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विकास की बयार से खेती खूब प्रभावित हुई। लोग हइब्रिड बीजों एवं आधुनिक खेती की ओर आकर्षित हुए परंतु धीरे-धीरे विकास ने विनाश का रूप धारण किया और इन बीजों से लागत बढ़ती गई व उपज घटती गई, तब लोगों ने पुनः परंपरागत बीजों के भण्डारण की ओर रूख किया।
बुंदेलखंड के लोगों की आजीविका का स्रोत खेती और पशुपालन है। उबड़-खाबड़ जमीनों एवं सिंचाई के साधनों की अनुपलब्धता यहां की खेती को उन्नत बनाने की दिशा में बाधक होते हैं। ऐसी स्थिति में किसान वर्षा आधारित खेती करते हैं।
यहां की प्रमुख फसलें चना, मटर, सरसों, अरहर, ज्वार, बाजरा, मूंग, उड़द है। प्रारम्भ में लोग परंपरागत बीजों से खेती करते थे और निश्चित तौर पर उपज भी पाते थे। कालांतर में यहां भी विकास की बयार बही और लोग हाइब्रिड बीजों व आधुनिक खेती की तरफ उन्मुख हुए। स्वयं का उत्साह, मेहनत और सरकारी अनुदान ने शुरूआती दौर में सफलता दिलाई। छूट पर लगे सिंचाई साधनों के चलते लोगों ने हाइब्रिड बीजों को बोकर अच्छी फसल प्राप्त की। परंतु सूखे बुंदेलखंड को अनियोजित सरकारी नीतियाँ एवं लोगों की लिप्सा दोनों ने और भी सूखा बनाया, उस पर निरंतर बढ़ते तापमान और कम व अनियमित होती बारिश ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी। लोगों की खेती बंजर रहने लगी, क्योंकि परंपरागत बीज लुप्त हो चुके थे, हाइब्रिड बीजों को अधिक पानी की दरकार थी और पानी यहां था नहीं।
नतीजतन कम होती बारिश व सुखाड़ की दशा के कारण लोगों की खेती प्रभावित हुई। लोगों के सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया। तब लोगों को पुनः अपने देशी, परंपरागत बीजों की याद आई, जो कम पानी में भी अच्छी उपज दे जाते थे और लोग इसे अपनाने की दिशा में उन्मुख हुए। पर इस दिशा में भी इन बीजों की उपलब्धता सुनिश्चित करना बड़ा संकट था, क्योंकि परंपरागत बीज तो बहुत पहले लोगों के खेत व घरों से ग़ायब हो चुके थे। ऐसी दशा में इन्हें एकत्र करना व इनका भंडारण करना एक महत्वपूर्ण कार्य था, जिसे ग्राम पिथउपुर के किसानों ने किया।
बीजों का एकत्रीकरण
सर्वप्रथम घर में उपलब्ध अथवा आस-पास के अन्य स्थानों से चना, अरहर, मूंग, अलसी, ज्वार, बाजरा, उर्द, मूंग, डढारी, सिउंवा, चटरी आदि के बीजों की देशी प्रजातियों को एकत्र किया गया।
यहां पर इन देशी बीजों का भंडारण निम्न विधियों से किया जाता है-
सर्वप्रथम सभी बीजों को भली-भांति धूप में सुखा लिया गया ताकि इनकी नमी खत्म हो जाए। तत्पश्चात् मिट्टी के बने डेहरी/कुठला को (स्थानीय नामानुसार) भी अच्छी प्रकार धूप दिखाकर उसमें नीचे नीम की पत्ती बिछाकर बीज डालते हैं। पुनः ऊपर से भी नीम की पत्ती डालकर डेहरी का मुंह बंद कर देते हैं।
बीजों को भली-भांति धूप में सुखा कर जूट के बोरों में नीम की पत्ती एवं खड़ा नमक मिलाकर रखते हैं। पुनः बोरों का मुंह अच्छी तरह सिलकर उन्हें हवादार क्षेत्र में रख दिया जाता है।
