चिन्मय मिश्र

चिन्मय मिश्र
वर्तमान में छिपा है भविष्य
Posted on 01 Jun, 2014 10:55 AM

5 जून पर्यावरण दिवस पर विशेष


कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा फिर भी मानव ने न चेताजब अंतिम वृक्ष काट दिया गया होगा
जब आखिरी नदी विषैली हो चुकी होगी
जब अंतिम मछली पकड़ी जा चुकी होगी
तभी तुम्हें अहसास होगा
कि पैसे खाए नहीं जा सकते

कान्हा टाइगर रिजर्व
Posted on 22 Dec, 2013 11:52 AM
कोई भी आदिवासी व्यक्ति या समाज कभी भी आनंद के लिए शिकार नहीं करता।
जंगलों से विस्थापन
Posted on 29 Oct, 2013 12:18 PM

‘सुरक्षित वन और असुरक्षित समुदाय’


सभ्यता का अर्थ है प्रकृति के खिलाफ अभियान – बर्टेड रसल
विस्थापन मतलब जिंदगी का उजड़ जाना
Posted on 30 Sep, 2013 01:29 PM
मानव समाज आज उस मुकाम पर पहुंच चुका है, जहां दुनिया जाइरोस्कोप जैसी तेजी से बदल रही है। इसके बावजूद मनुष्य के स्वभाव में, उसकी सामाजिकता में इतना कम परिवर्तन हो सका है कि हम यह दावा नहीं कर सकते कि विज्ञान मनुष्य को अच्छा मनुष्य भी बनाता है। ‘भगवान सिंह’
जल सत्याग्रह: हमने भंवर बांध लिए पाँवों में
Posted on 21 Sep, 2013 04:06 PM
न कोई ख्वाब हमारे हैं न ताबीरें हैं,
हम तो पानी पर बनाई हुई तस्वीर हैं!

.कतील शिफाई
शीशा पत्थर पर दे मारना
Posted on 30 Jun, 2013 02:39 PM
बस जरा सी गफलत होती है और जंगल,
आदमी की गिरफ्त से छूटकर,
दीवारों की कवायद में शामिल
हो जाता है!

धूमिल
उत्तराखंड: विकास का सालाना उत्सव
Posted on 25 Jun, 2013 10:52 AM
अगर धीरे चलो,
वह तुम्हे छू लेगी,
दौड़ो दूर छूट जाएगी नदी!

केदारनाथ सिंह
जनप्रतिनिधियों द्वारा जनविरोध
Posted on 04 Oct, 2012 03:44 PM
जिसके पास थाली है,
हर भूखा आदमी,
उसके लिए, सबसे भद्दी
गाली है
- धूमिल

बाजू भी बहुत हैं सिर भी बहुत
Posted on 01 Sep, 2012 12:29 PM
मेरी हड्डियां
मेरी देह में छिपी बिजलियां हैं,
मेरी देह
मेरे रक्त में खिला हुआ कमल।

- केदारनाथ सिंह

नर्मदा घाटी के निवासियों के धैर्य की दाद देना पड़ेगी। इतने अत्याचार व बेइंसाफी सहने के बावजूद वे आज भी अहिंसात्मक संघर्ष के अपने वादे पर कायम हैं। सरकार और कंपनियों को इस मुगालते में भी नहीं रहना चाहिए कि अमानवीय व्यवहार से आंदोलनकारियों का मनोबल टूटेगा। वास्तविकता तो यह है कि इस जल सत्याग्रह या जल समाधि की गूंज पूरे विश्व में सुनाई देने लगी है और यह देश व प्रदेश की सरकारों को आज नहीं तो कल कटघरे में अवश्य ही खड़ी करेंगी।

नर्मदा घाटी में स्थित ओंकारेश्वर बांध में पानी के स्तर को अवैध रूप से 189 मीटर से 193 मीटर बढ़ाए जाने के विरोध में पिछले करीब एक हफ्ते से 34 बांध प्रभावित घोघलगांव में जल सत्याग्रह कर रहे हैं। उनकी कमर से ऊपर तक पानी चढ़ चुका है और लगातार पानी में डूबे रहने से शरीर गलना प्रारंभ हो गया हैं। फिर भी वे कमल की मानिंद पानी की सतह पर टिके हुए हैं। लेकिन सरकार व एनएचडीसी जो कि बिजली उत्पादन करने वाली सरकारी कंपनी है और पुनर्वास उसकी ही मूलभूत जिम्मेदारी है, टस से मस नहीं हो रहे हैं। गौरतलब है सर्वोच्च न्यायालय ने मई 2011 में दिए अपने निर्णय में स्पष्ट रूप से कहा था कि जमीन के बदले जमीन ही दी जानी चाहिए और इसके पीछे न्यायालय की सोच भी स्पष्ट है कि पुनर्वास, पुनर्वास नीति के अनुरूप ही हो।
जीवन न्यौछावर को तैयार जनसमूह
Posted on 06 Jul, 2012 05:06 PM
‘ओंकारेश्वर तीर्थ अलौकिक है। भगवान शंकर की कृपा से यह देवस्थान के तुल्य है। यहां जो अन्नदान, तप, पूजा करते अथवा मृत्यु को प्राप्त होते हैं, उनका शिवलोक में निवास होता है।’
- स्कंद पुराण रेवा खंड अ – 22

ओंकारेश्वर के आधुनिक बदसूरत मंदिर की ओर जब भी ध्यान आता है तो एकाएक मन में विचार उठने लगने लगता है कि क्या हम अपने देश की संस्कृति के साथ इतना घटिया व्यवहार भी कर सकते हैं? पूरे देश की धार्मिक व सांस्कृतिक भावनाएं ओंकारेश्वर से जुड़ी हैं और नर्मदा नदी उस आस्था का अभिन्न अंग है। पूरे देश से लोग यहां आते हैं और बिना विरोध जताए ‘पवित्र’ दर्शन कर लौट भी जाते हैं। हमारे नीति निर्माता देश के पवित्रतम स्थानों में से एक को एक बदबूदार नाले में बदलकर चैन की नींद कैसे सो सकते हैं?

ओंकारेश्वर एक अनूठा तीर्थ है। बारह ज्योतिर्लिंगों में इसकी गणना होती है। इसकी एक और विशेषता यह है कि यहां एक नहीं दो ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर एवं अमलेश्वर हैं। लेकिन द्वादश (बारह) ज्योतिर्लिंगों की गणना करते समय इन्हें एक ही गिना जाता है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों के नाम वाले श्लोकों में इसे ‘ओंकारममलेश्वरम’ कहा गया है। ये दोनों मंदिर नर्मदा नदी के आर-पार बने हुए है, जिन्हें एक पैदल पुल आपस में जोड़ता है।
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