बैतुल जिले का भीमपुर विकासखंड सितम्बर-1998 में पटवारी रिपोर्ट के अनुसार इमलीडोह गाँव के 12-13 आदिवासियों की मौतों के कारण उछला था। मलेरिया और उससे लगातार होने वाली मौतों के कारण इस इलाके को जाना जाता है। वर्षों से छोटे-मोटे नदी-नालों के किनारे झीरा या झिरिया खोदकर पानी लेने वाले आदिवासियों से भरे-पूरे इस इलाके का अपना लंबा इतिहास रहा है। विकासखण्ड के एक गाँव दूधियागढ़ में चार-पाँच सौ साल पुरानी संग्रहालय में रखी लकड़ी की एक तेलघानी इस इतिहास को ही बताती है। हर दो-चार गाँवों और ढाना के बीच रहने वाले भगत-भूमका यानि ओझा मंत्र से ‘पानी मतर’ कर देते हैं और छोटी-मोटी बीमारी इसी से ठीक भी हो जाती है। लोग बीमारी, खेती या दूसरे संकटों से निपटने में इन पर विश्वास करते हैं। इस इलाके में ताप्ती के अलावा निसाना और लोहरदा सरीखी छोटी-बड़ी नदियाँ गुजरती हैं। पास के एक गाँव लक्कड़जाम में चार कुएँ और सात-आठ हैण्डपम्प हैं। खाकाढाना गाँव में दो-तीन कुएँ और हैण्डपम्प भी हैं लेकिन वे बंद पड़े हैं। पानी के पारम्परिक स्रोतों को सुखाकर बनाए गए हैण्डपम्प सरीखे ये आधुनिक स्रोत कारगर नहीं दिखते।
भीमपुर विकासखण्ड के अनुसार 154 गाँवों और 129 ढानों या मोहल्लों वाले इस ब्लॉक में 149 गाँवों के पेयजल का विस्तार से सर्वेक्षण करके रिपोर्ट दी गई थी जिसमें सारे-के-सारे गाँवों के जलस्रोत प्रदूषित पाए गए। इन जलस्रोतों में 376 कुएँ, 433 हैँडपम्प और 15 तालाब, झिरयाँ सरीखे अन्य स्रोत शामिल थे। भीमपुर, जहाँ एक भी कुआँ नहीं है, के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के ठीक सामने बने हैंडपम्प का पानी प्रदूषित पाया गया। जाँचकिट से परखे गए और नतीजे में काले पड़ गए इस पानी की बोतल को तब कि एक युवा डॉक्टर ने अस्पताल के दरवाजे पर पानी की खस्ता हालत बताने के लिए लटका दी थी।
उल्टी, दस्त और हैजे से बचने के लिए झिरी एवं कुएँ का पानी पीने की मनाई करते हुए बताया गया कि ‘हैण्डपम्प का पानी ही पिया जाए।’ इमलीडोह गाँव में हुए हादसे को ग्रामीणों के रहन-सहन का दोष बताया गया। कहा गया कि बोनी, कटाई के कारण पास के होशंगाबाद और हरदा जिले से हुए सम्पर्क में लोग मछली मारने के लिए एल्ड्रिन नाम की दवाई भी ले आते हैं। जिससे 1998 में ही एक क्विंटल मछली मारी गई थी। जहर से मारी गई ये मछलियाँ लोग खा लेते हैं और मर जाते हैं। इसके अलावा माट की एक भाजी का जिक्र किया गया और कहा गया कि यह भाजी गरम होती है। और इस खाने से भी लोग मर जाते हैं। इसी तरह लोगों के कथित गंदे रहन-सहन को भी मौतों के एक कारण की तरह गिनवाया गया।
भीमपुर विकासखण्ड के अनुसार 154 गाँवों और 129 ढानों या मोहल्लों वाले इस ब्लॉक में 149 गाँवों के पेयजल का विस्तार से सर्वेक्षण करके रिपोर्ट दी गई थी जिसमें सारे-के-सारे गाँवों के जलस्रोत प्रदूषित पाए गए। इन जलस्रोतों में 376 कुएँ, 433 हैँडपम्प और 15 तालाब, झिरयाँ सरीखे अन्य स्रोत शामिल थे। भीमपुर, जहाँ एक भी कुआँ नहीं है, के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के ठीक सामने बने हैंडपम्प का पानी प्रदूषित पाया गया। जाँचकिट से परखे गए और नतीजे में काले पड़ गए इस पानी की बोतल को तब कि एक युवा डॉक्टर ने अस्पताल के दरवाजे पर पानी की खस्ता हालत बताने के लिए लटका दी थी।
उल्टी, दस्त और हैजे से बचने के लिए झिरी एवं कुएँ का पानी पीने की मनाई करते हुए बताया गया कि ‘हैण्डपम्प का पानी ही पिया जाए।’ इमलीडोह गाँव में हुए हादसे को ग्रामीणों के रहन-सहन का दोष बताया गया। कहा गया कि बोनी, कटाई के कारण पास के होशंगाबाद और हरदा जिले से हुए सम्पर्क में लोग मछली मारने के लिए एल्ड्रिन नाम की दवाई भी ले आते हैं। जिससे 1998 में ही एक क्विंटल मछली मारी गई थी। जहर से मारी गई ये मछलियाँ लोग खा लेते हैं और मर जाते हैं। इसके अलावा माट की एक भाजी का जिक्र किया गया और कहा गया कि यह भाजी गरम होती है। और इस खाने से भी लोग मर जाते हैं। इसी तरह लोगों के कथित गंदे रहन-सहन को भी मौतों के एक कारण की तरह गिनवाया गया।
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