लालच जब हद से बढ़ जाये तो विनाश शुरू होता है। यही बात हमारी नदियों के बारे में भी लागू होती है। बीते कुछ सालों में हमने जमीन के कुछ टुकड़ों की खातिर हमारी बेशकीमती नदियों और उनके पूरे तंत्र को खत्म कर लिया है। इससे प्रकृति का हमारा हजारों सालों से चला आ रहा ताना–बाना टूट गया है और अब हम प्राकृतिक विनाश की कगार तक पहुँच चुके हैं।
ताजा मामला मध्य प्रदेश के इन्दौर शहर के पास कनाडिया गाँव का है, जहाँ मॉर्डन मेडिकल कॉलेज के संचालक ने नदी के प्रवाह क्षेत्र में ही अतिक्रमण करते हुए कॉलेज की बिल्डिंग तान दी है। बड़ी बात यह है कि इससे गाँव में नदी की बाढ़ का खतरा बढ़ गया है।
बीते दिनों तेज बारिश के दौरान कनाडिया गाँव में पानी घुस गया था, वहीं आसपास के करीब एक सौ किसानों की डेढ़ सौ एकड़ खेती भी प्रभावित हुई। ग्रामीणों की शिकायत पर जिला प्रशासन ने जाँच की तो उसमें भी अतिक्रमण की शिकायत सही मिली है लेकिन अब तक इसे लेकर जिला प्रशासन ने कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की है।
दरअसल क्षिप्रा की सहायक नदी कंकावती यहाँ से करीब 15 किमी दूर देव गुराड़िया की पहाड़ियों से निकलती है और इन्दौर जिले के बेगमखेड़ी, चौहानखेड़ी आदि गाँवों से गुजरते हुए कनाडिया पहुँचती है। यहाँ से आगे का सफर तय करती हुई करीब 20 किमी आगे मेल कलमा में जाकर क्षिप्रा में विलीन हो जाती है।
आसपास के करीब आधा दर्जन गाँव के लोगों के लिये 35-40 किमी की परिधि में बहने वाली यह नदी कभी जीवनरेखा हुआ करती थी। इसी के पानी से उनके बुजुर्ग बरसों अपने कामकाज करते रहे और इसे माँ की तरह पूजते रहे। नदी किनारे के मन्दिरों में पूजा होती। नए और शुभ कामों की शुरुआत इसी नदी के किनारों से ही होती रही।
करीब दस हजार से ज्यादा की आबादी वाला कनाडिया गाँव इन्दौर से करीब 8 किमी दूर हुआ करता था लेकिन अब यह इन्दौर नगर निगम की शहरी सीमा में ही आ गया है। शहरी सीमा में आने के बाद भी यहाँ का जन-जीवन अब तक ग्रामीण ही बना हुआ है। ज्यादातर लोग खेती करते हैं। कंकावती नदी के किनारे पर ही बसा हुआ है यह गाँव।
कनाडिया के रहने वाले कमल पटेल बताते हैं कि गाँव जबसे शहरी सीमा में दाखिल हुआ है, तब से ही जमीन के लालची कुछ पूँजीपतियों ने यहाँ की जमीनें औने–पौने दामों में खरीदना शुरू कर दी। इन्हीं में एक है रमेश बदलानी, इसने ग्रामीण क्षेत्र में गाँव के लोगों को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के नाम पर मॉर्डन मेडिकल कॉलेज के नाम पर मान्यता लेकर यहाँ कॉलेज की बिल्डिंग बनवाई। नियमों का पालन नहीं करने पर मेडिकल कौंसिल ने इसकी मान्यता रद्द कर दी थी लेकिन इस साल फिर लोढ़ा कमेटी कि सिफारिश के बाद दो करोड़ रुपए की बैंक गारंटी और शपथपत्र देकर बदलानी को स्वास्थ्य मंत्रालय ने सशर्त मान्यता दी है।
उन्होंने बताया कि एक बिल्डिंग यहाँ पहले से ही आस्था शिक्षण संस्था के नाम पर बनी हुई थी। लेकिन बदलानी ने इसे और विस्तारित और बदलते हुए अपनी जमीन के राजस्व रकबा क्र. 1152/6 से आगे बढ़ते हुए कंकावती नदी के प्राकृतिक बहाव क्षेत्र में ही बिल्डिंग तान दी। नदी के बेसिन में अतिक्रमण ही नहीं किया, नदी पर पर्यावरण या राजस्व विभाग की अनुमति के बिना पुलिया भी बना दी। कॉलेज संचालक ने अपने कॉलेज की गन्दगी बहाने के लिये एक पाइप नदी में ही छोड़ दिया है। जब ग्रामीणों ने इसकी शिकायत की तो कॉलेज संचालक धमकाने लगा।
मजबूत एरण पत्थरों की दीवार बना देने से नदी का प्राकृतिक बहाव रुक गया है। इससे बाढ़ के समय पानी बहकर गाँव में घुस जाता है। इस साल तेज बारिश के दौरान भी गाँव की निचली बस्तियों में रहने वाले कुछ घरों में पानी घुस गया था।
