कम्पोस्ट बनाने की प्रक्रिया

कम्पोस्ट आमतौर से खाई के अंदर ही बनाना चाहिए, जिससे खाद में नमी बनी रहती है और नाइट्रोजन भी हवा में उड़ जाने से बचता है। खाई इतनी बड़ी होनी चाहिए, जिससे प्रतिदिन के कूड़े-कबाड़े, गोबर आदि से एक खाई लगभग तीन मास में भर जाय। यह नाप मुख्यतः ढोरों की संख्या पर अवलम्बित होगा। नीचे के तख्ते से इसका कुछ अन्दाज आयेगाः
 

ढोरों की संख्या

खाई की लम्बाई

चौड़ाई

गहराई

2 से 5

20 फुट

3 फुट

2.5

6 से 10

25 फुट

3.5  फुट

3 फुट

11 से 20

30 फुट

4 फुट

3.5 फुट

20 से ज्यादा

30 फुट

5 फुट

3.5 फुट

 


खाई की गहराई 3.5 फुट से ज्यादा कभी न हो, क्योंकि ज्यादा लेने से खाद बनने की क्रिया में देर लगती है। खाई का तलवा (नीचे का हिस्सा) एक सिरे से दूसरे सिरे तक एक फुट का उतारवाला (ढालू) हो, जिससे आकस्मिक बारिश का या अन्य कोई पानी गहरे सिरे की तरफ जमा हो और खाद को न बिगाड़े। खाई की दोनो बाजुएँ भी खड़ी रेखा में न हों, हलका-सा उतार करीब-करीब छह इंच खाई का किनारा और तलवे में हो। याने खाई की नीचे की चौड़ाई से ऊपरी चौड़ाई छह इंच ज्यादा हो, जिससे खाई कम ढहेगी। खाई के ओर, बाहर को ढलती हुई मेंड़ भी होनी चाहिए, ताकि बाहर का पानी बहकर खाई के भीतर न जा सके।

कम गहराई वाले सिरे से खाई भरना शुरू किया जाय। खाई की लम्बाई में से ढाई से साढ़े तीन फुट लम्बाई का हिस्सा लेकर उसे नीचे से ऊपर तक भर दिया जाय। एक हिस्सा भरने के बाद दूसरा इस तरह सारी खाई भरी जाय। इस तरह हिस्से-हिस्से से खाई भरने का उद्देश्य यह है कि घास-पात, गोबर आदि चीजें सड़ते वक्त उसमें से अमोनिया गैस के रूप में निकलता है- अमोनिया नाइट्रोजन का ही रूपान्तर है-वह कम से कम उड़ने पाये। साथ ही मक्खियाँ बदबू आदि भी कम होनी चाहिए। पूरी लम्बी खाई में डाले हुए कूड़े आदि को ढांकना कठिन है। थोड़े हिस्से को ढांकना आसान है। हिस्से-हिस्से से खाई भरने के लिए जुआर, अरहर आदि के डंठलों की एक कच्ची आड़ बना ली जाय, जो कि एक हिस्सा भरने के बाद, उठाकर दूसरे हिस्से के आगे लगायी जाय। खाई की तह में पहले सूखी घास-फूस आदि की छह इंच मोटी तह बिछानी चाहिए। उसके ऊपर गोबर तथा गोमूत्र, और गोमूत्र से सनी हुई सारघर (गोठा) की मिट्टी की दो इंच मोटी तह बिछायी ।यदि गोमूत्र न हो, तो इस तह को पानी से तर करना चाहिए। गोमूत्र से सनी मिट्टी न मिले, तो खेत की सादी मिट्टी की आध इंच मोटी तह दी जाय। मिट्टी की तह देने के पहले यदि हड्डियाँ या लकड़ी की राख की पतली-सी तह दे सकें, तो खाद में फास्फोरिक एसिड बढेगा। आखिर में कचरा, घास-फूस आदि की तीन इंच मोटी तह दी जाय। दूसरे दिन इसी तह के ऊपर गोबर, गोमूत्र, राख आदि बिछाकर पहले दिन की तरह कूड़े से ढँक देनी चाहिए। जब कभी परनाले का पानी निकाला जाय, तो उसे भी खाई में छिड़क देना चाहिए। इस तरह तह पर तह देते हुए जब ढेर जमीन के ऊपर डेढ़ से दो फुट आ जाय, तब इस ढेर को गुंबद की शक्ल का बनाकर गोबर और मिट्टी को पानी के साथ घोल कर एक इंच मोटा लेप दिया जाय। यदि कुछ दिनों के बाद यह लेप फट जाय, तो सुधार लेना चाहिए। यह गोबर और मिट्टी का लेप, पानी और धूप से खाद को बचाता है और नाइट्रोजन को हवा में उड़ जाने से रोकता है। साथ ही भीतरी गर्मी के कारण मक्खियों के अंडे बढ़ नहीं सकते। यदि एक-दो महीने के बाद, यह भरा हुआ हिस्सा, जमीन से भी नीचे बैठ जाय, तो कचरा, गोबर आदि की तह देकर फिर से ऊँचा उठाया जाय और लीप दिया जाय। खासकर बारिश के दिनों में यह सावधानी रखनी चाहिए, जिससे बारिश का पानी खाद में न जा सके। लीपने के बाद करीब चार महीने में खाद तैयार हो जायेगी।



