घटता पानी, बढ़ती प्यास

बेतवा, शहजाद, केन, धसान, मंदाकिनी, यमुना, जामनी, एवं सजनाम जैसी सदा नीरा नदियां होने के बावजूद पानी के लिए तरस रहे लोगों के दर्द को समझना बड़ा कठिन है। बुंदेलखंड में जल युद्ध होने से कोई रोक नहीं सकता। बुंदेलखंड पैकेज के नाम पर हुई लूट ने हालात बदतर कर दिए हैं। 2003 में हुई वर्षा 1044.88 एमएम से घटते-घटते वर्ष 2009 तक 277.30 एमएम रह गई। दो हज़ार से अधिक चंदेलकालीन तालाबों में पानी नहीं है। ललितपुर जनपद में प्रदेश के सर्वाधिक कृत्रिम जलाशय होने के बावजूद यहां के चार ब्लॉक संकट की स्थिति में हैं। गर्मी ने अभी स़िर्फ दस्तक दी है, लेकिन बुंदेलखंड में पानी के लिए त्राहि-त्राहि शुरू हो गई है। चित्रकूट के पाठा का पथरीला इलाक़ा हो या भरतकूप का खदानों वाला क्षेत्र या फिर मंदाकिनी के किनारे बसे तिरहार क्षेत्र के दर्जनों गांव, इस समय हर जगह की कहानी लगभग एक जैसी है। गांव तो गांव, शहर के हैंडपंप भी हांफ रहे हैं। एक हज़ार हैंडपंपों को रीबोर करने की स्वीकृति मिलने के बाद ज़िलाधिकारी इसे बड़ी राहत मान रहे हैं, वहीं जल निगम के अधिकारी अभी मंदाकिनी को बचाने की कार्ययोजना की शुरुआत नहीं कर सके हैं। चौदह हज़ार हैंडपंपों वाले इस ज़िले के अधिकांश हैंडपंप गंदा पानी दे रहे हैं। मानिकपुर के कई गांवों के लोगों ने तो जोहड़ों की शरण लेना शुरू कर दिया है।

 

 

जल निगम द्वारा आदर्श पेयजल योजना के अंतर्गत रामनगर, सिकरी, छीबों, पियरिया माफी, खटवारा, बिनौरा, अकबरपुर एवं लोढ़वारा में हैंडपंपों की हालत सरकारी काग़ज़ों में सही बताई जा रही है, लेकिन इन गांवों में शायद ही कहीं पर सही ढंग से पानी मिल रहा हो।

जल निगम द्वारा आदर्श पेयजल योजना के अंतर्गत रामनगर, सिकरी, छीबों, पियरिया माफी, खटवारा, बिनौरा, अकबरपुर एवं लोढ़वारा में हैंडपंपों की हालत सरकारी काग़ज़ों में सही बताई जा रही है, लेकिन इन गांवों में शायद ही कहीं पर सही ढंग से पानी मिल रहा हो। कांशीराम शहरी आवासों में रहने वाले लगभग नौ सौ परिवार पानी की कमी से अक्सर जूझते हैं, पर अभी तक उनकी इस समस्या का निपटारा नहीं हो सका। नोनार पेयजल योजना एवं बालापुर खालसा पेयजल योजना का हाल भी ख़राब है। सांसद आर के सिंह पटेल ने जब पथरा माफी, लोहदा एवं पिपरोदर की जलापूर्ति का हाल देखा तो वह अवाक रह गए। जलापूर्ति के लिए बनाई गईं टंकियां सफेद हाथी बनी खड़ी हैं। ग्रामीणों ने बताया कि चालीस में से कुल पांच हैंडपंप पानी दे रहे हैं। ग्राम लोहदा में पैंतालिस में से केवल पांच हैंडपंप पूरा पानी देते हैं, बाक़ी दो-चार बाल्टी ही पानी देते हैं। पेयजल संकट से जूझ रहे ग्रामीणों ने जल निगम के अधीक्षण अभियंता समेत अनेक अधिकारियों को बंधक बना लिया, जिन्हें सांसद पटेल की पहल पर बड़ी मुश्किल से छुड़ाया जा सका। अधिशासी अभियंता जल संस्थान मनोज कुमार आर्या स्वीकारते हैं कि पिछले दिनों पानी उठाने का काम कुल 6 एमएलडी का हुआ, जिससे कई इलाक़ों को कम आपूर्ति की गई। ज़िलाधिकारी ने खंड विकास अधिकारी को मंदाकिनी की सफाई और जल निगम को मशीन लगाकर युद्ध स्तर पर कचरा साफ कराने के आदेश दिए हैं। अगर जल्द ही मंदाकिनी को साफ न किया गया तो गर्मी में शहरवासियों को पानी की कमी झेलनी पड़ सकती है।

 

 

 

 

