जैव संपदा रजिस्टर योजना के किंतु-परन्तु

Arun tiwari
Arun tiwari

जैव संपदा समृद्धि की दृष्टि से भारत दुनिया में 10वें नंबर पर है। दुनिया में मौजूदा कुल जैव संपदा का आठ फीसदी भारत में है। यह आंकड़ा एक ओर भारत की जैविक समृद्धि का प्रतीक है, तो दूसरी ओर दुनिया के जैव संपदा बाजार को भारत में आकर्षित करने का एक बड़ा कारण भी। इस कारण ने भारत की प्राकृतिक संपदा के प्रति कॉर्पोरेट सेक्टर के मन में एक बड़े लालच को जन्म दे दिया है।

केंद्र द्वारा उठाये एक नये कदम से अब पर्यावरण संरक्षण में पंचायतों की भूमिका और अहम् हो जायेगी, बशर्ते यह कदम पूरी समग्रता और ईमानदारी के साथ उठाया गया। यह कदम पंचायतों द्वारा अपने क्षेत्र की जैव संपदा का रिकार्ड तैयार करने, उसके उपयोग हेतु अनुमति देने न देने संबंधी अधिकार तथा उसके मुनाफे में स्थानीय समुदाय की हिस्सेदारी को लेकर है। इसे लागू करने में जितनी ईमानदारी की अपेक्षा सरकार से है, उससे ज्यादा समझदारी पंचायत व ग्रामसभाओं को दिखानी होगी। कहीं ऐसा न हो कि वैचारिक तौर पर अच्छा दिख रहा यह कदम कुछ लोगों के लालच व मनमानी के कारण जैव संपदा के सफाये, बाजारीकरण, कंपनियों के कब्जे व भ्रष्टाचार की पूर्ति का मान्य माध्यम बन जाये !!

यह आशंका यूं ही नहीं है; इसके पीछे भारतीय प्राकृतिक संपदा को लेकर विदेशी और अब देशी कारोबारियों के भी लालच से जुड़े अनुभव हैं। जलापूर्ति, जलविद्युत के नाम पर जल, उद्योगों के नाम पर जमीन, निविदा कृषि के नाम पर खेती और एफडीआई के नाम पर पूरी खाद्य मंडियों पर कब्जे का जो खेल दिखाई दे रहा है, वह इस योजना को लेकर भी आशंकित करता है। दूध के जले को मट्ठा भी फूंक-फूंक कर पीने की जरूरत है।

बहरहाल, उल्लेखनीय है कि स्थानीय समुदाय को जैव संपदा में हिस्सेदारी देने को लेकर दो वर्ष पूर्व जापान के नागोबा सम्मेलन में व्यापक अंतरराष्ट्रीय सहमति बनी थी। पिछले दिनों हैदराबाद में हुए एक सम्मेलन में भी भारत सरकार ने इसे लेकर अपनी प्रतिबद्धता दोहराई थी। भारत सरकार के पर्यावरण एवम् वन मंत्रालय ने इस विचार को प्रयोग के रूप दक्षिणी राज्यों में अंजाम देने का काम शुरू भी कर दिया है। अब मंत्रालय इसे विस्तार देने के लिए व्यापक योजना तैयार करने में लगा है। जैव संपदा रजिस्टर योजना की तीन बातें गौरतलब हैं।

क्या है योजना?


पहला- प्रत्येक ग्राम पंचायत अपने इलाके की भूमि पर उगे पेड़- पौधे व छोटी वनस्पतियों को उनके प्रकार, श्रेणी व उपयोग के विवरण को एक रजिस्टर में दर्ज करेगी। जहां जैव संपदा काफी सघन होगी, वहां रजिस्टर में जैव संपदा दर्ज करने का यह काम ग्राम स्तर पर होगा। जहां जैव संपदा अपेक्षाकृत कम होगी, वहां जैवसंपदा रजिस्टर ब्लॉक अथवा जिला स्तर पर बनाया जायेगा। इसे अंजाम देने के लिए सरकार ने बाकायदा 250 करोड़ रुपये का इंतजाम भी कर लिया है।

दूसरा- ग्राम पंचायत की अनुमति के बगैर कोई भी सरकारी, निजी अथवा अन्य श्रेणी में आने वाला निकाय/एजेंसी दर्ज जैव संपदा उपयोग नहीं कर सकेगा।

तीसरा- दर्ज जैव संपदा के इस्तेमाल से होने वाले मुनाफे का एक हिस्सा स्थानीय ग्राम समुदाय के कल्याण पर खर्च करना होगा।

क्या है आशंका?


प्रत्यक्ष में देखें तो यह योजना बहुत अच्छी है। किंतु यदि जैव संपदा के उपयोग की अनुमति देने व गांव को मुनाफे का लाभ देने के प्रावधानों में उपयोगकर्ता की सदेच्छा सुनिश्चित न की जा सकी, तो यह योजना एक बड़े विनाश का रास्ता भी खोलेगी। बची-खुची जैव संपदा औने-पौने में बाजार के हवाले हो जायेगी और ग्रामीणों के हाथ कुछ न लगेगा। वे सिर्फ खजाने का पता देने वाले बनकर रह जायेंगे। बाजार को ठिकाना न पता होने तथा ग्रामवासियों को बाजार में अपने आसपास बिखरी जैव संपदा की कीमत न पता होने की वजह से जो बेशकीमती औषधि आदि अभी बची हुईं हैं, उनका सफाया होते देर न लगेगी। तर्क देने वाले कह सकते हैं कि बेकार पड़े रहने से तो अच्छा है कि उसे बेचकर कमाया जाये। शायद वे भूल जाते हैं कि मानव के अतिरिक्त अन्य जीव व प्रकृति के अन्य क्रियाकलापों में भी इस जैव संपदा का उपयोग है। इस प्रकृति में कुछ भी अनावश्यक या बेकार नहीं है।

