भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा भारतीय वन सर्वेक्षण के पूर्व महानिदेशक डा. देवेन्द्र पांडेय की अध्यक्षता एवं 9 अन्य सदस्यों वाली नियुक्त की गई विशेषज्ञ समिति ने नर्मदा घाटी में अति विवादास्पद सरदार सरोवर परियोजना (एसएसपी) और इंदिरा सागर परियोजना (आईएसपी) के सुरक्षा उपायों से संबंधित सर्वेक्षण, अध्ययन व योजनाओं एवं उनके कार्यान्वयन पर हाल ही में मंत्रालय को अपनी दूसरी अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत की है।
सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत हासिल हुई यह रिपोर्ट वास्तव में सरदार सरोवर परियोजना के लिए चार राज्य सरकारों, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं राजस्थान द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों एवं आईएसपी के लिए मध्य प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज पर आधारित है। रिपोर्ट में इन दो महाकायी परियोजनाओं के जलग्रहण क्षेत्र उपचार, लाभ क्षेत्र विकास, जीव, जंतुओं एवं वहन क्षमता, क्षतिपूरक वनीकरण एवं स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असरों सहित अति महत्वपूर्ण पर्यावरणीय पहलुओं के अनुपालन पर चैकाने वाली जानकारियां हैं। समिति के रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि परियोजना प्राधिकारों द्वारा ‘‘शर्तों का घोर उल्लंघन’’ किया गया है। सरदार सरोवर नर्मदा निगम लिमिटेड (एसएसएनएनएल), गुजरात सरकार एवं नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए), मध्य प्रदेश एवं महारष्ट्र सरकार द्वारा शर्तों के घोर उल्लंघन की वजह से ‘‘पर्यावरण को अपूरणीय क्षति’’ हो रही है। दोनों परियोजनाओं को पहली बार 1987 में सशर्त पर्यावरणीय मंजूरी मिलने के 23 साल बाद भी इन सबका अनुपालन नहीं हुआ है। इस तरह इनके बगैर लाभों की प्राप्ति एवं टिकाऊ प्रवाह और पर्यावरणीय लागत एवं क्षति का न्यूनीकरण संभव नहीं है।
जलग्रहण क्षेत्र उपचार (कैट) के मामले में विशेषज्ञ स्मिति का निष्कर्ष है कि सरदार सरोवर परियोजना के लिए कुल 4,29,000 हेक्टेअर क्षेत्र का जलग्रहण क्षेत्र उपचार किया जाना है जबकि उसमें से सिर्फ 1,61,000 हेक्टेअर का ही उपचार हो पाया है, जो कि कुल क्षेत्र का मात्र 38 फीसदी है। इसी तरह इंदिरा सागर परियोजना में कुल 9,75,000 हेक्टेअर क्षेत्र का जलग्रहण क्षेत्र उपचार किया जाना है जबकि अब तक केवल 87,000 हेक्टेअर क्षेत्र का ही उपचार हो पाया है, जो कि कुल क्षेत्र का मात्र 9 फीसदी ही है। दूसरी तरफ एनवीडीए ने इंदिरा सागर परियोजना के जलाशय को सन 2006 से ही पूरी तरह भर दिया है। इसी तरह सरदार सरोवर परियोजना में भी जलाशय का 80 फीसदी हिस्सा भर दिया गया है, जबकि संबंधित राज्यों की रिपोर्ट के अनुसार जलग्रहण क्षेत्र का उपचार केवल 45 फीसदी ही हो पाया है। इस तरह एनवीडीए ने कैट के निर्धारित शर्तों का घोर उल्लंघन किया है।
लाभ क्षेत्र विकास के मामले में समिति का कहना है कि सिंचाई परियोजना मेें वर्षा आधारित क्षेत्र को सिंचित क्षेत्र में बदला जाता है। इस तरह उस जमीन में नियमित रूप से पानी आने लगता है, जबकि वह जमीन इसके अनुकूल नहीं होता है। इसलिए लाभ क्षेत्र के विकास के लिए कुछ दिशानिर्देश तय किए जाते हैं। सरदार सरोवर परियोजना के लिए पर्यावरण मंत्रालय ने 1987 में, योजना आयोग ने 1988 में एवं इएसजी की बैठकों में 1988 से 2005 के बीच अलग अलग दिशानिर्देश तय किए गये थे। इन्हीं के आधार पर लाभ क्षेत्र के विकास की योजना का क्रियान्वयन एवं सिंचाई का पर्यावरण पर पड़ने वाले असरों की निगरानी सुनिश्चित की जानी चाहिए। प्रारम्भ में गुजरात द्वारा 21.24 लाख हेक्टेअर को सिंचाई के लिए चुना था, जबकि राजस्थान ने 75,000 हेक्टेअर और मध्य प्रदेश में 1.23 लाख हेक्टेअर क्षेत्र को सिंचाई के लिए चुना गया था। परियोजना की मंजूरी के शर्तों के अनुसार पर्यावरणीय कार्य योजना नहर निर्माण के पहले तैयार हो जाना चाहिए और उसका क्रियान्वयन सिंचाई शुरू करने से पहले हो जाना चाहिए। लेकिन दोनों ही परियोजनाओं में किसी भी राज्य में ऐसा नहीं हुआ है।