क्षिप्रा की सहायक नदी कंकावती यहाँ से करीब 15 किमी दूर देव गुराड़िया की पहाड़ियों से निकलती है और इन्दौर जिले के बेगमखेड़ी, चौहानखेड़ी आदि गाँवों से गुजरते हुए कनाडिया पहुँचती है। यहाँ से आगे का सफर तय करती हुई करीब 20 किमी आगे मेल कलमा में जाकर क्षिप्रा में विलीन हो जाती है। आसपास के करीब आधा दर्जन गाँव के लोगों के लिये 35-40 किमी की परिधि में बहने वाली यह नदी कभी जीवनरेखा हुआ करती थी। इसी के पानी से उनके बुजुर्ग बरसों अपने कामकाज करते रहे और इसे माँ की तरह पूजते रहे।
इतना ही नहीं करीब सौ किसानों की डेढ़ सौ एकड़ जमीन में खड़ी फसल में भी पानी घुसा और इससे किसानों की फसलों को भारी नुकसान हुआ। गाँव के पटवारी भी बताते हैं कि यहाँ मेडिकल कॉलेज ने नियमों का उल्लंघन किया है। इस तरह गाँव के प्राकृतिक नदी-नालों की जमीन पर कोई भी अतिक्रमण नहीं कर सकता। यह सरासर गैर कानूनी है और इसमें अपराध साबित होने पर कड़ी कार्रवाई की जाती है।किसानों ने इसकी शिकायत इन्दौर जिला कलेक्टर पी नरहरी से मिलकर की। इस पर जिला कलेक्टर श्री नरहरी ने इस मामले में कार्रवाई के निर्देश देते हुए इलाके के एसडीएम रजनीश श्रीवास्तव को लिखा। श्री श्रीवास्तव ने इलाके के राजस्व निरीक्षक और पटवारी को जाँच के लिये मौके पर भेजा तो ग्रामीणों की शिकायत सही पाई गई।
मौका-मुआयना की रिपोर्ट भी राजस्व दल ने एसडीएम श्री श्रीवास्तव को सौंप दी है। लेकिन अब तक कोई बड़ी कार्रवाई नहीं होने से किसान और ग्रामीण निराश हैं, वहीं मॉर्डन कॉलेज संचालक की ओर से कुछ लोग ग्रामीणों को धमका कर शिकायत वापस लेने का दबाव भी बना रहे हैं। क्षेत्र के विधायक राजेश सोनकर ने बताया कि उन्होंने भी इस मामले में अधिकारियों से बात की है। यदि नदी पर हुए अवैधानिक अतिक्रमण के खिलाफ कठोर कार्रवाई नहीं हुई तो वे प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारियों के सामने अपनी बात रखेंगे।
इसके खिलाफ आरटीआई एक्टिविस्ट डॉ आनंद रॉय ने भी एमसीआई और अन्य स्थानों पर शिकायत दर्ज कराई है। यहाँ ग्रामीणों के लिये साढ़े तीन सौ शैया वाला हॉस्पिटल होना चाहिए लेकिन हैरत है कि इस मेडिकल कॉलेज में एक भी रोगी भर्ती नहीं किया जाता है। यह सिर्फ बच्चों से पैसे वसूलने का जरिया बना हुआ है।
जाँच के दौरान कुछ लोगों को मरीज बनाकर लिटा दिया जाता है। जब कुछ पत्रकारों ने इसका सच दिखाने की कोशिश की तो मॉर्डन मेडिकल कॉलेज के संचालक रमेश बदलानी और उसके कुछ भाड़े के लोगों ने पत्रकारों के साथ मारपीट भी की। इसकी शिकायत कनाडिया थाने में दर्ज हुई और बदलानी को गिरफ्तार भी किया गया।
बुजुर्ग ग्रामीण बताते हैं कि यह नदी सदानीरा हुआ करती थी और साल भर इसमें पानी भरा रहा करता था। बुजुर्ग उन दिनों को याद करते हैं, जब वे इस नदी के पानी में नहाया करते थे। साफ पानी बारिश से लेकर गर्मियों के दिनों तक भरा रहता और गाँव के लोग अपने निजी उपयोग सहित मवेशियों के लिये भी यहीं से पानी लिया करते थे। नदी की वजह से आसपास के जलस्रोतों और कुएँ-कुण्डियों का जलस्तर बना रहता था।
बुजुर्ग बाबूलाल बताते हैं कि उन्होंने 20 साल पहले तक जल संकट जैसी कोई बात गाँव में कभी देखी तक नहीं। नदी की वजह से कुएँ-कुण्डियों में हाथ भर की रस्सी से ही पानी मिल जाया करता था। खूब अच्छी खेती होती थी। लोग चड़स चलाकर नदी के पानी को नहरों के जरिए खेत की रगों तक पहुँचाते और खेत सोना उगलते।
पर बीते बीस सालों में इधर लालच की ऐसी हवा चली कि पानी पाताल तक गहरे उतर गया। अब तो हालत यह है कि लोग नदी के अन्दर तक जाकर अतिक्रमण कर रहे हैं। लोगों के लालच ने माँ कही जाने वाली हमारी नदियों का भी आदर–सत्कार छोड़ दिया है। हम इसे माँ की तरह पूजते रहे लेकिन अब तक तो लोग इसमें कूड़ा-करकट डालते हैं।
युवा राजेश कुमार भी मानते हैं कि हमने भूल की है और अपनी जल विरासत को भूल बैठे थे। अब हम जाग गए हैं और अपने जलस्रोतों की कीमत पहचान गए हैं। अब हम गाँव के युवा नदी को पुनर्जीवित करने की कोशिश में जुटे हैं।
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Post By: RuralWater