क्या इस बात से इंकार किया जा सकता है कि आदिवासी व ऐसे इलाके जहां भूख का इंतजाम पहली जरूरत है, वहां गरीबों की लाचारी का लाभ उठाकर... उन्हें लालच देकर बाजारू शक्तियां भारत की जैव संपदा पर कब्जे के नापाक इरादे पूरे करने में नहीं लग जायेंगी? ब्लॉक व जिला पंचायत स्तर के चुनाव जिस तरह दलगत राजनीति की गिरफ्त में हैं, क्या उससे उस स्तर पर ली जाने वाली अनुमति में व्यापक भ्रष्टाचार की आशंका हमेशा बनी नहीं रहेंगी?

उल्लेखनीय है कि जैव संपदा समृद्धि की दृष्टि से भारत दुनिया में 10वें नंबर पर है। दुनिया में मौजूदा कुल जैव संपदा का आठ फीसदी भारत में है। यह आंकड़ा एक ओर भारत की जैविक समृद्धि का प्रतीक है, तो दूसरी ओर दुनिया के जैव संपदा बाजार को भारत में आकर्षित करने का एक बड़ा कारण भी। इस कारण ने भारत की प्राकृतिक संपदा के प्रति कॉर्पोरेट सेक्टर के मन में एक बड़े लालच को जन्म दे दिया है। अतः जैव संपदा रजिस्टर योजना को लेकर उपजी आशंकाओं को एक ही हालत में नजरअंदाज किया जा सकता है, बशर्ते हमारी पंचायतें अपनी जैव संपदा के प्रति पर्याप्त सतर्क, संवेदनशील व समझदार बन जायें। इसके लिए कुछ सतर्कता व योजना निर्माण दृष्टि में पूर्ण समग्रता जरूरी होगी।

क्या हैं जरूरी सावधानियां?


अच्छा होगा कि पूरे देश में यह रिकार्ड ग्राम पंचायत स्तर पर ही तैयार किया जाये। रजिस्टर में वनस्पति के साथ-साथ जैव संपदा की दृष्टि से महत्वपूर्ण जीवों को भी शामिल किया जाये। इस कार्य के लिए ग्राम पंचायत से इतर ग्राम जैव संपदा निर्माण कमेटी बने। कमेटी में कम से कम दो विद्यार्थी तथा दो महिलायें अवश्य हों। ग्रामस्तर पर ही जैव संपदा ऑडिट का प्रावधान हो। ऑडिट की अवधि वित्त वर्ष की बजाय वनस्पति लगाने तथा जीवों के प्रजनन काल के पहले व बाद के अनुकूल तय करने का प्रावधान हो। यह ऑडिट रिपोर्ट ग्रामसभा से मंजूर कराना जरूरी हो।

यदि रिकार्ड ब्लॉक अथवा जिला स्तर पर बने, तो भी उपयोग की अनुमति देने का अधिकार सिर्फ ग्राम पंचायत को ही हो। इसके लिए ग्रामसभा के बहुमत सदस्यों की सहमति को आवश्यक बनाया जाये। सुनिश्चित हो कि जरूरत से अधिक होने पर ही ग्राम पंचायत उसके उपयोग की अनुमति किसी बाहरी को दे सकेगी। जरूरत व उपलब्धता का अंतर सामने आने पर ही ग्रामवासियों को जरूरत की जैवसंपदा बनाये रखने की जवाबदेही का एहसास होगा। अतः तय हो कि जितनी जैवसंपदा उपयोग के नाम पर बाहर जायेगी, उतनी जैवसंपदा पुनः तैयार करने की जिम्मेदारी उपयोगकर्ता व ग्रामपंचायत दोनों की साझी होगी। उपयोग के बाद स्थानीय जैवसंपदा तय मानक स्तर से नीचे होने पर उपयोगकर्ता तथा ग्राम पंचायत दोनों को दंडित किया जाना सुनिश्चित हो।

अपेक्षाकृत कम जैव संपदा वाली ग्राम पंचायतों को छांटकर उन्हें और समृद्ध बनाने को सरकार इस योजना का अगला चरण बनाये।

उपयोगकर्ता द्वारा कमाये गये मुनाफे का आकलन पूरी ईमानदारी से हो सके, यह सुनिश्चित करना बेहद जरूरी होगा। इसके लिए किसी वैधानिक निकाय को जिम्मेदारी सौंपी जानी चाहिए। ग्राम पंचायत को प्राप्त मुनाफा राशि के उपयोग की योजना व क्रियान्वयन का अधिकार ग्रामसभा को हो। कहना न होगा कि योजना की सूरत बेहद अच्छी है। यदि उक्त सावधानियां व समझदारी सुनिश्चित की जा सकी, तो सीरत भी अच्छी हो जायेगी और नतीजे भी। यह सुनिश्चित करने में स्वयंसेवी संगठनों, ग्रामीण विद्यार्थियों तथा अन्य जागरूक जनों को महती भूमिका निभाने के लिए आगे आना होगा।

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