बुन्देलखण्ड में 2013 के साल को छोड़ दें तो अवर्षा के कारण सूखे की कुदरती मार एक बार फिर गम्भीर हो चुकी है। अति सूखा ग्रस्त इलाकों में महोबा, हमीरपुर, चित्रकूट, बांदा, झाँसी और ललितपुर हैं। लाखों की संख्या में लोग पलायन कर रहे हैं। पहले रबी की फसल कमजोर हुई और अब खरीफ की फसल भी लगभग बर्बाद हो गई है नतीजा लोग भुखमरी झेल रहे हैं। पानी और चारा की कमी के कारण पालतू गायों को लोग खुला छोड़ रहे हैं अन्ना प्रथा जोर पकड़ रही है और सियार जैसे जंगली जानवर गोइणर में मरे पाए जा रहे हैं। बरसात का मौसम बीत चुका है, सर्दियाँ आ चुकी हैं और गर्मी आने वाली है। आने वाली गर्मी में पानी की किल्लत की आशंका से लोग अभी से हलकान हैं। लोग चिन्तित हैं कि जब सर्दी में ही पानी की दिक्कत हो रही है तो गर्मी में हलक कैसे गीला होगा।
पिछले दो-तीन दशकों से सतही पानी और भूजल में भारी गिरावट देखी जा रही है। भूजल स्तर के लगातार गिरावट से हैण्डपम्प, ट्यूबवेल और नलकूप साथ छोड़ते जा रहे हैं। बड़े-बड़े तालाब भी सूख चले हैं। ऐसे में कोई ऐसा तालाब दिख जाए जिसमें अभी भी 20 फीट पानी भरा हो तो रेगिस्तान में नखलिस्तान जैसा ही नज़र आता है।
सूखाग्रस्त बुन्देलखण्ड में कुछ लोगों ने अपने खेत में तालाब बनाकर जलसंचय किया है। ऐसा ही एक प्रयास उत्तरप्रदेश में स्थित जिला हमीरपुर, तहसील मौदहा, ग्राम जिगनौड़ा निवासी आशुतोष तिवारी के खेत मे देखने को मिला। वर्षा की अनमोल बूँदों को सहेजकर रखने वाले बुन्देलखण्ड के ही किसान आशुतोष के पास इस अकाल के दौर में भी पानी का बंदोबस्त है। उन्होंने अपने तालाब से खेत में फसलों और रोपित सैकड़ों पेड़ों की सिंचाई का समुचित प्रबंध किया हुआ है। अपने फसलों और रोपित पौधों में भी संयमित पानी का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। अपने तालाब के काफी पानी को उन्होंने बचा रखा है। पूछने पर बताते हैं कि काफी पानी वह बचाकर रखेंगे ताकि आवारा पशुओं, जंगली जानवरों और ग्रामीण जानवरों को पीने का पानी मिल सके। यकीनन ऐसे प्रयासों में ही बुन्देलखण्ड के सूखे के समाधान के बीज छुपे हुए हैं।
चित्रकूटधाम मण्डल मुख्यालय बांदा से महज दस मील की दूरी पर गाँव जिगनौडा है। इस गाँव की पूर्वी उत्तरी सीमा पर बांदा जिले का मोहनपुरवा व सुरौली, उत्तर पश्चिम में हमीरपुर जिले का गुशियारी व इचौली, दक्षिण सीमा में महोबा जिले का अखबई गाँव है। इस गाँव में पहले से बने लगभग आधा दर्जन सार्वजनिक तालाबों में पानी की एक बूँद भी नहीं है। पर इसी गाँव के किसान आशुतोष के अपने तालाब में पानी का भरपूर भण्डार है। चार हेक्टेयर पर बोई गई फसलों, सब्जियों और पेड़ों के लिये पानी का पुख्ता प्रबंध तो है ही साथ ही गाँव में भटकते हुए पशुओं और जंगली जानवरों की प्यास बुझाने का व्यावहारिक साधन भी।
बुन्देलखण्ड में असंतुलित ऋतुओं के मिजाज को भाँपते हुए किसान आशुतोष ने वर्ष 2013 में अपने खेत पर तालाब बनाया। एक सौ पचास मीटर लम्बाई, पैसठ मीटर चौड़ाई और आठ मीटर गहराई के निर्मित तालाब के बनते ही पहली बरसात ने ही तालाब को भर दिया। किसान आशुतोष के पास पचहत्तर हजार घन मीटर पानी का भण्डारण तो हो गया पर उसके खर्चने की योजना नहीं थी। उन्होंने अपनी बंजर और परती जमीन को हरी-भरी करने के लिये तीन हजार इमारती और फलदार पेड़ लगाने का हौसला जुटाया। पानी के लगातार उपयोग के बाद अब भी किसान आशुतोष के तालाब में लगभग चालीस हजार घन मीटर पानी उपलब्ध है।
