केसर

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सूखे में भी सुखी हैं आशुतोष
Posted on 07 Jan, 2016 09:50 AM

बुन्देलखण्ड में 2013 के साल को छोड़ दें तो अवर्षा के कारण सूखे की कुदरती मार एक बार फिर गम्भीर हो चुकी है। अति सूखा ग्रस्त इलाकों में महोबा, हमीरपुर, चित्रकूट, बांदा, झाँसी और ललितपुर हैं। लाखों की संख्या में लोग पलायन कर रहे हैं। पहले रबी की फसल कमजोर हुई और अब खरीफ की फसल भी लगभग बर्बाद हो गई है नतीजा लोग भुखमरी झेल रहे हैं। पानी और चारा की कमी के कारण पालतू गायों को लोग खुला छोड़ रहे हैं अन्ना प्रथा जोर पकड़ रही है और सियार जैसे जंगली जानवर गोइणर में मरे पाए जा रहे हैं। बरसात का मौसम बीत चुका है, सर्दियाँ आ चुकी हैं और गर्मी आने वाली है। आने वाली गर्मी में पानी की किल्लत की आशंका से लोग अभी से हलकान हैं। लोग चिन्तित हैं कि जब सर्दी में ही पानी की दिक्कत हो रही है तो गर्मी में हलक कैसे गीला होगा।

पिछले दो-तीन दशकों से सतही पानी और भूजल में भारी गिरावट देखी जा रही है। भूजल स्तर के लगातार गिरावट से हैण्डपम्प, ट्यूबवेल और नलकूप साथ छोड़ते जा रहे हैं। बड़े-बड़े तालाब भी सूख चले हैं। ऐसे में कोई ऐसा तालाब दिख जाए जिसमें अभी भी 20 फीट पानी भरा हो तो रेगिस्तान में नखलिस्तान जैसा ही नज़र आता है।

शान्ति के लिये भी जरूरी है 'पेरिस जलवायु-सम्मेलन' की सफलता
Posted on 20 Nov, 2015 03:06 PM
पवित्र जुम्मे का दिन शुक्रवार कलंकित हुआ है। तेरह नवम्बर 2015 अब इतिहास का हिस्सा है। दुनिया के सबसे खूबसूरत शहरों में शुमार पेरिस इस्लामी जिहाद का युद्ध मैदान बन चुका है। आतंकी कत्लेआम की भयावहता से हम सब आहत महसूस कर रहे हैं, साथ ही आईएसआईएस की बर्बरता गुस्सा भी दिला रहा है।

पूरी दुनिया एकजुट है आतंकवाद के बर्बर और हिंसक हमले के खिलाफ। इसी वातावरण के बीच 'पेरिस जलवायु शिखर सम्मेलन' होना है। लगता ऐसा है कि तीस नवम्बर से ग्यारह दिसम्बर तक चलने वाला 'पेरिस जलवायु-सम्मेलन' निराशा, बेबसी और क्रोध में फँस सकता है। पर जरूरी यह है कि शान्ति और विवेक से आतंकी-बर्बरता का जवाब भी दिया जाये और जलवायु परिवर्तन से होने वाले खतरों का सही जवाब भी खोजा जाये।
पानी पुनरुत्थान पहल की जरूरत
Posted on 09 Dec, 2013 11:32 AM
नगर के मध्य कुओं, तालाबों, मंदिरों तक जल-जीवन को बचाने के लिए अपने पारंपरिक जल-संरक्षण के विधियों के पुनरुत्थान की पहल में भागीदारी का न्यौता देते हुए पुनः जल में भरी गगरियों को जय-सागर तालाब में रखकर पूजन के साथ पानी पुनरुत्थान पहल में भागीदारी का संकल्प लेकर लिए गए जल को वापस उसी में छोड़ा गया। इस कलश यात्रा का उद्देश्य “पानी पुनरुत्थान पहल” जय सागर तालाब में श्रमदान अनुष्ठान का संदेश भागीदारी के लिए नगरवासियों को प्रेरित करना था। बुंदेलखंड क्षेत्र के उन पानीदार स्वजनों तक हाली-हालतों की अंर्तमुखी जुबान की दो पंक्तियां पहुंचाने की कोशिश है जो इस धरती के अन्न, जल, वायु, माटी, ऊर्जा (प्रकाश) और संस्कृति के कर्ज़दार हो अथवा इस पावन धरती की कृषि एवं ऋषि संस्कृति की परंपराओं पर विश्वास रखते हों।

पानी उन पंचमहाभूतों में से एक ऐसा प्रकृति प्रदत्त तत्व है जिसकी शरीर संरचना में तीन चौथाई भागीदारी है। जिसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है, जिस पर सदा से समाज के सभी तबकों जीव-जंतु, जानवर, पशु -पक्षी, पेड़-पौधे, वनस्पति सबकी जरूरत के अनुरूप समान हिस्सेदारी रही है। आखिर ऐसे महत्वपूर्ण तत्व “पानी” के सूखते जल स्रोत और दिन-ब-दिन भूमि जल संकट से हताहत पशु परिंदे और जनपानी के लिए धूमिल होते रिश्तों की हत्या, पानी पर पुलिस के पहरे, बाजार में बिकता
जीडी की जिद, क्या बहेगी गंगा
Posted on 04 Apr, 2012 04:04 PM

नदी नहीं गधेरे


बड़े बांधों के खिलाफ नारा ‘गंगा को अविरल बहने दो, गंगा को निर्मल रहने दो’ यह दो दशक पुराना नारा है। पुराना संघर्ष तो पानी पर लिखा इतिहास हो चुका है। उसको समझने के लिए ‘पानी की दृष्टि’ चाहिए। पुराना तो छोड़िए नए में देश के उत्तर पूर्व के एक राज्य असम के लखीमपुर जिले में निर्माणाधीन लोअर सुबानसिरी को वहां के जनसंगठनों की तरफ से नवम्बर-दिसम्बर 2011 से हजारों की संख्या में चक्का जाम कर बांध निर्माण को रोक दिया गया है।

भागीरथी, धौलीगंगा, ऋषिगंगा, बालगंगा, भिलंगना, टोंस, नंदाकिनी, मंदाकिनी, अलकनंदा, केदारगंगा, दुग्धगंगा, हेमगंगा, हनुमानगंगा, कंचनगंगा, धेनुगंगा आदि ये वो नदियां हैं जो गंगा की मूल धारा को जल देती हैं या देती थीं। देती थीं इसलिए कहना पड़ रहा है कि गंगा को हरिद्वार में आने से पहले 27 प्रमुख नदियां पानी देती थीं। जिसमें से 11 नदियां तो धरा से ही विलुप्त हो चुकी हैं और पांच सूख गई हैं। और ग्यारह के जलस्तर में भी काफी कमी हो गई है। यह हाल है देवभूमि उत्तराखंड में गंगा और गंगा के परिवार की। नदी निनाद कर बहती है। उसके तीव्र वेग के कारण ही वह नदी कहलाती है। यदि किसी धारा में कलकल और उज्जवल जल नहीं तो वह उत्तराखंड में गधेरा कहा जाता है उसको नदी का दर्जा प्राप्त नहीं होता।
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