1. कच्ची आड़ पीछे न गिरे, इसलिए आधार।
2. ढेर पूरा होने के बाद घुमट का आकार।
3. एक-एक दिन की गोबर आदि की तह।
4. खाई का एक हिस्सा भरने के बाद दूसरा हिस्सा भरने का आरंभ।

प्रतिदिन कम्पोस्ट बनाने के अलावा कुछ ऐसे मौसम भी होते हैं (जैसे पतझड़, बरसात या गन्ना पेरने का मौसम), जब बहुत-सा सामान (जैसे चकौड़ रूसा, खर-पतवार, पत्तियाँ इत्यादि) एक साथ ही बहुत मात्रा में किसान को मिल सकता है। इस अवसर को हाथ से नहीं जाने देना चाहिए। क्योंकि इस समय बहुत-सी कंपोस्ट खाद वह थोड़ी-सी मेहनत से बना सकता है। इन चीजों को भरते समय इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि पौधों को बीज पड़ जाने से पहले ही कंपोस्ट की खाई में डाल देना चाहिए, अन्यथा सड़ने की क्रिया में देर लगेगी और खेतों में ये बीज उगकर खेत को खराब कर देंगे। फूल आने के बाद और बीज पड़ने के पहले ही पौधों में ज्यादा-से-ज्यादा नाइट्रोजन होता है। तभी हम उसको उखाड़कर खाई में डालते हैं, तो खाद में हमें अधिक नाइट्रोजन मिलेगा। ऐसा ख्याल करने की जरूरत नहीं है कि इतने कचरे के लिए काफी गोबर आदि कहां से आयेगा। यद्यपि कंपोस्ट के लिए घास-फूस के साथ गोबर आदि की जरूरत होती है, फिर भी वह अल्प मात्रा में हो, तो भी चल सकता है।

गोबर आदि एक तरह से जमावन सरीखे हैं। इसलिए थोड़ी मात्रा में हों, तो भी चल जायगा। इसका उपयोग तरीके से करना है। याने नीचे घास-फूस, फिर गोबर आदि, फिर मिट्टी की तह, इस ढंग से करना है, यह न भूलें।

आमतौर से बारिश के दिनों में और जहाँ पानी की सतह बहुत ऊँची हो, वहाँ और दिनों में भी, खाई के बजाय जमीन के ऊपर चबूतरा बनाकर कंपोस्ट किया जाय। 7 से 10 फुट का करीब 9 इंच ऊँचा चौरस चबूतरा पत्थर, ईंट के टुकड़े आदि से बनाया जाय। उस पर मिट्टी की तह दी जाय। फिर इस चबूतरे के चार समान हिस्से आकृति के अनुसार किये जायँ।

यह एक-एक हिस्सा खाई का एक-एक हिस्सा समझकर ऊपर कहे अनुसार उस पर कंपोस्ट किया जाय। चारों हिस्सों का उपयोग होने पर ऊपर से गुंबद-सा आकार बनाकर मिट्टी और गोबर के घोल से लीप दिया जाय। 4-6 महीने में खाद तैयार हो जायेगी। इसी का आसान तरीका यह भी हो सकता है कि चबूतरे को चार हिस्सों में भरने के बजाय बीच में ढेर लगाकर, कचरा आदि के उस ढेर के चारों और, हर रोज छह इंच मोटी तह दी जाय। ऐसा करते-करते पूरा चबूतरा भर जाय और ऊँचाई 4 फुट के करीब हो जाय, तब गुम्बद-सा आकार बनाकर लीप दिया जाय। लेकिन यह तरीका वहीं काम देगा, जहाँ 20 से ज्यादा ढोर हों, क्योंकि ढेर से चारों और 6 इंच मोटी तह न लगेगी, तो ढेर में नमी कम रहेगी, जिससे सड़ने की क्रिया ठीक से न होगी, साथ ही नाइट्रोजन भी ठीक-ठाक उड़ जायगा।