जबकि बालीदार बीजों जैसे-ज्वार , बाजरा आदि को बांधकर छत में कुंडी के सहारे लटका दिया जाता है। ध्यान रखा जाता है कि यह ऐसी जगह हो, जहां पर नमी, हवा आदि का प्रवेश आसानी से न हो सके। यह विधि थोड़ी मात्रा में बीजों को भंडारित करने के लिए उपयुक्त होती है। अधिक मात्रा में उपलब्ध बीजों को भंडारित करने के लिए ऊपर की दोनों विधियां ही प्रयुक्त की जाती हैं।
बीजों को अच्छी तरह धूप में सुखा लेना चाहिए। यदि उसमें नमी का अंश एक प्रतिशत भी रह गया तो बीज खराब हो सकता है और बुवाई के समय कठिनाई होगी।
कुठला व डेहरी भी साफ-सुथरी व सूखी होनी चाहिए। क्योंकि यदि इनमें नमी होगी तो भी उसमें रखा अनाज खराब होगा।
भंडारण का स्थान पानी की नमी एवं गंदगी से दूर हवादार होना चाहिए।
छत में टांगे गये बोरों व ज़मीन पर रखे गये बोरों को चूहों एवं नमी से बचाने की प्रमुख समस्या है।
परंपरागत बीज खत्म हो जाने से ये बीज आसानी से नहीं मिल पाते हैं।
चूंकि बीज पुराने हैं एवं बीज की दृष्टि से भंडारित न होने के कारण इनमें कीड़े लगे होने के कारण गुणवत्ता की दृष्टि से पयुक्त नहीं हैं।
इनको सुरक्षित रखने के लिए डेहरी व कुठला के अलावा भी कोई अन्य विकल्प चाहिए।
इस पूरी प्रक्रिया में भंडारित करने से पहले बीजों को सुखाने, रखने का काम महिलाएं ही करती हैं।
भंडारित किये गये बीजों की नियमित देख-रेख जरूरी होती है।
देशी अरहर एवं देसी मूंग की दाल गुणवत्ता की दृष्टि से उत्तम होने के कारण इनकी मांग व मूल्य अधिक रहता है।
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परिचय
बुंदेलखंड के लोगों की आजीविका का स्रोत खेती और पशुपालन है। उबड़-खाबड़ जमीनों एवं सिंचाई के साधनों की अनुपलब्धता यहां की खेती को उन्नत बनाने की दिशा में बाधक होते हैं। ऐसी स्थिति में किसान वर्षा आधारित खेती करते हैं।
यहां की प्रमुख फसलें चना, मटर, सरसों, अरहर, ज्वार, बाजरा, मूंग, उड़द है। प्रारम्भ में लोग परंपरागत बीजों से खेती करते थे और निश्चित तौर पर उपज भी पाते थे। कालांतर में यहां भी विकास की बयार बही और लोग हाइब्रिड बीजों व आधुनिक खेती की तरफ उन्मुख हुए। स्वयं का उत्साह, मेहनत और सरकारी अनुदान ने शुरूआती दौर में सफलता दिलाई। छूट पर लगे सिंचाई साधनों के चलते लोगों ने हाइब्रिड बीजों को बोकर अच्छी फसल प्राप्त की। परंतु सूखे बुंदेलखंड को अनियोजित सरकारी नीतियाँ एवं लोगों की लिप्सा दोनों ने और भी सूखा बनाया, उस पर निरंतर बढ़ते तापमान और कम व अनियमित होती बारिश ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी। लोगों की खेती बंजर रहने लगी, क्योंकि परंपरागत बीज लुप्त हो चुके थे, हाइब्रिड बीजों को अधिक पानी की दरकार थी और पानी यहां था नहीं।