गुजरात में अब तक ड्रेनेज योजना तैयार नहीं हुआ है जबकि पहले चरण के नहर निर्माण का काम पूरा हो गया है और सन 2003 में ही अनियोजित सिंचाई का काम शुरू हो चुका है। पहले चरण में 52 ब्लॉकों में माइक्रो लेवल की योजना तैयार होनी चाहिए थी जबकि अब तक केवल 5 ब्लॉकों के लिए ही योजना तैयार हो सकी है। राजस्थान में भी पर्यावरणीय कार्य योजना को अंतिम रूप नहीं दिया गया है, जबकि नहर के निर्माण का काम लगभग पूरा हो गया है और सन 2008 से सिंचाई शुरू भी हो चुकी है। इसी तरह मध्य प्रदेश में अक्तूबर 2009 में पर्यावरणीय कार्य योजना का मसौदा तैयार हुआ है जबकि सन 2007 से ही अनियोजत सिंचाई चालू है। इस तरह स्पष्ट है कि तीनों राज्यों ने पर्यावरणीय कार्य योजना के शर्तों का उल्लंघन किया है।
क्षतिपूरक वनीकरण के मामले में तीनो राज्यों ने शर्तों का घोर उल्लंघन किया है। सरदार सरोवर परियोजना में 13,386 हेक्टेअर वनभूमि डूब के अंतर्गत और 42 हेक्टेअर वनभूमि पुनर्वास के लिए हस्तांतरण किया गया था। जबकि इंदिरा सागर परियोजना के लिए 41,112 हेक्टेअर वनभूमि डूब के अंतर्गत हस्तांतरित हुआ। वन संरक्षण अधिनियम 1980 के अनुसार इन जमीनों के हस्तांतरण के लिए क्षतिपूरक वनीकरण कानूनी रूप से बाध्यकारी है। समिति ने पाया कि तीनों राज्यों ने वन भूमि का पूरी तरह हस्तांतरण कर लिया। गुजरात ने क्षतिपूरक वनीकरण के लिए अंतिम अधिसूचना अभी तक जारी नहीं किया है जबकि मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र ने करीब 90 प्रतिशत के लिए ही अधिसूचना जारी किया है। इसके अलावा समिति का सुझाव है कि, ‘‘न तो एसएसपी में और न आईएसपी में आगे जलाशय को तब तक नहीं भरा जाय जब तक कि एसएसपी और आईएसपी दोनों के जलग्रहण क्षेत्र का पूरी तरह उपचार न हो जाय और जीव व जंतुओं के संरक्षण के लिए मास्टर प्लान तैयार करने एवं वन्य जीव अभयारण्य तैयार करने सहित बची हुई सारी आवश्यकताएं पूरी न हो जाएं। नहर के नेटवर्क निर्माण का काम और आगे न किया जाय और यहां तक कि मौजूदा नेटवर्क से भी सिंचाई की अनुमति तब तक न दी जाय जब तक कि जल प्रबंधन के अलावा लाभ क्षेत्र के विभिन्न पर्यावरणीय मानदंडों का पालन साथ साथ न हो।’’
पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को अधिकारिक रूप से प्रस्तुत रिपोर्ट में परिशिष्ट सहित 5 अध्याय हैं, जिनमें मुख्यतः शोध एजेंसियों, राज्य स्तर के प्राधिकारों एवं अंतर्राज्यीय नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण के विशाल व्यवस्थाओं एवं दो दशकों में करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद अनुपालन न किये जाने व कुछ आंशिक अनुपालन के बारे में पूरा इतिहास दिया गया है। ऐसे अहम रिपोर्ट केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय द्वारा 11,000 करोड़ रुपये (6777 करोड़ रुपये नहरों के लिए और 4,000 करोड़ रुपये एसएसपी के लाभ क्षेत्र विकास के लिए) प्रदान किए जाने के नवीनतम निर्णय पर गंभीर सवाल उठाते हैं, जिसकी योजना को अभी अंतिम रूप और मंजूरी नहीं दिया गया है। आईएसपी के नहरों एवं लाभ क्षेत्र विकास योजनाओं के मुद्दे भी उच्चतम न्यायालय के सामने है जिस पर 16 फरवरी को सुनवाई होनी है। समिति द्वारा अभी भी लाभ क्षेत्र विकास का मूल्यांकन किया जा रहा है, जो कि आईएसपी के लिए 30 जनवरी 2010 को प्रस्तुत किया गया है और जबकि एसएसपी के लिए सन 2008 में पर्यावरण मंत्रालय को प्रस्तुत योजना को अभी भी अंतिम रूप और मंजूरी नहीं दी गई है।
यह ध्यान देना बहुत अहम है कि गुजरात सरकार सरदार सरोवर बांध में 17 मीटर ऊंची गेट लगाकर ऊंचाई को 122 मीटर से बढ़ाकर 138.68 मीटर करने की मांग कर रही है, जबकि रिपोर्ट का सुझाव इसके बिल्कुल खिलाफ है। घाटी में सक्रिय नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) ने न सिर्फ पर्यावरणीय उपायों के उल्लंघन को उजागर किया है बल्कि पुनर्वास के मामले को उजागर किया है। एनबीए की रिपोर्ट है कि एसएसपी के डूब क्षेत्र में 2 लाख से ज्यादा लोग हैं जबकि कुछ आदिवासी परिवारों ने अपनी जमीन व आवास खो दी है उनका अभी भी पुनर्वास किया जाना बाकी है। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त न्यायिक आयोग द्वारा किये गए जांच के अनुसार पुनर्वास में कुछ करोड़ के भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ है। यह रिपोर्ट कुछ ही दिनों में प्राधिकारों के विभिन्न बैठकों में चर्चा के लिए पेश किया जाना है।
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