सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरोनमेंट
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हौजखास
Posted on 05 Aug, 2010 01:56 PMभारत में जलाशयों का निर्माण लंबे समय तक जारी रहा। इस संदर्भ में फीरोज शाह तुगलक (1351-1388 ई.) का उल्लेख सार्वजनिक निर्माणों के लिए विशेषकर किया जा सकता है। सिंचाई की पांच नहरों, नदियों पर कई बांधों, जलाशयों और पुराने निर्माणों की मरम्मत के लिए उनको विशेष याद किया जाता है।बंगाल में सिंचाई
Posted on 06 Aug, 2010 09:01 AMबंगाल में जलप्लवान सिंचाई व्यवस्था काफी लोकप्रिय थी। इसमें गंगा और दामोदर में बाढ़ के पानी और बरसात के पानी का पूरा इस्तेमाल किया जाता था। इस सदी के प्रारंभ में इस व्यवस्था का अध्ययन करने वाले विलियम विलकॉक्स के मुताबिक, यह बंगाल की विशिष्ट जरूरतों के बिल्कुल अनुकूल थी। बंगाल में जलप्लवान सिंचाई व्यवस्था काफी लोकप्रिय थी। इसमें गंगा और दामोदर में बाढ़ के पानी और बरसात के पानी का पूरा इस्तेमाल किया जाता था। इस सदी के प्रारंभ में इस व्यवस्था का अध्ययन करने वाले विलियम विलकॉक्स के मुताबिक, यह बंगाल की विशिष्ट जरूरतों के बिल्कुल अनुकूल थी। इस सिंचाई व्यवस्था के विशेष गुण ये थे- नहरें चौड़ी और उथली थीं, जो नदी में बाढ़ का पानी बहा ले जाती थीं। इस पानी में महीने मिट्टी और मोटी रेत होती थी।
नहरें एक-दूसरे की समानान्तर लंबी होती थीं। उनमें बीच की दूरी सिंचाई के लिहाज से उपयुक्त होती थी।
पारसियों का बांध
Posted on 05 Aug, 2010 09:31 AMगबरबंध के नाम से ही पता लगता है कि ये पारसियों या अग्निपूजकों का बांध था। पत्थर के इन बांधों का आकार और मजबूती ढलान के हिसाब से होती थी। दर्रों में ऊंचे और मजबूत बांध बनाए गए, तो सामान्य ढलानों पर संकरे और कम ऊंचे बांध बनाए गए। इन गबरबंधों का मकसद था- “शुष्क, बंजर पत्थरों पर कछारी मिट्टी की सतह बैठाना और बाढ़ के पानी को फायदेमंद उपयोग के लिए जमा करना।” कहीं-कहीं इसका मकसद जलाशयों में पानी जमा र