जहाज का प्रवाह

जहाजवाली नदी सरिस्का के बफर जोन में पड़ने वाली दूसरी महत्वपूर्ण नदी है। इस नदी का आधे से अधिक हिस्सा सरिस्का के कोर क्षेत्र में पड़ता है। सरकार ने जब सरिस्का को नेशनल पार्क घोषित किया था, तभी से इस क्षेत्र में जंगल और जंगली जानवरों के अलावा हर बसावट को नाजायज करार दिया गया। असलियत में इस तरह के नियम-कायदे आदमी और संवेदना के खिलाफ हैं। जहाजवाली नदी के जलागम क्षेत्र का आरम्भ राजस्थान के पूर्वोत्तर भाग में स्थित अलवर जिले की तहसील राजगढ़ से होता है। यहां देवरी व गुवाड़ा जैसे गावों के जंगल इसके उद्गम को समृद्ध करते हैं। यह स्थान टहला कस्बे से 12 किलोमीटर पूर्वोत्तर में स्थित है। पूर्व से पश्चिम गुवाड़ा, बांकाला और देवरी गांवों को पार कर जहाजवाली नदी जहाज नामक तीर्थस्थान के ऊपर तक आती है इसलिए इसे जहाजवाली नदी कहते हैं।

यह धारा आगे दक्षिण की तरफ घूमकर नीचे गिरती है। उस स्थान को दहड़ा कहते हैं। ‘दह’ ऐसे स्थान को कहते हैं, जहां हमेशा जल बना रहे। इसी गुण के कारण इस स्थान का नाम कभी ‘दहड़ा’ पड़ा होगा दहड़ा से थोड़ा नीचे जहाज का मंदिर भी है और झरना भी। इसी झरने से थोड़ा पहले एक और धारा पश्चिम से आकर जहाजवाली नदी में मिल जाती है। एक अन्य प्रमुख धारा राड़ा के जंगलों से कई उपधाराओं को समेटती हुई राड़ा गांव के पूर्व स्थित नाण्डू गांव के जंगलों में आकर मिल जाती है।

एक धारा घेवर व नायाला के उत्तर के जंगल से दक्षिण आकर मुरलीपुरा के पास जहाजवाली की मुख्य धारा में मिलती है। एक अन्य धारा लोसल गूजरान के पहाड़ों से बहती हुई चावा का बास व घेवर के बीच में आकर मुख्य नदी में मिल जाती है। कुछ नाले लोसल ब्राह्मणान और तालाब के पूर्वी जंगल से चलकर एकाकार होते हुए फिर टहला के पास मंगलांसर बांध में आकर मिल जाते हैं। इन्हीं धाराओं में एक और उपधारा तालाब गांव के दक्षिण से उत्तर की ओर आकर इसी गांव के तालाब को भरती है।

तालाब के भर जाने के बाद यह उपधारा उक्त नालों में मिलकर जहाज की मुख्य धारा में मिल जाती है। रूपबास व राजडोली गांवों के उत्तर से दो धाराएं दक्षिण की ओर आकर टहला के खेतों में बने गूयल्या बांध में मिलती हैं। इस बांध का पानी अंत में टहला मंदलांसर बांध में आकर मिल जाता है।

मंगलांसर बांध के भर जाने के बाद इसका अतिरिक्त पानी मानसरोवर बांध के थोड़ा नीचे भगाणी नदी को समृद्ध करता है। इस संगम के नीचे भगाणी का नाम ‘तिलदह’ हो जाता है। तिलदह नदी… तिलदह नामक तीर्थस्थान से गुजरती हुई आग रेडिया के बांध में और फिर थोड़ी ही दूरी पर सरसा व अरवरी की संयुक्त धारा में मिल जाती है। इस त्रिवेणी संगम से आगे इन संयुक्त नदियों का एक ही नाम “सांवां-नदी” हो जाता है। ‘सांवां नदी’ बांदीकुई से आगे बैजूपाड़ा में जाकर बाणगंगा में मिल जाती हैं। बाणगंगा को उतंगन (उटंगन) नदी के नाम से भी जाता है। यूं बाणगंगा नाम ही अधिक प्रसिद्ध है। बाणगंगा उतंगन के नाम से आगे जाकर फतेहाबाद (आगरा) के निकट यमुना नदी में मिल जाती है। यमुना नदी प्रयाग (इलाहाबाद) में जाकर राष्ट्रीय नदी गंगा में मिल जाती है। गंगा आगे प. बंगाल में गंगासागर में मिलकर सागरस्वरूपा हो जाती है।

