करोड़ों के तालाब खुदे, पानी का अता पता नहीं

अमर उजाला टीम के व्यापक सर्वे में यह पाया गया है कि तालाब तो काफी खुदे पर उनमें पानी नहीं है। तालाब का काम एक सामान्य समझ की जरूरत मांगता है कि तालाब तो खुदे पर उसमें पानी कहां से आएगा उसका रास्ता भी देखना होगा। सामान्यतः जो तालाब मनरेगा में खुदे हैं, उनमें कैचमेंन्ट का ध्यान रखा नहीं गया है। उससे हो यह रहा है कि तालाब रीते पड़े हैं।

केंद्र सरकार की राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ‘मनरेगा’ जैसी महत्वाकांक्षी योजना को दूसरे चरण में शहरों में भी लागू करने के लिए बेताब दिख रही है, लेकिन इसके पहले चरण में जिस तरीके से काम हो रहा है उससे गांवों की दशा में बड़े बदलाव की उम्मीद बेमानी ही लगती है। करोड़ों रुपये के खर्च से सैकड़ों पोखरे एवं तालाब खुदे लेकिन उसमें पानी भरने के लिए महीनों से बरसात का इंतजार हो रहा था। कारण कि पानी भरने का बजट मनरेगा में है ही नहीं। सड़कें बनीं, पर गरीबों के रास्ते अब भी कच्चे हैं। उत्तर प्रदेश, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू के कई जिलों में मनरेगा के कामों की पड़ताल में यही हकीकत सामने आई है। मजदूरों की अहमियत जरूर बढ़ी है, अब दूसरी जगह भी उन्हें डेढ़ सौ रुपये तक मजदूरी मिल जाती है। हालांकि सालभर काम न मिलने से उनकी जीवनशैली में भी खास बदलाव नहीं आया।

गोरखपुर से १५ किमी दूर है भौवापार गांव। यहां चिलोधर, हरिजन बस्ती, उत्तर टोला और शिव मंदिर के पास के पोखरों पर मनरेगा के लाखों रुपये खर्च हुए पर पानी नहीं भरा गया। शिव मंदिर के पास के प्राचीन पोखरे के लिए पूर्व सांसद राज नारायण पासी ने भी १०.६ लाख रुपये दिए थे। अब मनरेगा के ३.६२ लाख रुपये भी इस पर खर्च हुए, पर पानी के लिए महीनों से मानसून का इंतजार हो रहा था। ग्राम प्रधान का कहना है कि तालाबों में पानी भरने को प्रावधान मनरेगा में है ही नहीं।

वाराणसी जिले में ५७६ आदर्श तालाब खुदे। मुख्य विकास अधिकारी शरद कुमार सिंह नहर किनारे के २७ तथा नलकूप के पास के १६४ तालाबों में पानी होने का दावा करते हैं, पर गांव वाले कुछ और ही कहते हैं। गांव बसनी की प्रधान रेखा पटेल का कहना है कि तालाब में पानी भरने का बजट ही नहीं है। मुख्य विकास अधिकारी भी बताते हैं कि तालाब भरने के लिए मनरेगा में बजट नहीं है। तालाबों की खुदाई के बाद सिंचाई और नलकूप विभाग को सूचना दे दी जाती है। जहां नहर या नलकूप की सुविधा नहीं है उन तालाबों को प्राकृतिक तरीकों से ही भरा जाता है। उधर, नलकूप विभाग के एक्सईएन एके सिंह ने बताया कि तालाबों को भरने के लिए बजट नहीं मिल रहा है। जिन तालाबों के निकट नलकूप हैं उनमें विभाग पानी भरवा रहा है।

झांसी जिले के मोठ ब्लाक में पांच तालाब दो साल बाद भी सूखे हैं। किसानों का कहना है कि जिस उम्मीद से उन्होंने तालाब के लिए जमीन दी, उसी पर पानी फिर गया। मछली पालन का सपना तो सपना ही रह गया। गांव के कुछ किसान जरूर खुशनसीब हैं, जिनके खेतों में कुएं का निर्माण हुआ था। मनरेगा के तहत मजदूरों को काम देने की अनिवार्यता के चलते जिले के ज्यादातर इलाकों में सड़कों पर लेप करवाकर खानापूरी की जा रही है।

(साथ में गोरखपुर, वाराणसी, झांसी, चंडीगढ़, लुधियाना, जम्मू से इनपुट)

‘मनरेगा का मकसद गरीबों को गांव में ही रोजगार देना है, ताकि उन्हें पलायन न करना पड़े। यूपी सरकार इसका सही तरीके से क्रियान्वयन नहीं कर रही। यदि योजना को गंभीरता से लिया जाए तो गरीबों का जीवन स्तर सुधरेगा और गांवों का विकास होगा।’
- प्रदीप जैन, केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री

