प्रशांत कुमार दुबे
प्रशांत कुमार दुबे
पलायन की त्रासदी में पिसता बचपन
Posted on 18 Jul, 2016 04:29 PM‘एड एट एक्शन’ नाम की संस्था ने भोपाल में पलायन कर शहरों में काम करने आये मजदूरों के बच्चोंके साथ काम शुरू किया
लोकतंत्र में किसान की पैरवी
Posted on 08 Mar, 2014 09:29 AMएकता परिषद् और केंद्र सरकार के बीच भूमि सुधारों को लेकर आगरा में हुआ समझौता एक बार पुनः अपनी पर
चुटका: परमाणु की जहरीली रोशनी
Posted on 17 Aug, 2013 03:22 PM चुटका ने सत्ताधारियों को पुनः बतला दिया है कि अब उनकी चुटकी बजातेमैं गरीब हूं..
Posted on 03 Jun, 2013 11:16 AM यह कहानी मध्यप्रदेश के खंडवा जिले की है, जहां पिछले दिनों जिला प्रजान लेते पुण्य के सिक्के
Posted on 04 Dec, 2012 11:45 AMनर्मदा में सिक्कों को लूटने-बीनने के चक्कर में आए दिन दुर्घटनाएं हो रही हैं। कई बच्चों की मौत हो चुकी है और कई कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों के शिकार हो गए हैं। होशंगाबाद इलाके में इस तरह के लालच में फंसकर दर्जनों बच्चों ने पढ़ाई-लिखाई छोड़ दी है। इस समस्या का जायजा ले रहे हैं प्रशांत कुमार दुबे।पानी में गलते विस्थापितों की जीत
Posted on 14 Sep, 2012 04:26 PMसुनो/वर्षों बादअनहद नाद/दिशाओं में हो रहा है
शिराओं से बज रही है/एक भूली याद वर्षों बाद ......।
ओंकारेश्वर और इंदिरा सागर बांध के संबंध में वर्ष 1989 में नर्मदा पंचाट के फैसले में यह स्पष्ट कर गया था कि हर भू-धारक विस्थापित परिवार को जमीन के बदले जमीन एवं न्यूनतम 5 एकड़ कृषि योग्य सिंचित भूमि का अधिकार दिया जायेगा। इसके बावजूद पिछले 25 सालों में मध्यप्रदेश सरकार ने एक भी विस्थापित को आज तक जमीन नहीं दी है। लेकिन 17 दिन के जल सत्याग्रह से सत्याग्रहियों ने सरकार को नाकों चने तो चबवा दिए हैं।
दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां 10 सितम्बर 2012 को तब चरितार्थ हो गई जबकि मध्य प्रदेश सरकार ने खंडवा जिले के घोघलगांव में पिछले 17 दिनों से जारी जल सत्याग्रह के परिणामस्वरूप सत्याग्रहियों की मांगे मान लीं तथा विस्थापितों को जमीन के बदले जमीन देने का भी एलान किया। सरकार ने ओंकारेश्वर बांध का जलस्तर घंटों में कम भी कर दिया। यह एक ऐतिहासिक जीत थी। सवाल यह है कि आखिर ऐसी कौन सी मजबूरियां गांव वालों के सामने रहीं कि वे उसी मोटली माई (नर्मदा), जिसे वे पूजते हैं, में स्वयं को गला देने के लिए मजबूर हो गए।सूचना का अधिकार कानूनः धुंधली होती पारदर्शिता
Posted on 25 Dec, 2010 12:45 PMसूचना का अधिकार अधिनियम को कमजोर करने के सरकारी प्रयास पूरे जोर-शोर से जारी हैं। आजादी के बाद पहली बार एक ऐसा कानून प्रचलन में आया है, जिसमें आम जनता को सवाल पूछने का अधिकार मिला था। परंतु सरकारों और अधिकारियों को आम जनता को जवाब देना नागवार गुजर रहा है इसलिए वे इस कानून में परिवर्तन कर इसकी आत्मा को ही नष्ट कर देना चाहते हैं। का. सं.बाबा महारिया की चिट्ठी सीएम के नाम
Posted on 07 Dec, 2010 04:49 PMनर्मदा आंदोलन के 25 साल पूरे हो गये लेकिन लड़ाई अब भी जारी है। बाबा आमटे, मेधा पाटकर, स्व। आशीष, आलोक, चितरुपा, कमलू जीजी, कैलाश भाई जैसे नेतृत्वकारी साथियों के अलावा इस लड़ाई की असली ताक़त वे हज़ारों लोग हैं, जो अपनी-अपनी समझ और क्षमता के अनुसार उस लड़ाई का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। मध्यप्रदेश के झाबुआ के जलसिंधी गाँव के निवासी बाबा महारिया ऐसे ही लड़ाकों में से हैं। सालों पहले निरक्षर बाबा