अलवरवासी कह सकते हैं कि उनकी जहाजवाली नदी गंगा को समृद्ध करती है। गंगावासी भले ही गंगा को शोषित व प्रदूषित बना रहे हों, लेकिन राजस्थान कम वर्षा व पानी के बावजूद बाण, बनास, चंबल आदि के जरिए गंगा को समृद्ध ही करता है।

अलवरवासी कह सकते हैं कि उनकी
जहाजवाली नदी गंगा को समृद्ध करती है

जहाजवाली नदी सरिस्का के बफर जोन में पड़ने वाली दूसरी महत्वपूर्ण नदी है। इस नदी का आधे से अधिक हिस्सा सरिस्का के कोर क्षेत्र में पड़ता है। सरकार ने जब सरिस्का को नेशनल पार्क घोषित किया था, तभी से इस क्षेत्र में जंगल और जंगली जानवरों के अलावा हर बसावट को नाजायज करार दिया गया। असलियत में इस तरह के नियम-कायदे आदमी और संवेदना के खिलाफ हैं। सरिस्का जोन में पड़ने वाले गांव के गांव इसी वजह से उपेक्षित हैं।

जहाजवाली नदी के जलग्रहण क्षेत्र में तीन गांव ऐसे आते हैं, जो सरिस्का के मुख्य कोर क्षेत्र में पड़ते हैं, गुवाड़ा, बांकाला और देवरी। 1979 में यहां बाघ परियोजना की शुरुआत हुई। सरिस्का के 866 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को बफर और कोर...दो क्षेत्रों में बांटा गया। 498 वर्ग किलोमीटर कोर क्षेत्र में आया और 368 वर्ग किलोमीटर बफर क्षेत्र में आया। कोर क्षेत्र घोषित होने वाला इलाका ‘रिजर्व फॉरेस्ट’ कहलाया। कोर क्षेत्र को तीन भागों में बांटा गया। पहला - ‘मुख्य को कोर क्षेत्र’ और दूसरा व तीसरा- ‘सेटेलाइट कोर क्षेत्र’। मुख्य कोर क्षेत्र ‘राष्ट्रीय अभ्यारण्य’ कहलाया। मुख्य कोर क्षेत्र में करीब दस गांव-गुवाड़े आए। जहाजवाली नदी के जलग्रहण क्षेत्र में आने वाले गुवाड़ा, बांकाला और देवरी गांव भी इनमें शामिल हैं। जहाजवाली नदी का ज्यादातर जलागम क्षेत्र सरिस्का के कोर में ही है। अतः जंगल और जहाज का गहरा रिश्ता है। यहां की दोमट मिट्टी भी जंगल के अनुकूल है।

यूं दुनिया के नक्शे पर देखें, तो जहाजवाली नदी जलागम क्षेत्र 27 डिग्री, 11 मिनट, 39 सेकंड उत्तरी अक्षांश से 27 डिग्री, 18 मिनट, 21 सेकंड उत्तरी अक्षांश तथा 76 डिग्री, 24 मिनट, 15 सेकंड पूर्वी देशांतर से 76 डिग्री, 31 मिनट, 20 सेंकड पूर्वी देशांतर के मध्य स्थित है। इसका जलागम क्षेत्र 89 वर्ग किलोमीटर है। नदी की लम्बाई लगभग 20 किलोमीटर है। लंबाई की दृष्टि से जहाजवाली छोटी नदी है, लेकिन सरिस्का की दृष्टि से इसका महत्व अमूल्य है। जहाजवाली नदी जलागम क्षेत्र में सन् 1985 से मार्च, 2009 तक तरुण भारत संघ द्वारा जन सहभागिता से कुल 122 जल-संरचनाओं का निर्माण हुआ है। इन्हीं संरचनाओं ने जहाजवाली नदी का भूगोल पानीदार बनाया है। क्या पुस्तक लिखने के लिए यह एक वजह काफी नहीं है?

लंबाई की दृष्टि से जहाजवाली छोटी नदी है,
लेकिन सरिस्का के दृष्टि से इसका महत्व अमूल्य है।

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