चंडी प्रसाद भट्ट

चंडी प्रसाद भट्ट
ब्रह्मपुत्र की गोद में कुदरत से बर्ताव
Posted on 25 Feb, 2012 03:29 PM

असम में ब्रह्मपुत्र का विराट रूप मिलता है तो अरुणाचल में उसकी शाखाओं तथा बिगड़े हुए जल संग्रह क्षेत्रों को जानने

गंगा के साथ-साथ
Posted on 21 Feb, 2012 05:27 PM

बनारस जिले में गंगा-वरुणा संगम के समीप पर स्थित सरायी गोहना गांव में गंगा द्वारा भूमि कटान से कई मकान कट रहे हैं

सतलज यात्रा
Posted on 21 Feb, 2012 02:07 PM

अब हम सतलज के काफी निकट पहुंचे गए थे। उसका विशाल स्वरूप दिखने लग गया था। वह शोर करती हुई आगे बढ़ रही थी। उसका पा

चिशूल के आसपास
Posted on 21 Feb, 2012 12:42 PM

यूरा की देखभाल एवं पानी के वितरण की भी गांवों में परंपरा से ही प्रबंध है। इस कार्य में बारी लगाई जाती है। इसे छु

रंग-बिरंगे पहाड़ों के बीच हरी-भरी घाटियां
Posted on 15 Feb, 2012 05:45 PM

सुरू नदी फिर एक तिकोने फैले हुए पाट में पहुंचती है। यहां भी हरियाली बनी है। इस गांव को पानीखर के नाम से पुकारा ज

झेलम घाटी में
Posted on 28 Sep, 2011 04:23 PM

“गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेSस्मिन सन्निधं कुरू।।”

इस आपदा ने विकास की असलियत बतायी
Posted on 20 Jul, 2011 04:06 PM

सितंबर के तीसरे सप्ताह भर की अखंड बारिश ने पूरे उत्तराखंड को जाम करके रख दिया था। उसने सोर-पिथौरागढ़ से लेकर रामा-सिनाई, बंगाण तथा बद्रीनाथ से हरिद्वार, कपकोट से नैनीताल तक के बीच के क्षेत्र को झिंझोड़ कर रख दिया। लगभग दो सौ लोग तथा नौ सौ पशु मारे गये। एक हजार मकान और फसल से भरे खेत नष्ट हो गये थे। एक गणना के अनुसार राष्ट्रीय राजमार्गों सहित गाँवों को जोड़ने वाले नौ सौ मोटर मार्ग भी ध्वस्त हो ग

प्रकृति ज्ञान हो विकास
Posted on 09 Sep, 2018 03:09 PM


भोगवादी व्यवस्था ने हिमालयी क्षेत्र पर अत्यधिक दबाव बनाया है। जिससे हिमालय में कई गम्भीर समस्याएँ पैदा हो रही हैं। मिट्टी की ऊपरी परत का ह्रास, भू-क्षरण और भूस्खलन, हिमानियों का पीछे सरकना, सामाजिक आर्थिक विकास जैसे कुछ प्रमुख लक्षण हैं।

हिमालय
जल-जंगल साथ-साथ
Posted on 07 Jun, 2018 05:53 PM

पानी का सम्बन्ध सीधे-सीधे जंगल और हरियाली से है। जंगल बारिश के जल को अपने भीतर समाकर जलधाराओं को आबाद करते हैं।

chandi prasad bhatt
प्राकृतिक आपदाओं को निमंत्रित करता समाज
Posted on 20 Jun, 2010 09:34 PM
(दुनिया में पर्यावरण को लेकर चेतना में वृद्धि तो हो रही है परंतु वास्तविक धरातल पर उसकी परिणिति होती दिखाई नहीं दे रही है। चारों ओर पर्यावरणीय सुरक्षा के नाम पर लीपा-पोती हो रही है। विगत दिनों डेनमार्क की राजधानी कोपनहेगन में हुए विश्व पर्यावरण सम्मेलन की असफलता ने मनुष्यता को और अधिक संकट में डाल दिया है।)

पर्यावरण आज एक चर्चित और महत्वपूर्ण विषय है जिस पर पिछले दो-तीन दशकों से काफी बातें हो रहीं हैं। हमारे देश और दुनियाभर में पर्यावरण के असंतुलन और उससे व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा भी बहुत हो रही है और काफी चिंता भी काफी व्यक्त की जा रही है लेकिन पर्यावरणीय असंतुलन
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