पंजाब: रफ्तार नहीं पकड़ रहा काम


पंजाब में मनरेगा के तहत १४८ करोड़ रुपये के काम हो चुके हैं। जो काम चल रहे हैं उनकी रफ्तार काफी धीमी है। लुधियाना जिले में ८६ करोड़ का बजट है, जिसमें ५१.८६ करोड़ श्रमिकों और ३४.५७ करोड़ काम से संबंधित साजोसामान पर खर्च होंगे। इसमें गांवों के जोहड़ों की देखभाल और सुधार पर ४९ करोड़ जबकि पौधे लगवाने पर १२.४३ करोड़ खर्च होंगे। जमीन समतल करने पर छह करोड़ और ड्रेनों की सफाई पर ११ लाख खर्च किए जाएंगे। जिले में दस लाख पौधे लगाने का लक्ष्य है, जिसका काम जुलाई से शुरू होगा। कुछ गांवों में सड़कों के किनारे मिट्टी डलवाने का काम चल रहा है।

हरियाणा : तालाबों में नहरों से भरा पानी


हरियाणा को मनरेगा के तहत केंद्र से ३७३.१४ करोड़ रुपये मिले, जिनमें ३४५.४४ करोड़ के काम हुए हैं। इनमें मुख्यतः तालाब खोदने, छोटे चेक डैम बनाने, सूक्ष्म सिंचाई के लिए छोटे से माइनर बनाने, अनुसूचित जाति, जनजाति से संबंधित लोगों की जमीन को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराने, पुरानी नहरों, कुओं आदि से मिट्टी निकालने, पौधरोपण तथा इसके लिए जमीन समतल करने, बाढ़ नियंत्रण के लिए किनारों पर दीवार बनाने के काम किए गए हैं। कुल १०१८२ काम पूरे हो चुके हैं, ३६४५ प्रगति पर हैं। राज्य के तालाबों में पानी नहरों से विशेष अभियान चलाकर भरा गया। अंबाला में मनरेगा स्कीम में घपले के आरोप लगे। राज्य में छह लाख ७० हजार जॉब कार्ड बने हैं, जिनमें से ४.३९ लाख परिवारों ने काम मांगा। इनमें से ४.३७ लाख को काम दे दिया है।

हिमाचल: काम की सही तरीके से समीक्षा नहीं


हिमाचल प्रदेश में मनरेगा के तहत ३०५ करोड़ के काम हो चुके हैं। वाटर शेड प्रोजेक्ट, चैक डैम, भूमि संरक्षण, लघु और मध्यम वर्ग के सभी किसानों के खेतों और बगीचों में सुधार लाने, बीपीएस, एससी और एसटी वर्ग के बागवानों के बगीचों में नई फलदार पेड़ों को उगाने, वन संरक्षण जैसे काम को प्राथमिकता दी जा रही है। गांवों को जोड़ने वाले कई रास्तों को पक्का किया गया। राज्य सरकार ने मनरेगा के कामों का सामाजिक आडिट अनिवार्य किया है। ग्राम सभा की बैठकों में कोई भी व्यक्ति मनरेगा के कामों का हिसाब ले सकता है। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि इन बैठकों में अकसर कोरम पूरा नहीं होता। इससे कामों की सही समीक्षा नहीं हो पाती। ग्राम सभा में कोरम पूरा हो सके, इसके लिए सरकार को जागरूकता अभियान चलाना पड़ा। इसके तहत गांवों में जाकर नुक्कड़ सभाएं की गईं।

जम्मू: धीमी गति से चल रहा है काम


राज्य में ९०.११ करोड़ की लागत से ६३ हजार काम शुरू हुए, जिनमें सिर्फ ९६६ मुकम्मल हो सके हैं। डोडा जिले में सबसे ज्यादा ४५० परियोजनाएं पूरी हुई हैं। डोडा, पुंछ और उधमपुर को छोड़कर बाकी जिलों में काम की रफ्तार बेहद धीमी है। सूबे के ३. ०५ लाख परिवारों ने मनरेगा के तहत पंजीकरण कराया है। इनमें सबसे ज्यादा डोडा जिले के १.१ लाख, जबकि सबसे कम बांडीपोरा के २३०१ परिवार शामिल हैं। गरीबी रेखा से नीचे के ६२२३ परिवारों ने मनरेगा के तहत रोजगार हासिल किया है, जो कुल रोजगार हासिल करने वाले परिवारों का २.०४ प्रतिशत है।

(अमर उजाला टीम)

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