नहरों की स्थिति

स्थान

संख्या

2006-07

2007-08

झांसी

160

81

19

जालौन

291

289

16

ललितपुर

119

95

00

बांदा

184

09

00

महोबा

97

36

00

हमीरपुर

100

28

00

चित्रकूट

88

22

00

म.प्र. के कुछ हिस्से

11

06

02

कुल

1050

566

37

हमीरपुर के अपर ज़िलाधिकारी एच जी एस पुंडीर ने बताया कि जल संकट के मद्देनज़र यहां के हैंडपंपों को प्राथमिकता के आधार पर ठीक कराया जाएगा और मौदहा बांध, लघु डाल नहर एवं नलकूपों से तालाबों को भर लिया जाएगा। 16,561 हैंडपंपों में से 797 हैंडपंप रिबोर की स्थिति में हैं। जल निगम हैंडपंपों की मरम्मत करा रहा है। ग्राम पंचायतों को भी ख़राब हैंडपंपों को ठीक करने का आदेश जारी हो चुका है। झांसी जनपद के सपरार बांध का जलस्तर लगातार घटने से मई माह से ही पेयजल आपूर्ति की समस्या उत्पन्न हो सकती है। सपरार बांध से मऊरानीपुर में पेयजल आपूर्ति की जाती है। मऊरानीपुर में बांध के पानी के अलावा ट्यूबवेल एवं कुएं आदि जल के स्रोत हैं, किंतु बड़ी आबादी बांध के पानी पर आश्रित है। बांध में इस समय लगभग 220 मिलियन घन फुट पानी बचा हुआ है। वहां से प्रतिदिन लगभग साढ़े तीन एमएलडी पानी की आपूर्ति की जा रही है। सपरार प्रखंड के अधिशासी अभियंता ए.के.सक्सेना का कहना है कि मऊरानीपुर में सुबह और शाम तीन-तीन घंटे जलापूर्ति की जाती है। प्रतिदिन खपत एवं भीषण गर्मी से वाष्पीकरण का औसत बढ़ने से बांध से अधिकतम 20 मई तक जलापूर्ति संभव है। उन्होंने बांध के घटते जलस्तर के मद्देनजर जल संस्थान के अधिशासी अभियंता सुरेश चंद्र को पत्र लिखकर मऊरानीपुर की जलापूर्ति में कटौती करने के लिए कहा है। महोबा जनपद का वार्ड हवेली दरवाजा भीषण पेयजल संकट से जूझ रहा है। यहां के ऊंचाई वाले इलाक़ों में पूरे साल टैंकरों से जलापूर्ति होती है। गर्मी की शुरुआत होते ही पेयजल संकट गहरा गया है। स्थानीय निवासी विपिन तिवारी एवं आनंद द्विवेदी बताते हैं कि पानी के लिए लोगों को खासी मशक्कत करनी पड़ती है। आपूर्ति के लिए वार्ड में पाइप लाइन डालने की योजना लंबित है। जल निगम की लापरवाही से पाइप लाइन नहीं पड़ सकी। क़स्बा मुस्करा में ट्रांसफार्मर ख़राब होने से पेयजल के लिए हाहाकार मच गया। हैंडपंपों पर एक-एक बाल्टी पानी के लिए लंबी-लंबी लाइनें लग गईं. तीन दर्जन से अधिक गांव पूरी तरह से अंधेरे में डूबे हुए हैं। ललितपुर के मैदानी इलाक़ों के साथ-साथ पठारी इलाक़ों में भी पेयजल की समस्या उत्पन्न हो गई है। मड़ावरा क्षेत्र की संजीवनी मानी जाने वाली नदियां सूखी पड़ी हैं।

 

 

 

 

चित्रकूट धाम मंडल


कुल आबादी-34,06,449 पानी की स्थिति

 

 

 

स्थान

जरूरत

आपूर्ति

शहरी इलाक़े

83 एमएलडी

69 एमएलडी

ग्रामीण क्षेत्र

56 एमएलडी

48 एमएलडी

 

मुख्य जलस्रोत


बेतवा, यमुना, बागेन, केन, प्यस्वनी, मंदाकिनी, ओहनडेम, अर्जुन सागर, मदन सागर, बेलाताल, कबरई तालाब एवं ट्यूबवेल। इनमें अधिकांश सूख चुके हैं और कुछ सूखने की कगार पर हैं।

 

 

ख़र्च धनराशि


राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के तहत 58 करोड़ रुपये आए, अभी तक एक पैसा ख़र्च नहीं। केंद्र से 4 करोड़ 63 लाख 92 हज़ार रुपये मिले, ख़र्च 4 करोड़ 62 लाख 78 हज़ार रुपये।

 

 

 

 

झांसी मंडल


कुल आबादी-47 लाख पानी की स्थिति

 

 

 

स्थान

जरूरत

आपूर्ति

शहरी इलाक़े

203.26 एमएलडी

147.92 एमएलडी

ग्रामीण क्षेत्र

150 एमएलडी

110 एमएलडी

 

मुख्य जलस्रोत


माता टीला बांध, गोविंद सागर बांध, राजघाट बांध, सपरार बांध, हैंडपंप, कुएं, तालाब और नलकूप। सभी बांधों पर पानी घटा। तीस प्रतिशत से ज़्यादा हैंडपंप, तालाब और कुएं सूखे हैं।

 

 

