अल्मोड़ा

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जलस्रोत और नदियों को बचाना है तो पानी बोओ और पानी उगाओ
वर्तमान में चलो गांव की ओर अभियान चलाकर ब्लॉक के दर्जनों गावों में जल स्रोत और रिस्कन नदी को बचाने के लिए काम कर रहे हैं। इस मुहिम में वह अब तक छोटे-बड़े हजारों चाल खाल रिस्कन नदी की पहाड़ियों के आसपास और गावों में बना चुके हैं
Posted on 28 Mar, 2023 04:58 PM

जल दिवस पर पानी बोओ पानी उगाओ अभियान के तहत बृहस्पतिवार को नगर पंचायत सभागार में महेश त्रिपाठी की अध्यक्षता में विचार गोष्ठी हुई। तेजी से सूख रहे प्राकृतिक जल स्रोतों को लेकर गोष्ठी में चिंता जताई गई। अभियान के संयोजक मोहन कांडपाल ने कहा कि समय पर जागरूकता नहीं आई तो भविष्य में भीषण पेयजल संकट उत्पन्न होगा। उन्होंने कहा कि नदी और जल स्रोतों को बचाने के लिए पिछले 30 वर्षों से काम कर रहे है, वर्त

जलस्रोत और नदियों को बचाना है तो पानी बोओ और पानी उगाओ
उत्तराखंड के अल्मोड़ा में 500 साल पुराना जलाशय राष्ट्रीय स्मारक घोषित हुआ
भारत के पहाड़ी राज्य उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा की मशहूर कवि सुमित्रानंदन पंत की जन्मस्थली स्यूनराकोट के नौला-धारा को राष्ट्रीय प्राचीन स्मारक घोषित किया गया है। Posted on 15 Feb, 2023 10:13 AM

भारत के छोटे से पहाड़ी राज्य उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा की मशहूर कवि सुमित्रानंदन पंत की जन्मस्थली स्यूनराकोट  के  नौला-धारा (स्वाभाविक रूप से पाए जाने वाले जलभृत) को राष्ट्रीय प्राचीन स्मारक घोषित किया गया है। इस मौके पर  एएसआई देहरादून सर्कल हेड मनोज कुमार सक्सेना ने कहा, "केंद्र सरकार ने हाल ही में स्यूनराकोट नौला को राष्ट्रीय महत्व का संरक्षित स्मारक घोषित कर अधिसूचना जारी की थी। अब भारतीय पुरात

500 साल पुराना जलाशय,(PC:-Toi)
पानी-पर्यावरण मास्टर - मास्टर मोहन कांडपाल 
रिस्कन नदी 40 किमी लंबी है। अब तक बने 5000 से अधिक खावों का प्रभाव कहीं-कहीं दिखाई देने लगा है। लेकिन एक नदी को जिंदा होने के लिए पर्याप्त नहीं है। रिस्कन नदी को बचाने हेतु उनके द्वारा माननीय प्रधानमंत्री महोदय, माननीय जल शक्ति मंत्री भारत सरकार व माननीय मुख्यमंत्री उत्तराखंड से भी निवेदन किया गया है।
Posted on 17 Jan, 2023 09:17 AM

प्यार से पर्यावरण वाले मास्साब के नाम से जाने जाने वाले मोहन चंद्र कांडपाल का जन्म वर्ष 1966 में कुमाऊं की पहाड़ियों में स्थित अल्मोड़ा, उत्तराखंड के विकासखंड द्वाराहाट के ग्राम कांडे में श्री गोपाल दत्त कांडपाल जी के परिवार में हुआ था। उनके पिता कानपुर में एक बैंक में कर्मचारी थे। 5 वर्ष की उम्र में वह पिता के साथ रहने कानपुर चले गए। बचपन वह रामकृष्ण मिशन आश्रम में जाते व वहां के साहित्य को पढ

एक खाव बनती हुई
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