भारत में लगभग 8 हजार रेलवे स्टेशन हैं। रोजाना करोड़ों लोग ट्रेनों से यात्रा करते हैं। इन स्टेशनों पर शौचालय से लेकर पानी पीने तक की सभी प्रकार की सुविधाएं हैं। ट्रेन में मौजूद पानी के टैंकरों को भरने और ट्रेनों को धोने के लिए भी यहां पानी की लाइन बिछाई गई होती है, लेकिन जल संकट से जूझ रहे भारत में के अधिकांश रेलवे स्टेशनों पर जल संरक्षण और पानी का पुनःउपयोग करने की कोई व्यवस्था नहीं है। जिस कारण हर दिनों हजारों लीटर पानी व्यर्थ बह जाता है। पानी की बर्बादी को रोकने और जल संरक्षण की तरफ ध्यान केंद्रित करते हुए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने रेलवे स्टेशनों को रेड, ऑरेंज और ग्रीन श्रेणी में बांटने का प्लान तैयार किया है। स्टेशनों को मिलने वाली कैटेगरी वहां से निकलने वाले गंदे पानी की मात्रा पर आधारित होंगे। इसके लिए रेलवे को राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से एनओसी भी लेनी होगी।
द हिंदू में प्रकाशित खबर के मुताबिक केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जारी गाइडलाइन के अनुसार रेलवे स्टेशन की कैटगरी उस स्टेशन से जेनरेट होने वाले गंदे पानी और उसके ट्रीटमेंट के बगैर निगम के नाले में डिस्पोजल पर आधारित होगा। इसमें रोजना 100 किलोमीटर से ज्यादा गंदा पानी बाहर निकालने वाले रेलवे स्टेशन को रेड कैटगरी का स्टेशन माना जाएगा। प्रतिदिन 10 से 100 किलो लीटर तक गंदे पानी का जनरेट करने वाले स्टेशनों को ऑरेज का दर्जा मिलेगा। ग्रीन कैटगरी में वैसे रेलवे स्टेशन शामिल होंगे जहां से रोजाना 10 किलो लीटर से कम गंदे पानी का डिस्पोजल होगा।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जारी पत्र के बाद रेलवे बोर्ड के पर्यावरण निदेशालय ने सभी जोनल रेलवे को रेलवे स्टेशनों में अपशिष्ट जल उत्पादन को तत्काल कम करने के उपाय तलाशने को कहा है। इसके साथ ही सीवेज और नॉन सीवेज वाले पानी की गुणवत्ता के अनुसार वाटर रीसाइक्लिंग प्लांट की स्थापना करने का निर्देश दिया गया है।
/articles/vaesatavaaentara-kae-adhaara-para-raelavae-sataesana-kai-banaengai-kaaitaegarai