ख़र्च धनराशि


राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के तहत 11 करोड़ रुपये आए, जिसमें से 9.50 करोड़ ख़र्च हुए। केंद्र एवं राज्य से 98 करोड़ 40 लाख रुपये आए, ख़र्च हुए केवल 85 करोड़ 33 लाख रुपये।

मध्य प्रदेश के कुछ इलाक़ों में पानी बरस गया था, इस वजह से कुछ बांध भर गए थे। वहीं पठारी इलाक़ों की स्थिति पहले की तरह है। इन क्षेत्रों में जल संरक्षण के व्यापक इंतज़ाम किए गए थे, लेकिन प्राकृतिक आपदा के कारण जल संकट बरक़रार है। पानी के भंडारण और जलस्तर बनाए रखने के लिए चेकडैम एवं बंधियों का निर्माण किया गया था, जो सूख चुके हैं। ऊंचाई पर मौजूद इस विकास खंड के कुर्रट गांव में पानी का भीषण संकट है। इस ग्राम पंचायत के मजरे कुर्रट, जैतूपुरा एवं लखंजर काफी उपेक्षित हैं। वहां तक पहुंचने के लिए लोगों को धसान नदी पार करनी पड़ती है। वे सागर जनपद के गांव बराठा से रोजमर्रा की ज़रूरत का सामान ख़रीदते हैं। इस क्षेत्र के अन्य ग्रामों में भी पानी का संकट बना हुआ है। प्रदेश में 20 एकड़ भूमि में आवासीय कॉलोनी बनने पर एक एकड़ भूमि पर तालाब बनना अनिवार्य है, लेकिन नगर विकास और आवास विकास विभाग इस नियम का पालन नहीं कर रहे हैं। भूमिगत जल संग्रहण के लिए केंद्र सरकार से मिलने वाली धनराशि का 25 प्रतिशत हिस्सा ज़िलाधिकारी ख़र्च करते हैं। उस राशि को जल संग्रहण की जगह ख़र्च किया जाना ज़रूरी है। भूगर्भ जल के गिरते स्तर को रोकने के लिए नगर विकास, आवास विकास, जल निगम, ग्राम्य विकास, वन विभाग एवं भूमि विकास विभाग भी तैयार नहीं हैं। भूगर्भ जल विभाग को बीते वर्ष 175 लाख रुपये पीजो मीटर स्थापना के लिए मिले हैं. बुंदेलखंड के पठारी जनपद बांदा, चित्रकूट, महोबा एवं ललितपुर के हालात बदतर होते जा रहे हैं। बांदा एवं चित्रकूट में जलस्तर बहुत तेज़ी से नीचे खिसक रहा है। कई विकास खंडों को तो डार्क एरिया घोषित कर दिया गया है।

केंद्रीय भूगर्भ जल सर्वेक्षण आयोग की रिपोर्ट को यदि सच मानें तो बुंदेलखंड में खेती के लिए ख़तरे की घंटी बज गई है। 1950-60 के दशक में इस क्षेत्र में जीवांश की मात्रा 0.52 थी, जो आज 0.20 रह गई है। जीवांश की कमी से उत्पादन कम हो रहा है. मई-जून में तापमान 53 डिग्री तक हो जाने से खेतों में जीवांश ख़त्म हो जाता है। वनों की कटान के कारण प्राकृतिक संतुलन बिगड़ गया है। केंद्रीय भूगर्भ जल सर्वेक्षण आयोग द्वारा के अनुसार, विकास खंड मऊ, मानिकपुर, कर्वी, पहाड़ी एवं रामनगर डार्क एरिया में आते हैं। नरैनी जसपुरा ग्रे एरिया (चेतावनी स्तर) पर हैं। इन क्षेत्रों में यदि रिचार्जिंग की व्यवस्था नहीं हुई तो धीरे-धीरे यहां भी जलस्तर मानक से नीचे खिसक जाएगा। बांदा मंडल के महुआ, कमासिन एवं बबेरू और झांसी मंडल के महरौनी, तालबेहट, बबीना, मऊरानीपुर एवं बड़ा गांव को व्हाइट एरिया माना गया है। ललितपुर जनपद के मडावरा एवं जखोरा ब्लॉक के अनेक ग्रामों का भी जलस्तर मानक से नीचे है। शासन द्वारा जलस्तर बनाए रखने के लिए कुछ चेकडैमो का निर्माण कराया गया था, लेकिन यथार्थ और सरकारी आंकड़ों में भारी अंतर है। स्वयंसेवी संस्था जन कल्याण समिति द्वारा पठारी क्षेत्रों में जलस्तर के संबंध में जुटाए गए आंकड़े भयावह तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। मई और जून माह में बुंदेलखंड के 50 प्रतिशत हैंडपंप जलस्तर गिर जाने से बेकार हो जाते हैं। क्षेत्रीय सांसद एवं केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री प्रदीप जैन आदित्य का कहना है कि राज्य सरकार के कारण कुछ नहीं हो पा रहा है। प्रदेश सरकार के मंत्री दद्दू प्रसाद का गृह जनपद ही पानी के लिए तरस रहा है।

 

 

 

 

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