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जोग के प्रपात का पुनर्दर्शन
Posted on 07 Mar, 2011 04:16 PM हिमालय, नीलगिरी और सह्याद्रि जैसे उत्तुंग पर्वत, गंगा, सिंधु, नर्मदा, ब्रह्मपुत्र जैसी सुदीर्घ नद-नदियां; और चिलका, वुलर तथा मंचर जैसे प्रसन्न सरोवर जिस देश में विराजते हों, उस देश में एकाध महान, भीषण और रोमांचकारी जलप्रपात न हो तो प्रकृति माता कृतार्थता का अनुभव भला किस प्रकार करे?
जोग का सूखा प्रपात
Posted on 07 Mar, 2011 04:13 PM याद नही किस कवि ने यह विचार प्रकट किया है; मगर उसका वह विचार मैं अपनी भाषा में यहां रख देता हूं।
पर्यावरण की कीमत पर विकास नहीं
Posted on 07 Mar, 2011 10:28 AM

पिछले सप्ताह इक्वाडोर के एक न्यायालय ने तेल प्रदूषण के कारण वर्षा वन को हुए नुकासन की भरपाई के लिए अमेरिकी केवरोन कोर्प तेल कंपनी को 8.6 अरब डॉलर का जुर्माना भरने को कहा। बताया जाता है कि पर्यावरण के क्षेत्र में किसी न्यायालय द्वारा लगाया गया यह सबसे बड़ा जुर्माना है। आज दुनिया भर में पर्यावरण के बिगड़ते हालात के कारण यह मुद्दा जोर पकड़ने लगा है कि विकाल संतुलित हो। हमारे वन एवं पर्यावरण मंत्री

100 वर्ष पुराने तालाब का ग्रामीणों ने किया जीर्णोद्धार
Posted on 07 Mar, 2011 09:56 AM

चरखी दादरी, जागरण संवाद केंद्र : दादरी उपमंडल के गांव ऊण में 100 वर्ष पुराने पक्के तालाब के जीर्णोद्धार व उसकी सफाई के लिए ग्रामीणों ने श्रमदान कर सार्थक पहल की। ग्रामीणों ने 2 किलोमीटर लंबी पाइप लाइन नहर से तालाब तक जोड़कर स्वच्छ पानी भरने की व्यवस्था अपने स्तर पर की है। गांव ऊण के तालाब के जीर्णोद्धार, सफाई व इसमें लबालब स्वच्छ पानी भरने के बाद ग्रामीणों ने तालाब के किनारे यज्ञ का आयोजन कर बा

जान पर बना यमुना का प्रदूषण
Posted on 07 Mar, 2011 09:45 AM

हमारे मुल्क में नदियों के अंदर बढ़ते प्रदूषण पर आए दिन चर्चा होती रहती है।प्रदूषण रोकने के लिए गोया बरसों से कई बड़ी परियोजनाएँ भी चल रही हैं। लेकिन नतीजे देखें तो वही “ढाक के तीन पात” प्रदूषण से हालात इतने भयावह हो गए हैं कि पेयजल तक का संकट गहरा गया है। राजधानी दिल्ली के 55 फीसद लोगों की जीवन-दायिनी, उनकी प्यास बुझाने वाली- यमुना के पानी में जहरीले रसायनों की मात्रा इतनी बढ़ गई है कि उसे साफ कर पीने योग्य बनाना तक दुष्कर हो गया है।

बीते एक महीने में दिल्ली में दूसरी बार ऐसे हालात के चलते पेयजल शोधन संयंत्रों को रोक देना पड़ा। चंद्राबल और वजीराबाद के जलशोधन केंद्रों की सभी इकाइयों को महज इसलिए बंद करना पड़ा कि पानी में अमोनिया की मात्रा .002 से बढ़ते-बढ़ते 13 हो गई, जिससे पानी जहरीला हो गया।

केंचुए वाली बहनजी
Posted on 06 Mar, 2011 12:55 PM

अगर मन में हो कुछ करने की तमन्ना, तो मुश्किल मंजिल भी आसान हो जाती है। बचपन में बाप का साया सिर से उठ गया। मगर, मां की प्रेरणा और जीवविज्ञान से लगाव ने डा. श्वेता यादव को राह दिखाई। डॉ. बी.आर. अंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा से मृदा विज्ञान में पीएच.डी.

हरित क्रांति बनाम मॉनसून आधारित खेती
Posted on 06 Mar, 2011 12:16 PM

खास बात- दिन बीतने के साथ हिन्दुस्तान के लिए कभी लगभग वरदान मान ली गई हरित क्रांति कठोर आलोचनाओं के घेरे में आई है। विकासपरक मुद्दों के कई चिन्तक मानते हैं कि जिन किसानों की खेत पहले से ही सिंचाई सुविधा संपन्न थे, हरित क्रांति के जरिए उन किसानों को लाभ पहुंचाने की गरज से कृषि नीति बनायी गई। इस क्रांति के बारे में बुनियादी आलोचना यह है कि देश की खेतिहर जमीन का तकरीबन 60 फीसदी हिस्सा सिंचाई के बा

संध्यारस
Posted on 05 Mar, 2011 02:47 PM गौरीशंकर तालाब का दर्शन यकायक होता है। हमने बगीचे में जाकर पेड़ों की शोभा देख ली, चीनी तश्तरी के टुकड़ों से बनाए हुए निर्जीव हाथी, घोड़े और शेरों का रुआब देखकर तथा पेड़ों के बीच मौज करने वाले सजीव पक्षियों का कलरव सुनकर तालाब के किनारे पहुंचे; सीढ़ियां चढ़ने लगे; और ठंडे पवन की शांति अनुभव करने लगे; तो भी ख्याल नहीं हुआ कि यहां पर तालाब होगा। आखिरी (यानी ऊपर की) सीढ़ी पर पांव रखा कि यकायक मानों आक
रेणुका का शाप
Posted on 05 Mar, 2011 01:35 PM रेणुका का मतलब है रेत। उसके शाप से कौन सी नदी सूख नहीं जायेगी? गया की नदी फल्गु भी इस तरह अंतःस्रोता हो गई हैं न! फिर वढबाण के पास की भोगावो भी ऐसी क्यों न हो? सौराष्ट्र में भोगावो (बरसात के बाद सूखने वाली नदियां) बहुत हैं। क्या हरेक को किसी न किसी राणकदेवी का शाप लगा होगा?
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