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यमुना-छवि
Posted on 04 Jul, 2013 03:13 PM तरनि-तनुजा-तट तमाल तरुवर बहु छाए।
झुके कूल सौं जल-परसन-हित मनहु सुहाए।।
किधौं मुकुर में लखत उझकि सब निज-निज शोभा।
कै प्रनवत जल जानि परम पावन फल लोभा।।
मनु आतप-वारन तीर कौ, सिमिट सबैं छाए रहत।
कै हरि-सेवा-हित नै रहै निरखि नैन नित सुख लहत।।

कहुँ तीर पर अमल कमल सोभित बहु भाँतिन।
कहुँ सैवालिन मध्य कुमुदिनी लगि रहि पाँतिन।।
जंगल में संवारें करिअर की राह
Posted on 04 Jul, 2013 09:21 AM आज बढ़ती आबादी व निर्बाध रूप से हो रहे निर्माण कार्यों का कारण धरती से जंगल खत्म होते जा रहे हैं। जंगल धरती की ऐसी प्राकृतिक संपदा है जो धरती पर मनुष्यों व जीव-जंतुओं के जीवन को आसान व रहने योग्य बनाते हैं। जंगल सैकड़ों जीव जंतुओं को ही नहीं, जड़ी-बूटियों को भी आश्रय देते हैं। जंगल पर्यावरण के लिहाज से ही नहीं, किसी देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी बेहद जरूरी है। दुनिया भर में जंगलों को बचाने पर बहुत
विकास की कीमत
Posted on 02 Jul, 2013 03:08 PM अगर वास्तव में हमें नदी का सही और पर्यावरणीय प्रबंधन करना है, तो
नदी जोड़ से नुकसान
Posted on 02 Jul, 2013 02:44 PM 1. बड़े बांधों के बनने से पहले 1951 तक भारत में एक करोड़ हेक्टेयर बाढ़ क्षेत्र था। बने बांधों के बाद अब 2013 में बाढ़ क्षेत्र बढ़कर सात करोड़ हेक्टेयर पहुंचने का आंकड़ा है। अकेले गुजरात में बीते तीन दशक के भीतर बाढ़ क्षेत्र में डेढ़ गुना वृद्धि हुई है। नदी जोड़ परियोजना में 400 बांध प्रस्तावित हैं। इनसे बाढ़ का क्षेत्रफल और बढ़ेगा।
हमसे संभलने को कहती धरती
Posted on 01 Jul, 2013 03:31 PM कोई सात हजार वर्ष पुरानी बात है, हमारे ग्रह पर तब हिमयुग समाप्त हुआ ही था, मानव ने खुलकर धूप सेंकना शुरू किया था। इसी धूप से जन्मी प्रकृति या फिर कहें आधुनिक जलवायु। हमने इस जलवायु चक्र की गतिशीलता, सुबह-शाम, मौसम सबका हिसाब बरसों से दर्ज कर रखा है। सदियों से शांत अपनी जगह पर खड़े वृक्षों के तनों की वलयें, ध्रुवों पर जमी बर्फ, समंदर की अतल गहराइयों में जमी मूंगें की चट्टानें सब हमारे बहीखाते हैं। मगर न जाने कैसे यह चक्र गडबड़ाने लगा जनवरी-फरवरी सर्दी, मार्च से मई तक गर्मी, जून से सितंबर तक बारिश, अब नहीं रहती। पता ही नहीं चलता कब कौन सा मौसम आ जाए। कुछ-कुछ हरा, कुछ ज्यादा नीला, कहीं से भूरा और कहीं-कहीं से सफेद रंग में रंगा जो ग्रह अंतरिक्ष से दिखता है, वह पृथ्वी है। मिट्टी, पानी, बर्फ और वनस्पतियों से रंगी अपनी पृथ्वी। यहां माटी में उगते-पनपते पौधे, सूर्य की किरणों से भोजन बनाते हैं और जीवन बांटते हैं। इन पर निर्भर हैं हम सभी प्राणी, यानी जीव-जंतु और मानव। इस धरती का हवा-पानी और प्रकाश, हम सब साझा करते हैं। हम सब मिलकर एक तंत्र बनाते हैं। लेकिन कुछ समय से सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। पिछले कुछ वर्षों से हमारी धरती तेजी से गर्म हो रही है। पिछले कुछ वर्षों से हमारी धरती तेजी से गर्म हो रही है, मौसम बदल रहे हैं, बर्फ पिघल रही हैं, समंदर में पानी बढ़ रहा है और वो तेजी से जमीन को निगलता जा रहा है। कुल मिलाकर हम सभी का अस्तित्व खतरे में है। धरती के गर्म होने की रफ्तार इतनी ज्यादा है कि कुछ वर्षों बाद आप अंतरिक्ष से पृथ्वी को देखेंगे तो या तो वहां सेहरा देखेंगे या फिर समंदर।
सौर युद्ध की चपेट में विश्व
Posted on 30 Jun, 2013 12:53 PM दुनियाभर में इस बात की आशा बंधी है कि सौर ऊर्जा के माध्यम से विद्
पश्चिमी घाट का पर्यावरणीय घोटाला
Posted on 28 Jun, 2013 01:43 PM माधव गाडगिल का खुला पत्र
रसायनों की जहरीली दुनिया
Posted on 26 Jun, 2013 09:49 AM सन् 1930 के दशक से शुरू हुई रासायनिक होड़ ने लाखों वर्षों की सभ्यत
कृषि की अहमियत
Posted on 25 Jun, 2013 03:00 PM भारतीय कृषक और कृषि आज दोनों ही संकट में हैं। खेती की बढ़ती लागत और प्राकृतिक संसाधनों पर बढ़ता दबाव स्थितियों को प्रतिकूल बना रह
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