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कचरे के ढेर पर
Posted on 26 Oct, 2012 12:42 PM तमाम प्रगति और तरक्की के दावों के बावजूद भारत की छवि दुनियाभर में कूड़े-कचरे से घिरे देश की बन रही है। महानगरों और नगरों में पसरी गंदगी तो लाइलाज हो चुकी है। यहां तक कि मनोरम पर्यटन और तीर्थस्थल भी साफ-सुथरे नहीं रह गए। देश में पनप रहे इस नए खतरे का जायजा ले रही हैं कविता वाचक्नवी।

अपने वातावरण के प्रति जागरूकता प्रत्येक में होनी ही चाहिए वर्ना पूरे देश को कूड़े के ढेर में बदलने में समय ही कितना लगता है? विदेश में रहने वालों के लिए इसीलिए भारत को देखना बहुधा असह्य हो जाता है और हास्यास्पद भी। प्रकृति की ओर से जिस देश को सर्वाधिक संसाधन और सौगात मिली है, प्रकृति ने जिसे सबसे अधिक संपन्न और तराशे हुए रूप के साथ बनाया है, वह देश अगर पूरा का पूरा हर जगह कचरे के ढेर में बदल चुका है, सड़ता दिखता है तो उसका पूरा दायित्व केवल सरकार का नहीं, नागरिकों का भी है। विदेशों-खासकर, यूरोप, अमेरिका और विकसित देशों में कचरे-कूड़े की व्यवस्था बहुत बढ़िया ढंग से होती है। हर परिवार के पास काउंसिल के बिंस एंड वेस्ट कलेक्शन विभाग की ओर से बड़े आकार के तीन वेस्ट बिंस खासकर मिले हुए होते हैं, जो घर के बाहर, लॉन में एक ओर या गैरेज या मुख्यद्वार के आसपास कहीं रखे रहते हैं। परिवार स्वयं अपने घर के भीतर रखे दूसरे छोटे कूड़ेदानों में अपने कचरे को तीन प्रकार से डालता रहता होता है। इसलिए घर के भीतर भी कम से कम तीन तरह के कूड़ेदान होते हैं। एक ऑर्गेनिक कचरा, दूसरा रिसाइकिल हो सकने वाला और तीसरा जो एकदम नितांत गंदगी है, इन दोनों से अलग। हफ्ते में एक सुनिश्चित दिन, विभाग की तीन तरह की गाड़ियां आती हैं, उससे पहले या (भर जाने पर यथा इच्छा) अपने घर के भीतर के कूड़ेदनों से निकाल कर तीनों प्रकार के बाहर रखे बिंस में स्थानांतरित कर देना होता है, जिसे वे निर्धारित दिन पर आकर एक-एक कर अलग-अलग ले जाती हैं।
कूड़े का ढेर बनता भारत
हम इस देश के लिए दिल से काम करना चाहते हैं : ईना युर्गा
Posted on 26 Oct, 2012 09:52 AM ग्वालियर (म.प्र)। हमारी यात्रा में थोड़ा ग्लैमर जरूर नजर आ रहा है, लेकिन यह सच्चाई नहीं है। वास्तव में हम इस देश के लिए दिल से काम करना चाहते हैं। यह हमारा मिशन है न कि प्रोफेशन। यह सबको पता है, विकासशील देशों में स्वच्छता एक बहुत बड़ी समस्या है। खासतौर पर भारत में हो रहे खुले में शौच का मुद्दा दुनिया भर में सेनिटेशन पर काम कर रहे संगठनों के लिए आज सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है। यहां तक कि वर्षों से
पोस्टर : तस्वीर को बदल डालो
Posted on 25 Oct, 2012 05:54 PM

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पोस्टर : तस्वीर को बदल डालो
पोस्टर : खेत से खाने तक
Posted on 25 Oct, 2012 05:45 PM पोस्टर को बड़े साइज में देखने के लिए अटैचमेंट देखें

पोस्टर : खेत से खाने तक
पोस्टर : शौचालय नहीं तो, दुल्हन नहीं
Posted on 25 Oct, 2012 05:34 PM ‘शौचालय नहीं तो, दुल्हन नहीं’ का नारा आज लोगों में खासा प्रचलित हो गया है। आज हर आदमी के पास मोबाइल है लेकिन घर में शौचालय क्यों नहीं। शौच जाने के लिए सबसे ज्यादा समस्या औरतों को उठाना पड़ता है, उन्हें अनेक तरह की बीमारियों का भी सामना करना पड़ता है। कुपोषण की गंभीर समस्या का मूल कारण खुले में शौच है और इसका सर्वाधिक दुष्प्रभाव बच्चों तथा महिलाओं पर पड़ता है।
पोस्टर : शौचालय नहीं तो, दूल्हन नहीं
शौचालय चुनौतियों के प्रति नया कीर्तिमान गढ़ना
Posted on 25 Oct, 2012 12:09 PM

बिल और मेलिण्डा गेट्स फाउंडेशन की ओर से तीसरे दौर के लिए आवेदन आमंत्रण


आरएफपी संख्या :- एसओएल 1071002
तिथि:- 01 अक्टूबर 2012
आवेदन की अंतिम तिथि :- 08 नवम्बर 2012, सायं 11 बजे (पीएसटी)

बिल और मेलिण्डा गेट्स फाउंडेशन की वाटर, सेनिटेशन और हाईजीन (डब्ल्यूएसएच) टीम अपने सहयोगियों के साथ मिलकर ऐसी सेनिटेशन सेवाओं को विकसित करने के लिए काम कर रही है, जो सभी के लिए कारगर हों। उनका उद्देश्य ऐसी सेनिटेशन सुविधाओं का विस्तार करना है, जो किसी सीवर के साथ नहीं जुड़ती। हालांकि सीवर ही आमतौर पर गरीब तबके द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला तरीका है लेकिन हम ऐसी प्रभावकारी सोच और विकल्पों का निवेश करने में यकीन रखते हैं जिससे असुरक्षित सेनिटेशन और खुले में शौच की प्रथा को खत्म करने में मदद हो सके। हम ऐसी तकनीकें और साधन इजाद करने में मदद करते हैं जिससे शहरी गरीबों के लिए पाइप रहित सेनिटेशन सुविधाओं में बढ़ोतरी होगी।
पोस्टर : सफाई का फूल खिलाएं, आओ निर्मल ग्राम बनाएं
Posted on 24 Oct, 2012 04:28 PM

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पोस्टर : सफाई का फूल खिलाएं, आओ निर्मल ग्राम बनाएं
पोस्टर : पानी का सुरक्षित रख-रखाव
Posted on 24 Oct, 2012 04:21 PM

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पोस्टर : पानी का सुरक्षित रख-रखाव
पोस्टर : कुएं के पानी को गंदा होने से रोकिए
Posted on 24 Oct, 2012 04:17 PM

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पोस्टर : कुएं के पानी को गंदा होने से रोकिए
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