जगदीश गुर्जर

जगदीश गुर्जर
यूं जी जहाजवाली
Posted on 06 May, 2014 03:23 PM

संघर्ष से शुरूआत


पहले देवरी-गुवाड़ा में छोटी-छोटी बैठकों का दौर चला। पहले गांवों का अनुशासन जरूरी था। गांव अपना अनुशासन खुद करने के लिए तैयार हो गए। तय किया गया कि अब कोई भी ग्रामवासी गांव के जंगल से पेड़ नहीं काटेगा। सब समझ गए कि जंगल कटने के कारण गाय, भैंस, बकरी, ऊंट आदि पशुओं को चारे का अभाव हो रहा है। जंगल जाने से ही पानी जा रहा है। अच्छा-खासा समृद्ध इलाका इसी कारण बेरोजगारी व गरीबी की ओर बढ़ रहा है। गरीबी, बेकारी और बेरोजगारी से बचने के लिए जरूरी है कि जंगल का संरक्षण हो।यह सच है कि 1985 में जब तरुण भारत संघ इस इलाके में आया, तब तक जंगल जंगलात के हो चुके थे और जंगलात की नजर में जंगलवासी नाजायज लेकिन यह भी सच है कि सरिस्का ‘अभ्यारण्य क्षेत्र’ बाद में घोषित हुआ और इसके भीतर बसी इंसानी बसावट सदियों पुरानी है। इसे भी झुठलाना मुश्किल है कि जंगल को जंगलात से ज्यादा जंगलवासी प्यार करते हैं। लोग भले ही इन्हें जंगली कहते हों, लेकिन जंगल को जंगलात से ज्यादा जंगलवासियों ने ही संजोया। बावजूद इसके यदि जंगलवासियों को जंगल से दूर करने की कोशिश हो रही है, तो यह सही है या गलत? आप तय करें।

हम तो यही जानते हैं कि जंगल जंगलवासियों की जन्मभूमि है। इन्हें अपनी जन्मभूमि से अत्यंत प्यार है। जन्मभूमि के प्रति इनके अनंत प्रेम को देखकर ही एक बार अलवर के महाराजा मंगल सिंह को भी सरिस्का क्षेत्र में बसे 27 गांवों को उठा देने का अपना आदेश स्वयं ही रद्द करना पड़ा था। यह ब्रितानी जमाने की बात है।
जहाज का प्रवाह
Posted on 01 May, 2014 03:27 PM
जहाजवाली नदी सरिस्का के बफर जोन में पड़ने वाली दूसरी महत्वपूर्ण नदी है। इस नदी का आधे से अधिक हिस्सा सरिस्का के कोर क्षेत्र में पड़ता है। सरकार ने जब सरिस्का को नेशनल पार्क घोषित किया था, तभी से इस क्षेत्र में जंगल और जंगली जानवरों के अलावा हर बसावट को नाजायज करार दिया गया। असलियत में इस तरह के नियम-कायदे आदमी और संवेदना के खिलाफ हैं। जहाजवाली नदी के जलागम क्षेत्र का आरम्भ राजस्थान के पूर्वोत्तर भाग में स्थित अलवर जिले की तहसील राजगढ़ से होता है। यहां देवरी व गुवाड़ा जैसे गावों के जंगल इसके उद्गम को समृद्ध करते हैं। यह स्थान टहला कस्बे से 12 किलोमीटर पूर्वोत्तर में स्थित है। पूर्व से पश्चिम गुवाड़ा, बांकाला और देवरी गांवों को पार कर जहाजवाली नदी जहाज नामक तीर्थस्थान के ऊपर तक आती है इसलिए इसे जहाजवाली नदी कहते हैं।

यह धारा आगे दक्षिण की तरफ घूमकर नीचे गिरती है। उस स्थान को दहड़ा कहते हैं। ‘दह’ ऐसे स्थान को कहते हैं, जहां हमेशा जल बना रहे।
जहाजवाली का प्रवाह
Posted on 21 Apr, 2014 09:53 AM