कंपोस्ट तो खाद बनाने का एक तरीका है। लेकिन खाद बनाने की चीजें ठीक-ठीक मात्रा में न होंगी, तो केवल अच्छे तरीके से पूरा लाभ थोड़े ही होगा? खाद के लिए उपयोगी चीजों में से गोबर का कुछ खयाल रखना चाहिए, नहीं रखते। असल में, गोबर से गोमूत्र में कम-से-कम ढाई से तीन गुना नाइट्रोजन होता है, यह ऊपर दिये गये आँकड़ों पर से ध्यान में आयेगा। इसलिए यह जरूरी है कि गोमूत्र का ठीक-ठीक उपयोग किया जाय। इसके लिए गोठे का फर्श ठीक-ठीक कड़ा हो। ईंट, पत्थर आदि के टुकड़ों से और ऊपर मुरम को धुम्मस करके वह किया जाय। फर्श ढोरों के पिछले भाग की ओर ढालू हो। ढाल के किनारे नाली हो। गिरनेवाला सारा गोमूत्र, ढाल पर से नाली में और नाली में से बहकर नाली के सिरे पर से गढ़े या बरतन में जमा होगा। हर रोज गोठे की सफाई करते समय गोबर आदि के साथ वह गोमूत्र भी खाई में डाला जाय। गोमूत्र इकट्ठा करने के और भी कई तरीके नीचे दिये जाते हैं, जिनमें से सहूलियत के अनुसार कोई भी तरीका अपनाया जा सकता है।

(अ) मिट्टी की चार इंट मोटी तह सारघर के फर्श पर बिछा देनी चाहिए। यह मिट्टी ने केवल जानवरों को बैंठने में आराम पहुँचायेगी बल्कि सारे गोमूत्र को सोख लेगी। जब जानवरों के नीचे की मिट्टी अच्छी तरह तर हो जाय, तब उसे हटाकर दूसरी मिट्टी इस तर मिट्टी की जगह डाल देनी चाहिए। लगभग दो मास में यह सारी मिट्टी पेशाब से तर हो जायेगी। तब इसे हटाकर खेत में डाल देना चाहिए या खाद के गढ़ों में जमा कर देनी चाहिए, ताकि बाद में काम आये और मवेशी खाने में दूसरी चार इंच मिट्टी की तह बिछा देना चाहिए।

(आ) मवेशीखाने की फर्श 6 इंच गहरी खोदनी चाहिए, फिर 2.5 इंच भुरभुरी मिट्टी की तह महीने में एक बार डाल दी जाय और इसी प्रकार हर महीने 2.5 इंच मिट्टी की नयी तह डालते रहें, जिससे कि पहली तह नीचे ढँक जाय। दब-दबाकर 4 महीनों में फर्श की सतह जमीन से 2 इंच ऊँची हो जायगी। तब यह 8 इंच मोटी, मूत्र की मिट्टी की तह एक साथ उठा ली जाय और फिर नयी मिट्टी, मूत्र की मिट्टी की तह एक साथ उठा ली जाय और फिर नयी मिट्टी पहले की भाँति डाली जाय। यह तरीका अक्तूबर से मई तक किया जा सकता है।

(इ) जहाँ बाग-बगीचे अधिक हों और खर-पतवार ज्यादा मिल सके, वहाँ मिट्टी के बदले खर-पतवार की 6 इंच मोटी तह सारघर की फर्श पर बिछा दी जाय। जब वह खर-पतवार अच्छी तरह गोमूत्र से तर हो जाय, तब उसे हटाकर दूसरी वैसी ही तह फिर बिछा देनी चाहिए। गोमूत्र से सना हुआ खर-पतवार खाद के गढ़े में डाल दिया जाय। इससे जो खाद बनेगी, वह गोमूत्र से सनी मिट्टी की खाद के समान या उससे भी अच्छी होगी। यह तरीका जाड़े के लिए सबसे अच्छा है।

(ई) यह देखा गया है कि जानवर बाँधने के स्थान में मूत्र कुछ खास गढ़ों में जाकर सूखता रहता है। इन गढ़ों को एक फुट लंबा, एक फुट चौड़ा और चार इंच गहरा खोद लेना चाहिए। इनकी दीवारें और तली या तो ईंटें लगाकर मजबूत कर देनी चाहिए या मिट्टी को ही कूटकर पक्का कर देना चाहिए। गढ़ों में नीचे चरही का बचा हुआ चारा दो इंच मोटी तह में बिछा देना चाहिए। उसके ऊपर एक इंच मिट्टी या राख और फिर एक इंच भूसा या चरी बिछाकर छोड़ देना चाहिए। अनुभव से मालूम हुआ है कि यह क्रिया बड़ी ही सरल है और प्रतिदिन दो-तीन मिनट से अधिक समय इसमें नहीं लगता। प्रातःकाल जब सारे घर का गोबर आदि इकट्ठा किया जाय, तब यह गढ़े भी खाली कर लेने चाहिए और पहले दिन की भाँति फिर भूसा आदि भर देना चाहिए।

कंपोस्ट के बारे में थोड़े में जरूरी और सारभूत बातें यहाँ दे दी गयी हैं। अधिक तफसीलवार जानकारी हरएक प्रांत के सरकारी कंपोस्ट-अधिकारियों से प्राप्त की जा सकती है।
 

 

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