 11:27 AM यह आँखों को धोखा नहीं हुआ है
मैं वहाँ चल रहा हूँ जहाँ झील-तल में
लहराता था पोरसा भर पानी

कीचड़ भी अब सूख चुका
तल के चेहरे पर दरारों का जाला
फैला हुआ है

पपडि़यों में पानी का दरद है
टिटहरी की बोली और उदास करती है

बगुलों की बन आयी है
जीम रहे हैं मछरी
(बिना बकुल ध्यान के)

मरी मछरियों की गंध से
वहाँ आज कीचड़
Posted on 09 Jul, 2011 11:04 AM जहाँ पानी का जलसा होता था
वहाँ आज कीचड़ हँसता है

इतना सूख गयी है
झील
कि झील का ‘झ’ झुलसा हुआ दिखता है!
‘ई’ पपडि़याई हुई!!
‘ल’ की लाज भर के लिए
केवल अब पानी है!!!

सूखी झील
Posted on 08 Jul, 2011 09:40 AM सूखी झील को देखकर
आसमान के चेहरे पर
गहरी बेचैनी है

सतह का चेहरा भी
रूखा है
बिवाई की तरह फटा हुआ

बहुत सूख गयी है झील
तल की दरारों का अँधेरा
रात के पाँव में गड़ता है

जिस झील का पानी
पालता था पूरा शहर
वही झील आज

अपनी प्यास में छटपटाती है
उछलती लहरें बीत गयीं
और बचा हुआ पानी
गूँगा हो गया है!

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