पानी के वैभव सम्पन्न किसान आशुतोष तिवारी कहते हैं 'बुन्देलखण्ड के किसानों के लिये सम्भावित सूखा-अकाल और पानी के बढ़ते संकट से निपटने का सहज उपाय अपने खेत पर अपनी जरूरत का तालाब ही है। पर जरूरत इस बात की भी है कि हमें पानी के स्वभाव को समझना होगा और उसके प्रयोग को भी।' उनका मानना है कि अधिकाधिक उत्पादन पाने की लालसा के बजाय अपने खेत की सेहत और परिवार की जरूरत को आधार बनाना हितकर है।
आशुतोष तिवारी बताते हैं कि 'वर्ष 2013 में मैंने तालाब निर्माण कराया उसी वर्ष बारिश भी अच्छी हुई थी जिससे इस तालाब में तत्काल पानी भर गया तब से इस तालाब में लगातार पानी भरा रहता है। उस समय हमारे खेत के आस-पास जितने भी तालाब लोगों ने खुदवाए थे। उन सब में अभी भी भरपूर मात्रा में पानी भरा हुआ है। इन तालाबों की वजह से आज हमारे खेत में फसलें दिखाई पड़ रही हैं वरना पूरे क्षेत्र की तरह हमारा भी खेत पानी की किल्लत से बोया नहीं जाता और भूमि बंजर पड़ी रहती। खेत में तालाब की सुलभता होने से सूखे में भी खेती सम्भव हुई है।'
अब आशुतोष महज बारिश की फसलों पर निर्भर न रहकर हर मौसम में अनेक प्रकार की फसलें ले रहे हैं। साथ ही एक निश्चित भूभाग पर बागवानी भी लगाए हुये हैं। जिनमें आम, अमरूद, सीताफल, कटहल, नींबू, मौसमी, करौंदा के 700 आदि के फलदार वृक्ष और सागौन के 700 वृक्ष लगे हैं। तालाब बंधी पर भी अरहर की फसल लगी थी उन्होंने बताया कि इससे 1 क्विंटल अरहर प्राप्त हुआ था। इस तालाब से कुछ ही मीटर की दूरी पर ग्राम पंचायत और गणेश प्रसाद तिवारी एवं रमेश प्रसाद तिवारी का संयुक्त तालाब भी हैं।
अपना तालाब अभियान संयोजक पुष्पेंद्र भाई का कहना है कि बुन्देलखण्ड के मौजूदा हालातों में समाज और सरकार के बीच हर सम्भव सामंजस्य, विचार एवं व्यवहार सन्तुलन की प्राथमिक जरूरत है। ऐसे वक़्त में सभी को अपनी भूमिका निभानी है। एक-दूसरे पर दोषारोपण की बजाए हमें समाज की ताकत को पहचानना चाहिए और अपने निजी स्तर पर भी सूखे से समाधान की कोशिश करनी चाहिए। जिगनौडा के आशुतोष तिवारी ने सूखे में एक मिशाल पेश की है।
बुन्देलखण्ड के सूखे से निपटने के लिये हम सबको अपने हुनर, अपने संसाधन और अपने सम्बन्धों की पूँजी का सदुपयोग कर जरूरत की छोटी-छोटी योजनाओं पर काम करना होगा। और यह राज-समाज की साझी पहल से ही सम्भव है। सरकार को चाहिए कि बड़ी योजनाओं की बजाय ग्रामीण जीवन में रचे-बसे खेती-किसानी, पेड़ और पानी की विधाओं में अनुभवी, पारंगत, कुशल किसान शिल्पियों को आगे रखे। उनके अनुभवों को परखे और उनके मुताबिक छोटी-छोटी पर स्थायी निदान की आधारभूत योजनाओं पर समय रहते काम शुरू करे। इससे ना केवल किसानों को वर्तमान से उबरने और भविष्य को सँवारने का रास्ता मिलेगा, बल्कि सूखा-अकाल जैसी विभीषिकाओं का स्थायी समाधान भी मिलेगा।
बुन्देलखण्ड में तालाबों की संस्कृति पिछले एक-डेढ़ हजार साल से खूब समृद्ध रही है। बुन्देलखण्ड के लगभग हरेक गाँव में यत्र-तत्र-सर्वत्र तालाब फैले हुए मिल जाएँगे। बुन्देलखण्ड की धरती और माटी के साथ ही पठारी धरातल में सबसे उपयुक्त जलसंरक्षण की पद्धति तालाब ही हैं। चंदेल राजाओं ने लगभग एक हजार साल पहले स्वयंसिद्ध, समयसिद्ध तालाब और बावड़ियों की खूबसूरती को पहचान लिया था और उनको चिरस्थाई बनाने के लिये हर सम्भव कोशिश की थी। हम भूल गये, अब परेशान हैं, जरूरत है कि लौटें, और स्वयं को पहचानें। आशुतोष सूखे में भी सुखी हैं, क्योंकि उन्होंने अपने तालाब में पानी टिकाया, अब पानी उन्हें टिकाए हुए है।
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