निवेदन

कैसे सूखी नदी
Posted on 04 May, 2014 10:18 AM
भारत के गंवई ज्ञान ने तरुण भारत संघ को इतना तो सिखा ही दिया था कि जंगलों को बचाए बगैर जहाजवाली नदी जी नहीं सकती। लेकिन तरुण भारत संघ यह कभी नहीं जानता था कि पीने और खेतों के लिए छोटे-छोटे कटोरों में रोक व बचाकर रखा पानी, रोपे गए पौधे व बिखेरे गए बीज एक दिन पूरी नदी को ही जिंदा कर देंगे। जहाजवाली नदी के इलाके में भी तरुण भारत संघ पानी का काम करने ही आया था, लेकिन यहां आते ही पहले न तो जंगल संवर्द्धन का काम हुआ और न पानी संजोने का। अपने प्रवाह क्षेत्र के उजड़ने-बसने के अतीत की भांति जहाजवाली नदी की जिंदगी में भी कभी उजाड़ व सूखा आया था। आपके मन में सवाल उठ सकता है कि आखिर एक शानदार झरने के बावजूद कैसे सूखी जहाजवाली नदी? तरुण भारत संघ जब अलवर में काम करने आया था...तो सूखे कुओं, नदियों व जोहड़ों को देखकर उसके मन में भी यही सवाल उठा था।

इस सवाल का जवाब कभी बाबा मांगू पटेल, कभी धन्ना गुर्जर...तो कभी परता गुर्जर जैसे अनुभवी लोगों ने दिया। प्रस्तुत कथन जहाजवाली नदी जलागम क्षेत्र के ही एक गांव घेवर के रामजीलाल चौबे का है।

चौबे जी कहते हैं कि पहले जंगल में पेड़ों के बीच में मिट्टी और पत्थरों के प्राकृतिक टक बने हुए थे। अच्छा जंगल था। बरसात का पानी पेड़ों में रिसता था। ये पेड़ और छोटी-छोटी वनस्पतियां नदी में धीरे-धीरे पानी छोड़ते थे। इससे मिट्टी कटती नहीं थी।
River
जहाज का जलागम
Posted on 04 May, 2014 10:06 AM

उजड़ते-बसते तट


पता नहीं, ऊमरी-देवरी में बेटी ब्याह की कहावत पहले की है या बाद की। पर सच है कि ऊमरी को हजारों साल पहले उम्मरगढ़ के नाम से जाना जाता था। कालांतर में उम्मरगढ़ किसी कारण नष्ट हो गया। ऐसा ही देवरी नगर के साथ भी हुआ। समय बीता। नगर की जगह विशाल जंगल आबाद हो गया। कालांतर में ये स्थान पुनः धीरे-धीरे बसे। देवरी गांव में भाभला गोत्र के मीणा आकर बस गए। पर जाने क्यों बाद में उनकी संख्या धीरे-धीरे कम होती चली गई। सन् 1933 में इस गोत्र का एकमात्र सदस्य दल्ला पटेल ही बचा था। जहाजवाली नदी के जलागम में जहाज नामक स्थान की खास महत्ता है। इस स्थान पर एक अखंड झरना है। यह झरना अमृतधारा की भांति है। स्वच्छ और निर्मल प्रवाह का स्रोत! यहां पर हनुमान जी का एक मंदिर है।

नामकरण - कहते हैं कि पौराणिक काल में यहां जाजलि ऋषि ने तपस्या की थी। जाजलि ऋषि बड़े विद्वान और वेद-वेदांगों के ज्ञाता तो थे ही, वह आयुर्वेद के सोलह प्रमुख विशेषज्ञों में से भी एक थे।

धन्वतरिर्दिवोदासः काशिराजोSश्विनी सुतौ। नकुलः सहदेवार्की च्यवनों जनको बुधः।।
जाबलो जाजलिः पैलः करभोSगस्त्य एवं चSएते वेदा वेदज्ञाः षोडश व्याधिनाशका:।।


अर्थात् धन्वन्तरि, दिवोदास, काशिराज, दोनों अश्वनि कुमार, नकुल, सहदेव, सूर्यपुत्र यम, च्यवन, जनक, बुध जाबाल, जाजलि, पैल, करभ और अगस्त्य-ये सोलह विद्वान वेद-वेदांगों के ज्ञाता तथा रोगों के नाशक वैद्य हैं।
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