विकास की कीमत

अगर वास्तव में हमें नदी का सही और पर्यावरणीय प्रबंधन करना है, तो पहाड़ी इलाकों में डायनामाइट विस्फोट पर पाबंदी लगनी चाहिए। अगर पहाड़ स्थिर होंगे, तो नदियां अपने बहने का सुरक्षित रास्ता खुद तलाश लेगी और वे मानव समुदाय को हानि नहीं पहुंचाएगी। उत्तराखंड की इस महाआपदा पर अपनी बात रखने से पहले एक तथ्य पर प्रकाश डालना चाहूंगी कि बीते वर्षों में केंद्र सरकार ने बार-बार यह का कि उत्तरकाशी से गोमुख तक के इलाके (जो फिलहाल सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं) को ‘हैरिटेज जोन’ के तौर पर चिन्हित कर वहां किसी भी तरह के निर्माण-कामों को रोका जाए। लेकिन उत्तराखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री ने इस मुद्दे को स्थानीय लोगों को विकास से दूर रखने का मसला बनाते हुए किसी की एक न सुनी। अब परिणाम हमारे सामने है और हमें इन्हें भुगतना होगा। विकास के नाम पर यह विनाश किसी भयंकर अपराध से कम नहीं, जो व्यवस्था द्वारा प्रायोजित है।

उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में आई भयंकर बाढ़ ने, जिसमें बादलों का फटना, भू-स्खलन, जमीन का धंसना और जमीन का जबर्दस्त कटाव भी शामिल है, उन व्यवस्थाओं को चुनौती दी है, जो नदी प्रबंधन के नाम पर बांधों, नहर-नालों के निर्माण और यहां तक कि नदी जोड़ो परियोजना तक की बात करते हैं। अगर इनके मार्गदर्शनों का अक्षरशः पालन हो, तो अंदाजा लगाइए कि त्रासदी का स्तर कितना भयावह होगा। दरअसल, नदी के बहाने हम पूरी पारिस्थितिकी को अस्थिर करने पर तुले हुए हैं और उनके परिणाम अब भुगतने भी लगे हैं।

यह नदियों के अस्तित्व का मसला है। पहाड़ की नदियां, खास तौर पर हमालयी नदियां अधिक बारिश में पानी बहा देती है। इसलिए वहां बाढ़ का कोई मतलब बनता ही नहीं है। पहले भूस्खलन कम होते थे और जो होते भी थे, वे भारी बारिश की वजह से होते थे। लेकिन जब हम विकास के नाम पर पहाड़ों में जंगल काटेंगे और जगह-जगह सड़क निर्माण, बांध – निर्माण या आधारभूत ढांचे के विकास के लिए पहाड़ों के अंदर विस्फोट करेंगे, तो पहाड़ कमजोर पड़ेंगे। इस दौरान जो मलबे निकलत हैं, वे नदियों में जाकर उनकी तलछटी में जमा हो जाते हैं। गौरतलब हैं कि पहाड़ों पर भारी बारिश के दौरान जब नदियों का पानी ऊपर से नीचे की ओर गिरता है, तो ये मलबे ही मानव समुदाय को नुकसान पहुंचाते हैं, न कि पानी।

अगर वास्तव में हमें नदी का सही और पर्यावरणीय प्रबंधन करना है, तो पहाड़ी इलाकों में डायनामाइट विस्फोट पर पाबंदी लगनी चाहिए। अगर पहाड़ स्थिर होंगे, तो नदियां अपने बहने का सुरक्षित रास्ता खुद तलाश लेगी और वे मानव समुदाय को हानि नहीं पहुंचाएगी।

नदी जोड़ों परियोजना पर मैने विस्तृत अध्ययन किया है और मैं इस नतीजे पर पहुंची हूं कि प्रकृति अपने सर्वाधिक सामर्थ्य के साथ नदियों को सही दिशा में प्रवाहित कर रही है। अब अगर इंसान इन नदियों की अविरलता से छेड़खानी करें या इसके रुख पर असर डाले, तो इससे पूरा नदी-तंत्र प्रभावित हो जाएगा।

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