मासानोबू फुकूओका
खरपतवारों के बीच खेती
Posted on 21 May, 2011 10:05 AMयदि चावल शरद ऋतु में बोया गया हो और बीजों को ढंका न गया हो तो बीजों को अक्सर चूहे या परिंदे खा
प्राकृतिक खेती के चार सिद्धांत
Posted on 20 May, 2011 01:26 PMछेड़-छाड़ न करने से प्रकृति-संतुलन बिल्कुल सही रहता है। नुकसानदेह कीड़े तथा बीमारियाँ तो मौजूद
मानवता, नहीं पहचानती, जानती प्रकृति को
Posted on 19 May, 2011 10:51 AMइस बात को लेकर काफी गहरी शंकाएं होने लगेंगी कि मानव, प्रकृति को समझता भी है या नहीं, और यह उसक
एक कारण, प्राकृतिक कृषि के विस्तार न होने का
Posted on 18 May, 2011 10:15 AMइस तरह की सोच मूल मुद्दे को ही पकड़ने से चूक जाती है। जो किसान समझौते या बीच के रास्ते की तरफ
हमें वापस अपनी जड़ों की ओर लौटना होगा
Posted on 17 May, 2011 10:08 AMबिना हल से जुते खेतों में फसलें लगाना हमें खेती के आदिम तरीके की तरफ लौटना नजर आ सकता है। लेकि
खेती की ‘कुछ-मत-करो’ विधि की ओर
Posted on 16 May, 2011 03:50 PMयही बात वैज्ञानिकों पर भी लागू होती है। वे दिन-रात पोथियां पढ़कर उनमें अपनी आंखें गढ़ाकर अपनी
अपने गांव वापस लौटना
Posted on 14 May, 2011 11:31 AMमैं अपने अनुभव को वास्तविक रूप से प्रदर्शित कर दूं तो दुनिया को उसकी सच्चाई का पता चल जाएगा। अ
कुछ भी नहीं यह संसार
Posted on 13 May, 2011 10:28 AMमेरा मुख्य काम बाहर से आने वाले तथा जाने वाले पौधों का निरीक्षण करके यह पता लगाना था कि उन्हें
देखो इस अनाज के दाने को
Posted on 12 May, 2011 10:31 AMखेती का यह तरीका आधुनिक कृषि की तकनीकों के सर्वथा विपरीत है। यह वैज्ञानिक जानकारी तथा परम्पराग