नतीजतन कम होती बारिश व सुखाड़ की दशा के कारण लोगों की खेती प्रभावित हुई। लोगों के सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया। तब लोगों को पुनः अपने देशी, परंपरागत बीजों की याद आई, जो कम पानी में भी अच्छी उपज दे जाते थे और लोग इसे अपनाने की दिशा में उन्मुख हुए। पर इस दिशा में भी इन बीजों की उपलब्धता सुनिश्चित करना बड़ा संकट था, क्योंकि परंपरागत बीज तो बहुत पहले लोगों के खेत व घरों से ग़ायब हो चुके थे। ऐसी दशा में इन्हें एकत्र करना व इनका भंडारण करना एक महत्वपूर्ण कार्य था, जिसे ग्राम पिथउपुर के किसानों ने किया।
प्रक्रिया
बीजों का एकत्रीकरण
सर्वप्रथम घर में उपलब्ध अथवा आस-पास के अन्य स्थानों से चना, अरहर, मूंग, अलसी, ज्वार, बाजरा, उर्द, मूंग, डढारी, सिउंवा, चटरी आदि के बीजों की देशी प्रजातियों को एकत्र किया गया।
बीजों का भंडारण
यहां पर इन देशी बीजों का भंडारण निम्न विधियों से किया जाता है-
सर्वप्रथम सभी बीजों को भली-भांति धूप में सुखा लिया गया ताकि इनकी नमी खत्म हो जाए। तत्पश्चात् मिट्टी के बने डेहरी/कुठला को (स्थानीय नामानुसार) भी अच्छी प्रकार धूप दिखाकर उसमें नीचे नीम की पत्ती बिछाकर बीज डालते हैं। पुनः ऊपर से भी नीम की पत्ती डालकर डेहरी का मुंह बंद कर देते हैं।
बीजों को भली-भांति धूप में सुखा कर जूट के बोरों में नीम की पत्ती एवं खड़ा नमक मिलाकर रखते हैं। पुनः बोरों का मुंह अच्छी तरह सिलकर उन्हें हवादार क्षेत्र में रख दिया जाता है।
जबकि बालीदार बीजों जैसे-ज्वार , बाजरा आदि को बांधकर छत में कुंडी के सहारे लटका दिया जाता है। ध्यान रखा जाता है कि यह ऐसी जगह हो, जहां पर नमी, हवा आदि का प्रवेश आसानी से न हो सके। यह विधि थोड़ी मात्रा में बीजों को भंडारित करने के लिए उपयुक्त होती है। अधिक मात्रा में उपलब्ध बीजों को भंडारित करने के लिए ऊपर की दोनों विधियां ही प्रयुक्त की जाती हैं।
सावधानियां
बीजों को अच्छी तरह धूप में सुखा लेना चाहिए। यदि उसमें नमी का अंश एक प्रतिशत भी रह गया तो बीज खराब हो सकता है और बुवाई के समय कठिनाई होगी।
कुठला व डेहरी भी साफ-सुथरी व सूखी होनी चाहिए। क्योंकि यदि इनमें नमी होगी तो भी उसमें रखा अनाज खराब होगा।
भंडारण का स्थान पानी की नमी एवं गंदगी से दूर हवादार होना चाहिए।
समस्याएं
छत में टांगे गये बोरों व ज़मीन पर रखे गये बोरों को चूहों एवं नमी से बचाने की प्रमुख समस्या है।
परंपरागत बीज खत्म हो जाने से ये बीज आसानी से नहीं मिल पाते हैं।
चूंकि बीज पुराने हैं एवं बीज की दृष्टि से भंडारित न होने के कारण इनमें कीड़े लगे होने के कारण गुणवत्ता की दृष्टि से पयुक्त नहीं हैं।
इनको सुरक्षित रखने के लिए डेहरी व कुठला के अलावा भी कोई अन्य विकल्प चाहिए।
इस पूरी प्रक्रिया में भंडारित करने से पहले बीजों को सुखाने, रखने का काम महिलाएं ही करती हैं।
भंडारित किये गये बीजों की नियमित देख-रेख जरूरी होती है।
देशी अरहर एवं देसी मूंग की दाल गुणवत्ता की दृष्टि से उत्तम होने के कारण इनकी मांग व मूल्य अधिक रहता है।
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