मनीष वैद्य

मनीष वैद्य
सौ साल पुराने तालाब का हैप्पी बर्थडे
Posted on 24 Sep, 2016 03:03 PM

तालाब को सौगात के रूप में निगम इसकी पाल पर स्टोन पिचिंग, रेलि
पानी की कमी, घटने लगे मोर
Posted on 22 Sep, 2016 04:22 PM

मोरों के प्राकृतिक विहार अब पूरी तरह उजड़ चुके हैं। जहाँ मोर
पानी की मार से पान पर संकट
Posted on 22 Sep, 2016 10:59 AM

गर्मियों के दिनों में तापमान 30 से 38 तक जाने लगा है वहीं अनि
महानदी के पानी का विवाद, रास्ता किधर है
Posted on 20 Sep, 2016 12:00 PM

छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के बीच अब महानदी के पानी को लेकर तलवारें खींचती जा रही है। एक तरफ छत्तीसगढ़ का कहना है कि वह अपने बड़े हिस्से में से अब तक केवल 25 फीसदी पानी का ही इस्तेमाल कर रहा है तो दूसरी तरफ उड़ीसा का कहना है कि छत्तीसगढ़ में महानदी पर 13 छोटी-बड़ी परियोजनाएँ निर्माणाधीन हैं। इससे उनके राज्य को यथोचित मात्रा में पानी नहीं मिल सकेगा।
250 साल बाद बावड़ी का पुनरुद्धार
Posted on 18 Sep, 2016 04:33 PM

आज भी जहाँ का समाज पानी के लिये उठ खड़ा होता है, वहाँ कभी किसी को पानी की किल्लत नहीं झेलनी पड़ती। पानी की चिन्ता करने वाले समाज को हमेशा ही पानीदार होने का वरदान मिलता है। ऐसा हम हजारों उदाहरण में देख-समझ चुके हैं। अब लोग भी इसे समझ रहे हैं। बीते पाँच सालों में ऐसे प्रयासों में बढ़ोत्तरी हुई है। गर्मियों के दिनों में बूँद-बूँद पानी को मोहताज समाज के सामने अब पानी की चिन्ता करने और उसके लिये सामुदायिक प्रयास करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

हमारे समाज में सैकड़ों सालों से पानी बचाने और उसे सहेजने के लिये जल संरचनाएँ बनाने का चलन है। जगह-जगह उल्लेख मिलता है कि तत्कालीन राजा-रानियों और बादशाहों ने अपनी प्रजा (जनता) की भलाई के साथ पानी को सहेजने और उसके व्यवस्थित पर्यावरण हितैषी तौर-तरीकों से, जिनमें कुएँ-बावड़ियाँ खुदवाने से लेकर तालाब बनवाने, नदियों के घाट बनवाने, प्यासों के लिये प्याऊ और भूखों के लिये अन्नक्षेत्र खोलने जैसे कदमों के साथ ही कहीं-कहीं छोटे बाँध बनाकर सिंचाई या लोगों के पीने के पानी मुहैया कराने के प्रमाण भी मिलते हैं।

पर यह भी सच है कि आज भी जहाँ का समाज पानी के लिये उठ खड़ा होता है, वहाँ कभी किसी को पानी की किल्लत नहीं झेलनी पड़ती। पानी की चिन्ता करने वाले समाज को हमेशा ही पानीदार होने का वरदान मिलता है। ऐसा हम हजारों उदाहरण में देख-समझ चुके हैं। अब लोग भी इसे समझ रहे हैं।
पानी पर जरूरी है समाज की निगरानी
Posted on 17 Sep, 2016 04:16 PM

विश्व जल निगरानी दिवस, 18 सितम्बर 2016 पर विशेष


कावेरी पर कलह, पहला हक किसका
Posted on 17 Sep, 2016 11:41 AM

एक लोककथा है, जिसमें राजा के पास लोग जाते हैं और शिकायत करते हैं कि उनके गाँव के पास से बहने वाली नदी पर एक शराब बनाने वाले ने बाँध बनाकर पानी रोक दिया है। इससे उन्हें पीने का पानी नहीं मिल रहा इस पर राजा नदी से पूछते हैं तो नदी कहती है कि उस पर सबसे पहला अधिकार शराब बनाने वाले का नहीं बल्कि वहाँ के समाज का है।
कावेरी के कोहराम से लेने होंगे सबक
Posted on 13 Sep, 2016 05:12 PM

कावेरी नदी के पानी को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु आमने-सामने हो गए हैं। अब यह विवाद फिर से हिंसक रूप लेने लगा है। पानी के नाम पर दोनों राज्यों के लोगों में नफरत की आग इस तरह फैली है कि वे एक दूसरे को मरने-मारने पर उतारू होते जा रहे हैं। आगजनी की घटनाएँ हो रही हैं। यह बहुत शर्मनाक है, उन दोनों राज्यों के लिये ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिये।
झीनी-झीनी हो रही धरती की चदरिया
Posted on 12 Sep, 2016 04:09 PM

अन्तरराष्ट्रीय ओजोन संरक्षण दिवस, 16 सितम्बर पर विशेष


झीनी झीनी बीनी चदरिया ॥
काहे कै ताना काहे कै भरनी,
कौन तार से बीनी चदरिया ॥ 1॥
इडा पिङ्गला ताना भरनी,
सुखमन तार से बीनी चदरिया ॥ 2॥
आठ कँवल दल चरखा डोलै,
पाँच तत्त्व गुन तीनी चदरिया ॥ 3॥
साँ को सियत मास दस लागे,
ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया ॥ 4॥
सो चादर सुर नर मुनि ओढी,
नदी के प्रवाह क्षेत्र में तान दी बिल्डिंग
Posted on 10 Sep, 2016 04:21 PM

लालच जब हद से बढ़ जाये तो विनाश शुरू होता है। यही बात हमारी नदियों के बारे में भी लागू होती है। बीते कुछ सालों में हमने जमीन के कुछ टुकड़ों की खातिर हमारी बेशकीमती नदियों और उनके पूरे तंत्र को खत्म कर लिया है। इससे प्रकृति का हमारा हजारों सालों से चला आ रहा ताना–बाना टूट गया है और अब हम प्राकृतिक विनाश की कगार तक पहुँच चुके हैं।

ताजा मामला मध्य प्रदेश के इन्दौर शहर के पास कनाडिया गाँव का है, जहाँ मॉर्डन मेडिकल कॉलेज के संचालक ने नदी के प्रवाह क्षेत्र में ही अतिक्रमण करते हुए कॉलेज की बिल्डिंग तान दी है। बड़ी बात यह है कि इससे गाँव में नदी की बाढ़ का खतरा बढ़ गया है।
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